नई दिल्ली : मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) के बहुविवाह और निकाह हलाला को जायज ठहराने वाले प्रावधानों को असंवैधानिक घोषित करने की मांग सुप्रीम कोर्ट में दायर एक और याचिका में की गई है. शीर्ष अदालत ने लखनऊ निवासी नैश हसन की इस याचिका पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है. आपको बता दें कि मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविलकर और न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ के समक्ष दायर की गई नैश हसन की इस याचिका पर कोर्ट ने केंद्र सरकार और राष्ट्रीय महिला आयोग को भी नोटिस जारी कर इस याचिका को पांच सदस्यीय उस संविधान पीठ को सौंपने का निर्देश दिया , जो 26 मार्च के फैसले अनुसार ऐसी सभी याचिकाओं पर सुनवाई करेगी. गौरतलब है कि इस याचिका में 'मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) आवेदन अधिनियम 1937 की धारा दो को संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 को उल्लंघन करने वाला घोषित करने की मांग की गई है, क्योंकि मुस्लिम पर्सनल लॉ की यह धारा बहुविवाह एवं निकाह हलाला की प्रथा को मान्यता देती है.आपको जानकारी दे दें कि किसी मुस्लिम महिला को यदि उसका पति तलाक दे देता है और उसके बाद उसी पति से उसे दोबारा निकाह करना हो, तो उसके पहले उसकी किसी अन्य व्यक्ति से शादी करना जरुरी होता है.फिर वह व्यक्ति महिला को तलाक देगा उसके बाद ही महिला का पूर्व पति से दोबारा निकाह होगा. इस प्रक्रिया को ही हलाला कहा जाता है.

हलाला को असंवैधानिक घोषित करें

 मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) के बहुविवाह और निकाह हलाला को जायज ठहराने वाले प्रावधानों को असंवैधानिक घोषित करने की मांग सुप्रीम कोर्ट में दायर एक और याचिका में की गई है. शीर्ष अदालत ने लखनऊ निवासी नैश हसन की इस याचिका पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है.नई दिल्ली : मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) के बहुविवाह और निकाह हलाला को जायज ठहराने वाले प्रावधानों को असंवैधानिक घोषित करने की मांग सुप्रीम कोर्ट में दायर एक और याचिका में की गई है. शीर्ष अदालत ने लखनऊ निवासी नैश हसन की इस याचिका पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है.  आपको बता दें कि मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविलकर और न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ के समक्ष दायर की गई नैश हसन की इस याचिका पर कोर्ट ने केंद्र सरकार और राष्ट्रीय महिला आयोग को भी नोटिस जारी कर इस याचिका को पांच सदस्यीय उस संविधान पीठ को सौंपने का निर्देश दिया , जो 26 मार्च के फैसले अनुसार ऐसी सभी याचिकाओं पर सुनवाई करेगी.  गौरतलब है कि इस याचिका में 'मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) आवेदन अधिनियम 1937 की धारा दो को संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 को उल्लंघन करने वाला घोषित करने की मांग की गई है, क्योंकि मुस्लिम पर्सनल लॉ की यह धारा बहुविवाह एवं निकाह हलाला की प्रथा को मान्यता देती है.आपको जानकारी दे दें कि किसी मुस्लिम महिला को यदि उसका पति तलाक दे देता है और उसके बाद उसी पति से उसे दोबारा निकाह करना हो, तो उसके पहले उसकी किसी अन्य व्यक्ति से शादी करना जरुरी होता है.फिर वह व्यक्ति महिला को तलाक देगा उसके बाद ही महिला का पूर्व पति से दोबारा निकाह होगा. इस प्रक्रिया को ही हलाला कहा जाता है.

आपको बता दें कि मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविलकर और न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ के समक्ष दायर की गई नैश हसन की इस याचिका पर कोर्ट ने केंद्र सरकार और राष्ट्रीय महिला आयोग को भी नोटिस जारी कर इस याचिका को पांच सदस्यीय उस संविधान पीठ को सौंपने का निर्देश दिया , जो 26 मार्च के फैसले अनुसार ऐसी सभी याचिकाओं पर सुनवाई करेगी.

गौरतलब है कि इस याचिका में ‘मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) आवेदन अधिनियम 1937 की धारा दो को संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 को उल्लंघन करने वाला घोषित करने की मांग की गई है, क्योंकि मुस्लिम पर्सनल लॉ की यह धारा बहुविवाह एवं निकाह हलाला की प्रथा को मान्यता देती है.आपको जानकारी दे दें कि किसी मुस्लिम महिला को यदि उसका पति तलाक दे देता है और उसके बाद उसी पति से उसे दोबारा निकाह करना हो, तो उसके पहले उसकी किसी अन्य व्यक्ति से शादी करना जरुरी होता है.फिर वह व्यक्ति महिला को तलाक देगा उसके बाद ही महिला का पूर्व पति से दोबारा निकाह होगा. इस प्रक्रिया को ही हलाला कहा जाता है.

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