हार्ट अटैक से हुई मौत, परिवार ने लीवर डोनेट कर 30 मिनट में दिया नया जीवनदान...

हार्ट अटैक से हुई मौत, परिवार ने लीवर डोनेट कर 30 मिनट में दिया नया जीवनदान…

यूपी के गाज़ियाबाद में रहने वाले 45 साल के अतुल सलुजा खुद को खुशकिस्मत मानते हैं. क्योंकि जिस अस्पताल में वह अपना इलाज़ करा रहे थे, वहीं उन्हें नया जीवनदान एक ऐसे मरीज की बदौलत मिला जिसकी दिल की धड़कनें थम गई थी. अतुल सलुजा को लीवर ट्रांसप्लांट की दरकार थी, लिहाज़ा वो बी एल कपूर सुपर स्पेशिलिटी हॉस्पिटल में अपना इलाज करा रहे थे, इसी बीच अस्पताल में एक मरीज की कार्डियक अटैक से मौत हो गई. जिसका लीवर अतुल सलुजा को ट्रांसप्लांट किया गया.हार्ट अटैक से हुई मौत, परिवार ने लीवर डोनेट कर 30 मिनट में दिया नया जीवनदान...

पहली बार कार्डियक अटैक के बाद सफल लीवर ट्रांसप्लांट

भारत में पहली बार कार्डियक अटैक के बाद किसी मृत व्यक्ति का लीवर दूसरे व्यक्ति में ट्रांसप्लांट किया गया यह अपने आप में अनोखा मामला इसलिए है क्योंकि अब तक ऐसा ना होने का दावा डॉक्टरों की ओर से किया जा रहा है. इससे पहले जब भी लीवर ट्रांसप्लांट किया गया तो किसी जीवित व्यक्ति ने डोनेट किया या फिर एक ब्रेन डेड व्यक्ति का लीवर ट्रांसप्लांट कर दूसरे मरीज को नई जिंदगी दी गई. लेकिन अस्पताल के डॉक्टरों ने कार्डियक डेथ के बाद एक मृत व्यक्ति का लीवर जरूरतमंद व्यक्ति को ट्रांसप्लांट किया वो भी सिर्फ 30 मिनट में.

अस्पताल के सीनियर कन्सल्टेंट और डायरेक्टर डॉ संजय सिंह नेगी के मुताबिक, ‘कार्डियक अटैक से हुई डेथ के बाद लीवर में ब्लड सर्कुलेशन थोड़ी देर के लिए रूक जाता है, जिससे ऊतकों में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है. ऐसे स्टेज को चिकित्सीय भाषा में आइस्केमिया कहते हैं. जिसकी अवधि लीवर के केस में मात्र 30 मिनट होती है जबकि किडनी ट्रांसप्लांट के लिए ये अवधि करीब 2 घंटे की होती है.’ अगर कार्डियक डेथ मरीज का लीवर 30 मिनट के अंदर दूसरे शरीर मे ट्रांसप्लांट नहीं किया गया तो फिर लीवर फेल हो जाता है, उसके बाद उसका इस्तेमाल नहीं किया जा सकता या यूं कहें कि फिर वह लीवर किसी काम का नहीं रहता.

डॉक्टरों के मुताबिक, कई बार कार्डियक डेथ के बावजूद मृत व्यक्ति का लीवर जरूरतमंद व्यक्ति तक नहीं पहुंच पाता क्योंकि या तो मृत व्यक्ति के परिजन ऑर्गन डोनेशन के लिए तैयार नहीं होते या फिर ऐसे लीवर को ट्रांसप्लांट करने के लिए एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल ले जाना पड़ता है जिसके लिए 30 मिनट का समय काफी कम है. खास बात ये है कि लीवर ट्रांसप्लांट के मामले में मैचिंग ढूंढने की जरूरत नहीं पड़ती, इसीलिए ऐसे मरीज जिनकी मौत कार्डियक अटैक से या किसी वजह से अस्पताल में हो जाती है, उनके परिजनों को लीवर और दूसरे ऑर्गेन जरूर डोनेट करने चाहिए ताकि किसी जरूरतमंद की मदद हो सके.

आपको बता दें कि भारत में 1.75 लाख से ज्यादा अनुमानित आवश्यकता के मुकाबले हर साल 5 हजार से कम किडनी प्रत्यारोपण किए जाते हैं. इसी प्रकार देश में हर साल केवल एक हजार लीवर ही ट्रांसप्लांट किए जाते हैं जबकि देश में करीब 50 हजार से ज्यादा लोग लीवर की बीमारी के वजह से अपनी जान गंवा देते हैं. इसी तरह हार्ट ट्रांसप्लांट के लिए साल भर में करीब 50 हजार मामले आते हैं तो वहीं फेफड़े के लिए सालाना 20 हजार मामले सामने आते हैं लेकिन अगर ऑर्गन डोनेशन की बात करें तो भारत में ऑर्गन डोनेशन की दर सिर्फ 3 लाख है.

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