एसीबी ने लेबर डिपार्टमेंट से बोर्ड में पंजीकृत सभी नामों की फाइलें जल्द उपलब्ध कराने को कहा है। वर्ष 2002 से 31 मार्च 2018 तक सालाना कितने-कितने मजदूर पंजीकृत किए गए आदि करीब 15 तरह की जानकारी मांगी गई हैं।एसीबी का कहना है कि तीन तरीके से बोर्ड में मजदूरों के नाम पंजीकृत किए जाते हैं। पहला कोई मजदूर यूनियन सिफारिश करता है। दूसरा जिस साइट पर मजदूर काम करता है उसके अधिकारी सिफारिश करते हैं कि उक्त मजदूर मेट्रो या अन्य साइट पर काम करता है और तीन महीने से लगातार काम कर रहा है। तीसरा असिस्टेंट लेबर ऑफिसर प्रमाणित करते हैं कि उक्त मजदूर उक्त साइट पर काम करता है। सभी की जांच की जाएगी। काफी फॉर्म श्रम विभाग से मंगवा भी लिए गए हैं।

95 फीसद नाम फर्जी होने की आशंका

एसीबी को शक है कि जिन आठ लाख लोगों का बोर्ड में मजदूर होने की बात बताकर पंजीकरण किया गया है उनमें महज पांच फीसद ही सही पाए जाएंगे। अधिकांश उनके नाम हैं जो कहीं और मजदूरी करते हैं, अपना बिजनेस करते हैं, फैक्ट्री मालिक हैं, वाहन चलाते हैं, बुटिक चलाते हैं या आप कार्यकर्ता हैं। काफी संख्या में फर्जी नाम भी हैं, जिनका कोई पता दर्ज नहीं है।

बोर्ड भी गलत तरीके से बनाने का आरोप

शिकायतकर्ता सुखबीर शर्मा का कहना है कि बोर्ड भी गलत तरीके से बनाया गया। जो सदस्य बनाए गए वे फर्जी हैं। मंत्री खुद चेयरमैन बन गए। कंस्ट्रक्शन लेबर फंड का करोड़ों रुपया शिक्षा विभाग को दे दिया गया। फिर वहां से अपने कार्यकर्ताओं के बच्चों को दे दिया गया। जबकि उक्त रकम का इस्तेमाल मजदूरों के लिए कल्याण कार्य में किया जाना चाहिए। पंजीकृत मजदूरों को 17 तरह की सुविधाएं देने का प्रावधान है।