25 फीट के बजरंगबली, गोबर और मिट्टी से बने दूर-दूर से आते हैं दर्शनाभिलाषी

फर्रुखाबाद। वैसे तो लोग अक्सर मन्दिर जाते हैं जहां उन्हें सुकून और आनन्द का अहसास होता है। मन्दिर में भगवानों की तरह-तरह की मूर्तियाँ लोगों को अपनी ओर आकर्षित करतीं हैं। आपने अभी तक पत्थरों को तराश कर बनाई गयी और सीमेंट की ढली हुई मूरत देखी होगी। लेकिन आज जिस मूरात के बारे में आपको बताने जा रहे हैं उसकी खासियत यह है कि यह गोबर और मिट्टी के मिश्रण से बनाई गयी है। यह मूरत जिस मंदिर में विराजमान है वहां के पंडितों का कहना है कि इस मूर्त की ऊंचाई करीब 25 फीट होगी। यह मूर्त है श्री राम भक्त हनुमान यानी बजरंगबली की। गोबर के हनुमान की इस मूरत में यहां के लोगों की बड़ी आस्था है।

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25 फीट के बजरंगबली, गोबर और मिट्टी से बने  दूर-दूर से आते हैं दर्शनाभिलाषी

गोबर के हनुमान

फतेहगढ़ रेलवे स्टेशन से लगभग 100 मीटर दूरी पर स्थित हनुमान जी का मंदिर हजारों लोगों की आस्था का केन्द्र है।
कई साल पुराने इस मंदिर की मान्यता है कि यहां सच्चे दिल से मांगी गई हर मुराद पूरी होती है।

खास बात यह है कि मंदिर में गोबर के हनुमान की बनी प्रतिमा स्थापित है, दरअसल इसे मिट्टी और गोबर से बनाया गया है। मंदिर में रहने वाले बाबा की मानें तो यह प्रतिमा लगभग 25 फिट की होगी।

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बताते हैं कि करीब 500 साल पहले गुरु महाराज मुनि ने इस मंदिर की नींव रखी थी। अब हर मंगलवार यहां मेला सा लगता है। सालों से यहां आने वाले लोगों की इस मंदिर के प्रति आस्था देखने लायक होती है।

श्रद्धालुओं का कहना है कि यहां आने वाले हर किसी की समस्या चमत्कारिक रुप से हल हो जाती है। साल दर साल मंदिर को भव्य रुप दिया जा रहा है।

पूरे देश में हनुमान जी की इस तरह की प्रतिमा नहीं है। हरतीरथ से लायी गयी मिट्टी और जल में गाय का गोबर मिलाकर इस प्रतिमा को बनाया गया था। यहां पूजा अर्चना के लिये किसी विशेष रीति रिवाज की नहीं बल्कि भाव की भक्ति को महत्व दिया जाता है।

हर मंगलवार को यहां आस्था का सैलाब उमड़ता है। यहां आने वाले श्रद्धालुओं का कहना है कि सच्चे दिल से मांगी गयी हर मुराद पूरी होती है।

मंदिर में छोटे बच्चों को झाड़ कर बुरी आत्माओं से बचाया जाता है। यहां आकर हर व्यक्ति अपने को सुरक्षित महसूस करता है।

कहा जाता है कि जिस जमीन पर यह मंदिर बना है फर्रुखाबाद में गुरु महाराज जी ने अचानक आकर इस जमीन पर छोटे से मंदिर की स्थापना कर पूजा अर्चन करने लगे थे।

जिस पर गुरु महाराज जी को जमीन मालिक छत्र सिंह ने डांटकर भगा दिया था। जिसके बाद छत्र सिंह का परिवार बीमार पड़ गया था। इसके बाद छत्र सिंह ने गुरु महाराज जी को खोजकर माफी मांगी तब जाकर उनके कष्टों का निवारण हुआ।

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