आइए आपको दहशत के उन हालात से रूबरू कराते हैं जब आठ वर्ष पहले कचहरी सुलग उठी थी। जगह-जगह जलते टूटे वाहनों के बीच लाठियां-बंदूकें लेकर दौड़ती पुलिस और लहूलुहान भागते वकीलों की चीख-पुकार से दंगे जैसे हालात हो गए थे। मामला महज एक वकील और दारोगा के बीच वाद विवाद का था लेकिन उसने ऐसा रौद्र रूप लिया कि पुलिस की बर्बरता से वकीलों की जान पर बन आई थी। दो दिनों तक वकील जान बचाते छिपते फिर रहे थे। मामले में मुकदमा दर्ज होने के बाद वकीलों को जख्मों पर मरहम की आस जगी है। एक मामले में कार्रवाई को लेकर दारोगा राघवेंद्र सिंह से अधिवक्ता आशीष सचान का विवाद चल रहा था। 7 अप्रैल 2010 दोपहर करीब 12.30 बजे दारोगा एक मामले में पेशी पर कोर्ट पहुंचा। प्रथम तल पर वह जीने से नीचे उतर रहा था तभी उसका वकील से आमना-सामना हो गया था। दरोगा को देखते ही आशीष भड़क गया और दोनों के बीच गाली-गलौज होने लगी थी। आसपास वकील जुटे तो बात धक्का मुक्की से मारपीट तक पहुंच गई थी। इससे पहले वकील उग्र होते दारोगा ने उन पर रिवाल्वर तान दी थी। वकील जान बचाने को भागे तो दारोगा भी जान बचाने के लिए भागकर एडीजे प्रथम कोर्ट में चला गया था। दारोगा ने आलाधिकारियों को फोन पर सूचना दी तो तत्कालीन एडीएम सिटी शकुंतला गौतम, एसपी रवि कुमार छवि और भारी पुलिस बल के साथ मौके पर पहुंचे थे। दारोगा वकील विवाद की सूचना कचहरी में आग की तरह फैली तो सैकड़ों वकील भी नारेबाजी करते हुए कोर्ट के बाहर इकट्ठा हो गए थे। बार एसोसिएशन के पदाधिकारी और प्रशासन के आलाधिकारी मामला शांत करा रहे थे तो बाहर वकीलों को गुस्सा बढ़ता जा रहा था। वकील दारोगा को बाहर निकालने की मांग कर रहे थे। पुलिस के लिए वकीलों की उस भीड़ से दारोगा को बचाना मुमकिन नहीं था। कोर्ट पुलिस और वकीलों से खचाखच भर गई थी। इसी बीच धक्का-मुक्की में एडीएम सिटी गिर गई थीं। बस फिर क्या था, पुलिस वकीलों पर टूट पड़ी थी। पुलिस ने ताबड़तोड़ लाठियां चलाना शुरू कर दिया था। इससे वहां भगदड़ मच गई थी। आधा दर्जन से ज्यादा वकीलों के सिर फट गए तो कई वकील और वादकारी भगदड़ में गिरकर घायल हो गए थे। उस वक्त पुलिस को जो मिला उसे गिरा-गिराकर पीटा गया, जिसके बाद दारोगा राघवेंद्र को निकालकर पुलिस ले गई थी। - - - - - - - - - - - - - - निर्दोष का सम्मान बचाएगी अग्रिम जमानत, फायदा मिलेगा तो नुकसान की भी संभावनाएं बढ़ेंगी यह भी पढ़ें अगले दिन एक-दूसरे पर रहे हमलावर इस घटना के ठीक दूसरे दिन 8 अप्रैल को वकील शताब्दी प्रवेश द्वार पर एकत्र होकर पुलिस के खिलाफ नारेबाजी करने लगे थे तो दूसरी ओर एसएसपी कार्यालय में भी भारी पुलिस और पीएसी बल तैनात था। अदालत के काम से जो पुलिसकर्मी कचहरी के भीतर पहुंचे उनके साथ मारपीट और वर्दी फाड़ने की सूचना बाहर तैनात पुलिस कर्मियों को मिली तो वह भी उग्र हो गए थे। दिन भर इसी तरह गोरिल्ला युद्ध होता रहा था। दोपहर करीब तीन बजे दोनों ओर से पत्थर चलने लगे थे। वकीलों के चौपहिया और दोपहिया वाहनों के शीशे तोड़े जाने लगे थे। जिसका जवाब वकीलों ने भी दिया और पुलिस के वाहन तोड़ने शुरू कर दिए थे। जवाबी कार्यवाही में पुलिस कर्मियों ने वकीलों के चौपहिया वाहन तोड़े, डेढ़ दर्जन से ज्यादा दोपहिया वाहनों को गिराकर आग लगा दी। जमकर पत्थरबाजी और फाय¨रग हुई थी। पुलिस ने वकीलों को दौड़ाया, जो वकील मिले उन पर चारों ओर से लाठियां बरसीं थीं। इसके बाद पुलिस और पीएसी रजिस्ट्री कार्यालय की ओर से कचहरी में घुसी और जो वकील जहां मिला उसे पीट दिया गया था। चेंबरों में भी तोड़फोड़ की गई थी और कचहरी पर पुलिस ने कब्जा कर एक-एक चेंबर से वकीलों को निकालकर पीटा था। आलम यह था कि अधिकतर वकील बिना चेंबरों को ताला लगाए भागने को मजबूर हो गए थे। युवा बुजुर्ग जो मिला वह पुलिसिया कहर का शिकार हुआ था। मुकदमे की फाइलें तक नहीं छोड़ी गई। बार एसोसिएशन तत्कालीन महामंत्री नरेश चंद्र त्रिपाठी बताते हैं कि उच्च न्यायालय की तीन सदस्यीय कमेटी ने जांच रिपोर्ट तैयार की थी लेकिन वह आज तक नहीं खुल सकी है। जांच रिपोर्ट खुली तो इसकी आंच कई अफसरों तक पहुंचेगी। - - - - - - - - - - - - - - इटावा चली गई थी कचहरी 27 साल बाद मिला 27 वर्गमीटर का मकान यह भी पढ़ें घटना के बाद से ही वकील हड़ताल पर थे। वादकारियों को हो रहे नुकसान और जेल में बढ़ती संख्या को देखते हुए 15 दिन बाद ही कचहरी इटावा स्थानांतरित कर दी गई थी। कचहरी का पूरा स्टाफ बस से इटावा जाता था। इसके बाद वकीलों ने उच्च न्यायालय का घेराव किया था और लोकसभा में भी मामला गूंजा था। चीफ जस्टिस और कानून मंत्री से मुलाकात के बाद करीब ढाई माह बाद कचहरी वापस आई थी।

7 अप्रैल 2010, जब सुलग उठी थी कचहरी

आइए आपको दहशत के उन हालात से रूबरू कराते हैं जब आठ वर्ष पहले कचहरी सुलग उठी थी। जगह-जगह जलते टूटे वाहनों के बीच लाठियां-बंदूकें लेकर दौड़ती पुलिस और लहूलुहान भागते वकीलों की चीख-पुकार से दंगे जैसे हालात हो गए थे। मामला महज एक वकील और दारोगा के बीच वाद विवाद का था लेकिन उसने ऐसा रौद्र रूप लिया कि पुलिस की बर्बरता से वकीलों की जान पर बन आई थी। दो दिनों तक वकील जान बचाते छिपते फिर रहे थे। मामले में मुकदमा दर्ज होने के बाद वकीलों को जख्मों पर मरहम की आस जगी है।आइए आपको दहशत के उन हालात से रूबरू कराते हैं जब आठ वर्ष पहले कचहरी सुलग उठी थी। जगह-जगह जलते टूटे वाहनों के बीच लाठियां-बंदूकें लेकर दौड़ती पुलिस और लहूलुहान भागते वकीलों की चीख-पुकार से दंगे जैसे हालात हो गए थे। मामला महज एक वकील और दारोगा के बीच वाद विवाद का था लेकिन उसने ऐसा रौद्र रूप लिया कि पुलिस की बर्बरता से वकीलों की जान पर बन आई थी। दो दिनों तक वकील जान बचाते छिपते फिर रहे थे। मामले में मुकदमा दर्ज होने के बाद वकीलों को जख्मों पर मरहम की आस जगी है।  एक मामले में कार्रवाई को लेकर दारोगा राघवेंद्र सिंह से अधिवक्ता आशीष सचान का विवाद चल रहा था। 7 अप्रैल 2010 दोपहर करीब 12.30 बजे दारोगा एक मामले में पेशी पर कोर्ट पहुंचा। प्रथम तल पर वह जीने से नीचे उतर रहा था तभी उसका वकील से आमना-सामना हो गया था। दरोगा को देखते ही आशीष भड़क गया और दोनों के बीच गाली-गलौज होने लगी थी। आसपास वकील जुटे तो बात धक्का मुक्की से मारपीट तक पहुंच गई थी। इससे पहले वकील उग्र होते दारोगा ने उन पर रिवाल्वर तान दी थी। वकील जान बचाने को भागे तो दारोगा भी जान बचाने के लिए भागकर एडीजे प्रथम कोर्ट में चला गया था। दारोगा ने आलाधिकारियों को फोन पर सूचना दी तो तत्कालीन एडीएम सिटी शकुंतला गौतम, एसपी रवि कुमार छवि और भारी पुलिस बल के साथ मौके पर पहुंचे थे। दारोगा वकील विवाद की सूचना कचहरी में आग की तरह फैली तो सैकड़ों वकील भी नारेबाजी करते हुए कोर्ट के बाहर इकट्ठा हो गए थे। बार एसोसिएशन के पदाधिकारी और प्रशासन के आलाधिकारी मामला शांत करा रहे थे तो बाहर वकीलों को गुस्सा बढ़ता जा रहा था। वकील दारोगा को बाहर निकालने की मांग कर रहे थे। पुलिस के लिए वकीलों की उस भीड़ से दारोगा को बचाना मुमकिन नहीं था। कोर्ट पुलिस और वकीलों से खचाखच भर गई थी। इसी बीच धक्का-मुक्की में एडीएम सिटी गिर गई थीं। बस फिर क्या था, पुलिस वकीलों पर टूट पड़ी थी। पुलिस ने ताबड़तोड़ लाठियां चलाना शुरू कर दिया था। इससे वहां भगदड़ मच गई थी। आधा दर्जन से ज्यादा वकीलों के सिर फट गए तो कई वकील और वादकारी भगदड़ में गिरकर घायल हो गए थे। उस वक्त पुलिस को जो मिला उसे गिरा-गिराकर पीटा गया, जिसके बाद दारोगा राघवेंद्र को निकालकर पुलिस ले गई थी। - - - - - - - - - - - - - -    निर्दोष का सम्मान बचाएगी अग्रिम जमानत, फायदा मिलेगा तो नुकसान की भी संभावनाएं बढ़ेंगी यह भी पढ़ें अगले दिन एक-दूसरे पर रहे हमलावर  इस घटना के ठीक दूसरे दिन 8 अप्रैल को वकील शताब्दी प्रवेश द्वार पर एकत्र होकर पुलिस के खिलाफ नारेबाजी करने लगे थे तो दूसरी ओर एसएसपी कार्यालय में भी भारी पुलिस और पीएसी बल तैनात था। अदालत के काम से जो पुलिसकर्मी कचहरी के भीतर पहुंचे उनके साथ मारपीट और वर्दी फाड़ने की सूचना बाहर तैनात पुलिस कर्मियों को मिली तो वह भी उग्र हो गए थे। दिन भर इसी तरह गोरिल्ला युद्ध होता रहा था। दोपहर करीब तीन बजे दोनों ओर से पत्थर चलने लगे थे। वकीलों के चौपहिया और दोपहिया वाहनों के शीशे तोड़े जाने लगे थे। जिसका जवाब वकीलों ने भी दिया और पुलिस के वाहन तोड़ने शुरू कर दिए थे। जवाबी कार्यवाही में पुलिस कर्मियों ने वकीलों के चौपहिया वाहन तोड़े, डेढ़ दर्जन से ज्यादा दोपहिया वाहनों को गिराकर आग लगा दी। जमकर पत्थरबाजी और फाय¨रग हुई थी। पुलिस ने वकीलों को दौड़ाया, जो वकील मिले उन पर चारों ओर से लाठियां बरसीं थीं। इसके बाद पुलिस और पीएसी रजिस्ट्री कार्यालय की ओर से कचहरी में घुसी और जो वकील जहां मिला उसे पीट दिया गया था। चेंबरों में भी तोड़फोड़ की गई थी और कचहरी पर पुलिस ने कब्जा कर एक-एक चेंबर से वकीलों को निकालकर पीटा था। आलम यह था कि अधिकतर वकील बिना चेंबरों को ताला लगाए भागने को मजबूर हो गए थे। युवा बुजुर्ग जो मिला वह पुलिसिया कहर का शिकार हुआ था। मुकदमे की फाइलें तक नहीं छोड़ी गई। बार एसोसिएशन तत्कालीन महामंत्री नरेश चंद्र त्रिपाठी बताते हैं कि उच्च न्यायालय की तीन सदस्यीय कमेटी ने जांच रिपोर्ट तैयार की थी लेकिन वह आज तक नहीं खुल सकी है। जांच रिपोर्ट खुली तो इसकी आंच कई अफसरों तक पहुंचेगी। - - - - - - - - - - - - - -  इटावा चली गई थी कचहरी   27 साल बाद मिला 27 वर्गमीटर का मकान यह भी पढ़ें घटना के बाद से ही वकील हड़ताल पर थे। वादकारियों को हो रहे नुकसान और जेल में बढ़ती संख्या को देखते हुए 15 दिन बाद ही कचहरी इटावा स्थानांतरित कर दी गई थी। कचहरी का पूरा स्टाफ बस से इटावा जाता था। इसके बाद वकीलों ने उच्च न्यायालय का घेराव किया था और लोकसभा में भी मामला गूंजा था। चीफ जस्टिस और कानून मंत्री से मुलाकात के बाद करीब ढाई माह बाद कचहरी वापस आई थी।

एक मामले में कार्रवाई को लेकर दारोगा राघवेंद्र सिंह से अधिवक्ता आशीष सचान का विवाद चल रहा था। 7 अप्रैल 2010 दोपहर करीब 12.30 बजे दारोगा एक मामले में पेशी पर कोर्ट पहुंचा। प्रथम तल पर वह जीने से नीचे उतर रहा था तभी उसका वकील से आमना-सामना हो गया था। दरोगा को देखते ही आशीष भड़क गया और दोनों के बीच गाली-गलौज होने लगी थी। आसपास वकील जुटे तो बात धक्का मुक्की से मारपीट तक पहुंच गई थी। इससे पहले वकील उग्र होते दारोगा ने उन पर रिवाल्वर तान दी थी। वकील जान बचाने को भागे तो दारोगा भी जान बचाने के लिए भागकर एडीजे प्रथम कोर्ट में चला गया था। दारोगा ने आलाधिकारियों को फोन पर सूचना दी तो तत्कालीन एडीएम सिटी शकुंतला गौतम, एसपी रवि कुमार छवि और भारी पुलिस बल के साथ मौके पर पहुंचे थे। दारोगा वकील विवाद की सूचना कचहरी में आग की तरह फैली तो सैकड़ों वकील भी नारेबाजी करते हुए कोर्ट के बाहर इकट्ठा हो गए थे। बार एसोसिएशन के पदाधिकारी और प्रशासन के आलाधिकारी मामला शांत करा रहे थे तो बाहर वकीलों को गुस्सा बढ़ता जा रहा था। वकील दारोगा को बाहर निकालने की मांग कर रहे थे। पुलिस के लिए वकीलों की उस भीड़ से दारोगा को बचाना मुमकिन नहीं था। कोर्ट पुलिस और वकीलों से खचाखच भर गई थी। इसी बीच धक्का-मुक्की में एडीएम सिटी गिर गई थीं। बस फिर क्या था, पुलिस वकीलों पर टूट पड़ी थी। पुलिस ने ताबड़तोड़ लाठियां चलाना शुरू कर दिया था। इससे वहां भगदड़ मच गई थी। आधा दर्जन से ज्यादा वकीलों के सिर फट गए तो कई वकील और वादकारी भगदड़ में गिरकर घायल हो गए थे। उस वक्त पुलिस को जो मिला उसे गिरा-गिराकर पीटा गया, जिसके बाद दारोगा राघवेंद्र को निकालकर पुलिस ले गई थी।

अगले दिन एक-दूसरे पर रहे हमलावर

इस घटना के ठीक दूसरे दिन 8 अप्रैल को वकील शताब्दी प्रवेश द्वार पर एकत्र होकर पुलिस के खिलाफ नारेबाजी करने लगे थे तो दूसरी ओर एसएसपी कार्यालय में भी भारी पुलिस और पीएसी बल तैनात था। अदालत के काम से जो पुलिसकर्मी कचहरी के भीतर पहुंचे उनके साथ मारपीट और वर्दी फाड़ने की सूचना बाहर तैनात पुलिस कर्मियों को मिली तो वह भी उग्र हो गए थे। दिन भर इसी तरह गोरिल्ला युद्ध होता रहा था। दोपहर करीब तीन बजे दोनों ओर से पत्थर चलने लगे थे। वकीलों के चौपहिया और दोपहिया वाहनों के शीशे तोड़े जाने लगे थे। जिसका जवाब वकीलों ने भी दिया और पुलिस के वाहन तोड़ने शुरू कर दिए थे। जवाबी कार्यवाही में पुलिस कर्मियों ने वकीलों के चौपहिया वाहन तोड़े, डेढ़ दर्जन से ज्यादा दोपहिया वाहनों को गिराकर आग लगा दी। जमकर पत्थरबाजी और फाय¨रग हुई थी। पुलिस ने वकीलों को दौड़ाया, जो वकील मिले उन पर चारों ओर से लाठियां बरसीं थीं। इसके बाद पुलिस और पीएसी रजिस्ट्री कार्यालय की ओर से कचहरी में घुसी और जो वकील जहां मिला उसे पीट दिया गया था। चेंबरों में भी तोड़फोड़ की गई थी और कचहरी पर पुलिस ने कब्जा कर एक-एक चेंबर से वकीलों को निकालकर पीटा था। आलम यह था कि अधिकतर वकील बिना चेंबरों को ताला लगाए भागने को मजबूर हो गए थे। युवा बुजुर्ग जो मिला वह पुलिसिया कहर का शिकार हुआ था। मुकदमे की फाइलें तक नहीं छोड़ी गई। बार एसोसिएशन तत्कालीन महामंत्री नरेश चंद्र त्रिपाठी बताते हैं कि उच्च न्यायालय की तीन सदस्यीय कमेटी ने जांच रिपोर्ट तैयार की थी लेकिन वह आज तक नहीं खुल सकी है। जांच रिपोर्ट खुली तो इसकी आंच कई अफसरों तक पहुंचेगी। – – – – – – – – – – – – – –

इटावा चली गई थी कचहरी

घटना के बाद से ही वकील हड़ताल पर थे। वादकारियों को हो रहे नुकसान और जेल में बढ़ती संख्या को देखते हुए 15 दिन बाद ही कचहरी इटावा स्थानांतरित कर दी गई थी। कचहरी का पूरा स्टाफ बस से इटावा जाता था। इसके बाद वकीलों ने उच्च न्यायालय का घेराव किया था और लोकसभा में भी मामला गूंजा था। चीफ जस्टिस और कानून मंत्री से मुलाकात के बाद करीब ढाई माह बाद कचहरी वापस आई थी।

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