अब Indian Railways बोर्ड के नए चेयरमैन बनेगे अश्वनी लोहानी....

अब Indian Railways बोर्ड के नए चेयरमैन बनेगे अश्वनी लोहानी….

ट्रेन दुर्घटनाओं के संकट से जूझ रहे रेलवे बोर्ड के चेयरमैन बनाए गए अश्वनी लोहानी पर अब बड़ी जिम्मेदारी आ गई। जब एयर इंडिया की हालत खस्ता हुई तो उन्हें एयर इंडिया का सीएमडी बनाया गया। अब जब रेलवे संकट से जूझ रहा है ऐसे में अश्वनी को बड़ी ही सूझबूझ से एक्शन लेने की जरूरत है। अश्वनी लोहानी का यूपी के कानपुर शहर से गहरा जुड़ाव है। उनका बचपन हर्ष नगर में बीता है। शुरुआती शिक्षा दीक्षा कैंट के सेंट एलॉयसिस हाईस्कूल से हुई। यहां से उन्होंने सीनियर कैंब्रिज (इंटरमीडिएट समकक्ष) तक की पढ़ाई की। उनके पिता बसंत कुमार लोहानी वीआईपी रोड स्थित गवर्नमेंट सेंट्रल टेक्सटाइल इंस्टीट्यूट के प्रिंसिपल थे। लोहानी को कानपुर से खासा लगाव है। जब भी यहां आते हैं, हर्ष नगर स्थित अपने किराए के मकान मेें जरूर जाते हैं। अब Indian Railways बोर्ड के नए चेयरमैन बनेगे अश्वनी लोहानी....अभी अभी: गुजरात के मिशन-50 को भाजपा ने दी धार….

तब एयर इंडिया का सीएमडी बनाया गया था

जब एयर इंडिया की हालत खस्ता हुई तो उन्हें एयर इंडिया का सीएमडी बनाया गया। अब जब रेलवे संकट से जूझ रहा है, तो भी उन्हें बड़ी जिम्मेदारी दी गई है। अश्वनी में रेलवे में दिल्ली डीआरएम, उत्तर रेलवे के चीफ मेकैनिकल इंजीनियर और रेल म्यूजियम के प्रमुख भी रह चुके हैं। इंस्टीट्यूट के प्रोफेसर मुकेश सिंह बताते हैं कि वह कानपुर से अपनी यादें जुड़ी रखना चाहते हैं। उन्होंने उनके सामने उनके पिता बसंत कुमार लोहानी के नाम से व्याख्यानमाला कराने की बात कही तो वह राजी हो गए और हर संभव मदद का भरोसा भी दिया। ताकि उनका कानपुर आना जाना लगा रहे।
अश्वनी लोहानी का एडमीशन कैंट के सेंट एलॉयसिस हाईस्कूल में कक्षा पांच में 18 जुलाई 1967 को हुआ था। उन्होंने यहां पर सीनियर कैंब्रिज (इंटरमीडिएट समकक्ष) तक पढ़ाई की। इस स्कूल में 10 दिसंबर 1973 तक पढ़े। उनकी दिलचस्पी मैकेनिकल इंजीनियरिंग में थी, इसलिए उन्होंने कानपुर के टेक्टसाइल इंस्टीट्यूट में बीटेक में एडमीशन तो लिया लेकिन तीन महीने बाद ही छोड़ दिया क्योंकि उन्हें बिहार के जमालपुर में इंडियन रेलवे इंस्टीट्यूट ऑफ मेकैनिकल एंड इलेक्ट्रिकल इजीनियरिंग में दाखिला मिल गया। उन्होंने यहां से इलेक्ट्रॉनिक्स और टेलीकॉम इंजीनियरिंग की।
 
पिता इंग्लैंड की लीड्स यूनिवर्सिटी में पढ़कर बने प्रिंसिपल
अश्वनी लोहानी के पिता बसंत कुमार लोहानी उत्तराखंड के रहने वाले थे। नैनीताल और अल्मोड़ा में उनका घर है। उन्होंने इंग्लैंड की लीड्स यूनिवर्सिटी से टेक्सटाइल इंजीनियरिंग के बाद पीएचडी की। इसके बाद शहर के गवर्नमेंट सेेंट्रल टेक्सटाइल इंस्टीट्यूट (जीसीटीआई) में पढ़ाने लगे। वह यहां हर्ष नगर में किराये पर रहते थे। बसंत कुमार के परिवार में बेटा अश्वनी और बेटी कुमकुम थी। बसंत 1965 से 1974 तक जीसीटीआई में वाइस प्रिंसिपल रहे। 1974 से 1983 तक वह प्रिंसिपल रहे। इसके बाद इंस्टीट्यूट की कालोनी में बने बंगले में शिफ्ट हो गए। रिटायरमेंट के बाद इलाहाबाद, लखनऊ में रहे और बाद में अपने बेटे अश्वनी के साथ दिल्ली में रहने लगे। 2014 में उनकी मृत्यु हो गई।
पीएम की कोर टीम में हैं अश्वनी, कानपुर से बेहद लगाव
अश्वनी लोहानी भले ही दिल्ली में रहते हों लेकिन उनका कानपुर से बहुत लगाव है। वे यहां अक्सर आते रहते हैं। एक नवंबर 2014 को जीसीटीआई के शताब्दी समारोह में भी शहर आए थे। घर देखा और कालोनी के लोगों से मिले भी। जीसीटीआई के प्रोफेसर वीके मल्होत्रा ने बताया कि अश्वनी उनसे इंस्टीट्यूट में जूनियर थे। उनके पिता बसंत कुमार लोहानी ने ही उन्हें यहां नौकरी में ज्वाइन कराया था। वे बहुत ईमानदार थे। उनकी छाप बेटे अश्वनी पर है। अश्वनी प्रधानमंत्री की कोर टीम के सदस्य हैं।
हर्ष नगर के घर से जुड़ी हैं बहुत यादें
अश्वनी लोहानी कानपुर के हर्ष नगर में रामसनेही कटियार के मकान में किराये पर रहते थे। बचपन के इस घर और आरएस कटियार के बेटे सुबोध कटियार के बहुत करीबी थे। सुबोध कटियार अब इस दुनिया में नहीं है लेकिन अश्वनी का उनके साथ बहुत समय बीता है। सुबोध कटियार के बेटे तरुण बताते हैं कि अश्वनी चाचा ने एक किताब लिखी है। इसमें उन्होंने उनके पिता सुबोध को भी जगह दी है। आज भी जब वह कानपुर आते हैं तो घर जरूर आते हैं। 
कानपुर के एक्सीडेंट जोन पर होगा फोकस 
लवे बोर्ड के चेयरमैन बनने के बाद कानपुर और उसके आसपास हुए रेल हादसों पर उनका फोकस हो सकता है। पुखरायां, रूरा, उन्नाव, औरैया में हुई दुर्घटनाओं के बाद कानपुर रेल एक्सीडेंट जोन बन चुका है। अश्वनी रेलवे में मानव संसाधनों को बढ़ाने के पक्षधर हैं। मुजफ्फरनगर खतौली में उत्कल एक्सप्रेस के डिरेलमेंट के बाद उन्होंने कहा था कि कि रेलवे के ढांचे में सुधार के साथ-साथ वास्तविक मानव संसाधन पर जोर देना जरूरी है।
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