मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने प्रदेश के हजारों पंचायत प्रतिनिधियों का मानदेय बढ़ा दिया है। अब सरकार ने उत्तराखंड में ग्राम प्रधानों का मानदेय यूपी के समान कर दिया है। साथ ही अन्य सभी स्तर के पंचायत प्रतिनिधियों का मानदेय बढ़ाने के लिए भी सहमति प्रदान कर दी है।
उत्तराखंड में पंचायत प्रतिनिधियों का मानदेय पिछली बार दिसंबर 2017 में बढ़ाया गया था। तब से सभी पंचायत प्रतिनिधि, मानदेय को नए सिरे से तय करने के लिए राज्य सरकार पर दबाव बना रहे थे। अब तक प्रदेश में ग्राम प्रधानों को 1500 रुपये प्रति माह का मानेदय मिलता था, जिसे अब सरकार ने बढ़ाकर एक झटके में ही 3500 रुपये कर दिया है।
इसी के साथ राज्य सरकार ने उप प्रधान, क्षेत्र पंचायत, जिला पंचायत सदस्य के साथ ही प्रमुख और जिला पंचायत अध्यक्ष का भी मानदेय बढ़ाने की घोषणा की है। जल्द इस बारे में अधिकारिक आदेश भी जारी कर दिए जाएंगे। इसके अलावा जिला पंचायत अध्यक्ष लंबे समय से सरकार से अपने आप को राज्यमंत्री स्तर का दर्जा देने की भी मांग कर रहे थे। मुख्यमंत्री ने इस पर भी अपनी सहमति व्यक्त कर दी है।
आंगनबाड़ी वर्करों का मानदेय भी बढ़ाया
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने प्रदेश की 35 हजार से अधिक आंगनबाडी वर्कर का भी मानदेय बढ़ा दिया है। अब तक उन्हें बहुत कम मानदेय मिलता था। लेकिन वर्तमान सीएम पुष्कर सिंह धामी ने अब एक झटके में ही मुख्य कार्यकर्ताओं का मानदेय 1800 जबकि मिनी और सहायिकाओं का मानदेय 1500-1500 रुपये प्रति माह बढ़ा दिया है। उत्तराखंड में 14,947 आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, 14,947 सहायिका और 5120 मिनी आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को इसका लाभ मिलेगा। इसके साथ ही सीएम ने आंगनबाड़ी वर्कर के लिए विशेष प्रोत्साहन पैकेज भी घोषित किया है, जिसमें उन्हें मार्च तक प्रति माह दो-दो हजार रुपये मिलने हैं। इसके अलावा सीएम ने रक्षाबंधन के अवसर पर भी आंगनबाड़ी वर्कर को एक-एक हजार रुपये का उपहार दिया।
अनाथ आश्रमों में पढ़ने वाले बच्चों को 5 फीसदी आरक्षण
उत्तराखंड सरकार ने पहली बार राजकीय अनाथ आश्रमों में पले बढ़े बच्चों को सरकारी नौकरी में पांच प्रतिशत आरक्षण देने का भी निर्णय लिया है। अब तक सिर्फ महाराष्ट्र में ही अनाथ बच्चों को सरकारी नौकरी में एक प्रतिशत आरक्षण मिलता आया है। इस तरह उत्तराखंड इन जरूरतमंद बच्चों को पांच प्रतिशत आरक्षण देने वाला पहला राज्य बन गया है। दरअसल अनाथ आश्रमों में पल रहे बच्चों की कोई पारिवारिक पहचान नहीं होती, इसलिए उन्हें जातिगत आरक्षण का लाभ भी नहीं मिल पा रहा था। सरकार ने ऐसे बच्चों के लिए यह खास व्यवस्था की है। राज्य के विभिन्न आश्रमों में ऐसे करीब एक हजार बच्चे पल रहे हैं, जो अब आरक्षण का फायदा लेकर अपना भविष्य संवार सकेंगे। राज्य के स्थानीय निवासी ऐसे प्रभावित बच्चे, जिनके जैविक या दत्त माता-पिता दोनों की मृत्यु हो चुकी है, वो इसका लाभ उठा सकते हैं।
TOS News Latest Hindi Breaking News and Features