राज्यपाल के पाले में गेंद मंगलवार को आए नतीजों के बाद अब पूरा दारोमदार राज्यपाल पर है कि वो किसे सरकार बनाने के लिए बुलाते हैं। राजभवन की भूमिका : - परिपाटी सबसे बड़ी पार्टी को सरकार बनाने का मौका देने की रही है। - चुनाव पूर्व गठबंधन हो तो सबसे ज्यादा सीटों के आधार पर उसे मौका मिल सकता है। - लेकिन कर्नाटक में चुनाव पूर्व गठबंधन नहीं है। - त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति में राज्यपाल को विवेकाधिकार से फैसला लेने का अधिकार। - ऐसे में जिस पार्टी या गठबंधन को पहले मौका मिल जाता है, उसे स्थिति का लाभ मिलने की संभावना बन सकती है। - इसीलिए अब पहले मौका पाने की होड़ शुरू हो गई है। कांग्रेस के कुछ लिंगायत विधायक खफा इस बीच, कांग्रेस-जदएस के मिलकर सरकार बनाने की तैयारी में पेंच फंस गया है। सूत्रों के अनुसार, कांग्रेस के कुछ लिंगायत विधायकों ने कुमारस्वामी को मुख्यमंत्री बनाए जाने का विरोध कर दिया है। खबर यह भी आ रही है कि कांग्रेस अपने विधायकों को पार्टी छोड़ने के डर से आंध्र प्रदेश या पंजाब भेजने की योजना बना रही है। जदएस से भी टूट सकते हैं कुछ माना जा रहा है कि चूंकि कांग्रेस और जदएस का चुनाव पूर्व गठबंधन नहीं था और भाजपा सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी है, इसलिए उसे पहला न्योता मिलेगा। सूत्रों की मानी जाए तो जदएस के कुछ विधायक भी भाजपा के साथ जाना चाहते हैं। ऐसे में स्थितियां बदलें तो आश्चर्य नहीं। अगर ऐसा हुआ तो भाजपा व राजग की सरकार 21 राज्यों में हो जाएगी। कांग्रेस और सिमटकर सिर्फ तीन राज्यों-पंजाब, मिजोरम और पुडुचेरी में रह जाएगी। कर्नाटक विधानसभा : दलीय स्थिति कुल सीटें : 224 चुनाव हुए : 222 बहुमत का आंकड़ा : 112 भाजपा : 104 (+65) कांग्रेस : 78 (-44) जदएस + : 38 (-2) अन्य : 02 (-20) - (शेष दो सीटों पर चुनाव होने के बाद बहुमत का आंकड़ा 113 हो जाएगा) संभावित सियासी बिसात भाजपा :- स्थिति : पार्टी को 104 सीटें। ऐसे में उसे बहुमत के लिए कम से कम आठ विधायकों की जरूरत होगी। दो अन्य का समर्थन मिलने पर भी बहुमत से छह अंक दूर। रणनीति : - कांग्रेस/जदएस के कुछ विधायकों से इस्तीफे दिलाकर सदन की प्रभावी संख्या कम कर अभी बहुमत साबित करने की कोशिश करे। - विपक्षी दलों में तोड़फोड़ से उसके विधायकों को अपने पाले में करे। कांग्रेस :- स्थिति : 78 सीटों के साथ दूसरे नंबर पर। बसपा के साथ जदएस की 38 सीटों को जोड़ने पर बहुमत से चार ज्यादा। दोनों पार्टियां टूट या बगावत से बची रहीं तो सरकार गठन में अड़चन नहीं। रणनीति : - भाजपा को सत्ता से दूर रखने के लिए जदएस को समर्थन का एलान किया। - जदएस ने भी कांग्रेस से मिले ऑफर को हाथों-हाथ लिया।

LIVE: JDS के दो विधायक लापता, नहीं पहुंचे बैठक में

कर्नाटक विधानसभा चुनाव के नतीजों में किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला। हालांकि, भाजपा 104 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी लेकिन बहुमत से अब भी 8 सीट दूर है। वहीं कांग्रेस ने जेडीएस को समर्थन देकर बहुमत का आंकड़ा जुटा लिया है। अब सब कुछ राज्य के राज्यपाल के हाथ में हैं।राज्यपाल के पाले में गेंद  मंगलवार को आए नतीजों के बाद अब पूरा दारोमदार राज्यपाल पर है कि वो किसे सरकार बनाने के लिए बुलाते हैं।  राजभवन की भूमिका :  - परिपाटी सबसे बड़ी पार्टी को सरकार बनाने का मौका देने की रही है।  - चुनाव पूर्व गठबंधन हो तो सबसे ज्यादा सीटों के आधार पर उसे मौका मिल सकता है।  - लेकिन कर्नाटक में चुनाव पूर्व गठबंधन नहीं है।  - त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति में राज्यपाल को विवेकाधिकार से फैसला लेने का अधिकार।  - ऐसे में जिस पार्टी या गठबंधन को पहले मौका मिल जाता है, उसे स्थिति का लाभ मिलने की संभावना बन सकती है।  - इसीलिए अब पहले मौका पाने की होड़ शुरू हो गई है।  कांग्रेस के कुछ लिंगायत विधायक खफा  इस बीच, कांग्रेस-जदएस के मिलकर सरकार बनाने की तैयारी में पेंच फंस गया है। सूत्रों के अनुसार, कांग्रेस के कुछ लिंगायत विधायकों ने कुमारस्वामी को मुख्यमंत्री बनाए जाने का विरोध कर दिया है। खबर यह भी आ रही है कि कांग्रेस अपने विधायकों को पार्टी छोड़ने के डर से आंध्र प्रदेश या पंजाब भेजने की योजना बना रही है।  जदएस से भी टूट सकते हैं कुछ  माना जा रहा है कि चूंकि कांग्रेस और जदएस का चुनाव पूर्व गठबंधन नहीं था और भाजपा सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी है, इसलिए उसे पहला न्योता मिलेगा। सूत्रों की मानी जाए तो जदएस के कुछ विधायक भी भाजपा के साथ जाना चाहते हैं। ऐसे में स्थितियां बदलें तो आश्चर्य नहीं। अगर ऐसा हुआ तो भाजपा व राजग की सरकार 21 राज्यों में हो जाएगी। कांग्रेस और सिमटकर सिर्फ तीन राज्यों-पंजाब, मिजोरम और पुडुचेरी में रह जाएगी।  कर्नाटक विधानसभा : दलीय स्थिति  कुल सीटें : 224  चुनाव हुए : 222  बहुमत का आंकड़ा : 112  भाजपा : 104 (+65)  कांग्रेस : 78 (-44)  जदएस + : 38 (-2)  अन्य : 02 (-20)  - (शेष दो सीटों पर चुनाव होने के बाद बहुमत का आंकड़ा 113 हो जाएगा)  संभावित सियासी बिसात  भाजपा :-  स्थिति :   पार्टी को 104 सीटें। ऐसे में उसे बहुमत के लिए कम से कम आठ विधायकों की जरूरत होगी। दो अन्य का समर्थन मिलने पर भी बहुमत से छह अंक दूर।  रणनीति :   - कांग्रेस/जदएस के कुछ विधायकों से इस्तीफे दिलाकर सदन की प्रभावी संख्या कम कर अभी बहुमत साबित करने की कोशिश करे।  - विपक्षी दलों में तोड़फोड़ से उसके विधायकों को अपने पाले में करे।  कांग्रेस :-  स्थिति :   78 सीटों के साथ दूसरे नंबर पर। बसपा के साथ जदएस की 38 सीटों को जोड़ने पर बहुमत से चार ज्यादा। दोनों पार्टियां टूट या बगावत से बची रहीं तो सरकार गठन में अड़चन नहीं।  रणनीति :  - भाजपा को सत्ता से दूर रखने के लिए जदएस को समर्थन का एलान किया।  - जदएस ने भी कांग्रेस से मिले ऑफर को हाथों-हाथ लिया।

इस बीच, बड़ी खबर यह है कि बेंगलुरू के एक पांच सितारा होटल में हो रही जेडीएस विधायक दल की बैठक में दो विधायक नहीं पहुंचे हैं। इन दो विधायकों के नाम हैं – राजा वेंकटप्पा नायक और वेंकट राव नाडागौड़ा।

इससे पहले बुधवार सुबह से तीनों दलों- भाजपा, कांग्रेस और जेडीएस में बैठकों का दौर जारी है। खबर है कि सबसे बड़ी पार्टी होने के आधार पर आज भाजपा अपना दावा पेश करेगी। भाजपा के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार येदियुरप्पा आज सुबह 10.30 बजे विधायक दल की बैठक में हिस्सा लेंगे जहां उन्हें दल का नेता चुना जाएगा और इसके बाद वो राज्यपाल से मिलकर सरकार बनाने का दावा पेश कर सकते हैं।

वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस ने जेडीएस विधायकों की नाराजगी की खबरों का खंडन किया है। कांग्रेस नेता गुलाम बनी आजाद और सिद्धारमैया ने कहा कि सभी विधायक जेडीएस के साथ हैं और उनका पार्टी पर भरोसा कायम है। कोई कहीं नहीं जा रहा।

वहीं कांग्रेस नेता रामालिंगा रेड्डी ने कहा कि हमें हमारे सभी विधायकों पर भरोसा है। भाजपा हमारे विधायकों को पाने की पूरी कोशिश में लगी है। उन्हें लोकतंत्र में विश्वास नहीं है, भाजपा को बस सत्ता चाहिए।

जेडीएस नेता सरवना ने कहा कि मुझे नहीं पता भाजपा हमारे विधायकों को क्या प्रलोभन दे रही है, लेकिन वो हमारे लोगों को कॉल कर रहे हैं। हालांकि, हमारे विधायक प्रतिक्रिया नहीं दे रहे। हम साथ हैं और कोई भी हमारी पार्टी को छू नहीं सकता।

राज्यपाल के पाले में गेंद

मंगलवार को आए नतीजों के बाद अब पूरा दारोमदार राज्यपाल पर है कि वो किसे सरकार बनाने के लिए बुलाते हैं।

राजभवन की भूमिका :

– परिपाटी सबसे बड़ी पार्टी को सरकार बनाने का मौका देने की रही है।

– चुनाव पूर्व गठबंधन हो तो सबसे ज्यादा सीटों के आधार पर उसे मौका मिल सकता है।

– लेकिन कर्नाटक में चुनाव पूर्व गठबंधन नहीं है।

– त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति में राज्यपाल को विवेकाधिकार से फैसला लेने का अधिकार।

– ऐसे में जिस पार्टी या गठबंधन को पहले मौका मिल जाता है, उसे स्थिति का लाभ मिलने की संभावना बन सकती है।

– इसीलिए अब पहले मौका पाने की होड़ शुरू हो गई है।

कांग्रेस के कुछ लिंगायत विधायक खफा

इस बीच, कांग्रेस-जदएस के मिलकर सरकार बनाने की तैयारी में पेंच फंस गया है। सूत्रों के अनुसार, कांग्रेस के कुछ लिंगायत विधायकों ने कुमारस्वामी को मुख्यमंत्री बनाए जाने का विरोध कर दिया है। खबर यह भी आ रही है कि कांग्रेस अपने विधायकों को पार्टी छोड़ने के डर से आंध्र प्रदेश या पंजाब भेजने की योजना बना रही है।

जदएस से भी टूट सकते हैं कुछ

माना जा रहा है कि चूंकि कांग्रेस और जदएस का चुनाव पूर्व गठबंधन नहीं था और भाजपा सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी है, इसलिए उसे पहला न्योता मिलेगा। सूत्रों की मानी जाए तो जदएस के कुछ विधायक भी भाजपा के साथ जाना चाहते हैं। ऐसे में स्थितियां बदलें तो आश्चर्य नहीं। अगर ऐसा हुआ तो भाजपा व राजग की सरकार 21 राज्यों में हो जाएगी। कांग्रेस और सिमटकर सिर्फ तीन राज्यों-पंजाब, मिजोरम और पुडुचेरी में रह जाएगी।

कर्नाटक विधानसभा : दलीय स्थिति

कुल सीटें : 224

चुनाव हुए : 222

बहुमत का आंकड़ा : 112

भाजपा : 104 (+65)

कांग्रेस : 78 (-44)

जदएस + : 38 (-2)

अन्य : 02 (-20)

– (शेष दो सीटों पर चुनाव होने के बाद बहुमत का आंकड़ा 113 हो जाएगा)

संभावित सियासी बिसात

भाजपा :-

स्थिति :

पार्टी को 104 सीटें। ऐसे में उसे बहुमत के लिए कम से कम आठ विधायकों की जरूरत होगी। दो अन्य का समर्थन मिलने पर भी बहुमत से छह अंक दूर।

रणनीति :

– कांग्रेस/जदएस के कुछ विधायकों से इस्तीफे दिलाकर सदन की प्रभावी संख्या कम कर अभी बहुमत साबित करने की कोशिश करे।

– विपक्षी दलों में तोड़फोड़ से उसके विधायकों को अपने पाले में करे।

कांग्रेस :-

स्थिति :

78 सीटों के साथ दूसरे नंबर पर। बसपा के साथ जदएस की 38 सीटों को जोड़ने पर बहुमत से चार ज्यादा। दोनों पार्टियां टूट या बगावत से बची रहीं तो सरकार गठन में अड़चन नहीं।

रणनीति :

– भाजपा को सत्ता से दूर रखने के लिए जदएस को समर्थन का एलान किया।

– जदएस ने भी कांग्रेस से मिले ऑफर को हाथों-हाथ लिया।

 

 
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