आखिर क्यों प्रवासी पक्षियों की तादात कम हो रही है, पढ़े पूरी रिपोर्ट   

 ग्रीनमैन के नाम से मशहूर पर्यावरणविद विजय कुमार बघेल का प्रवासी पक्षियों को अब देश की आबोहवा कम रास आ रही है। इसके चलते देश में पक्षी विहारों में विदेशी मेहमानों की आवक कम हो रही है। प्रवासी पक्षियों की संख्‍या में कमी का एक प्रमुख कारण जलवायु परिवर्तन को माना जा रहा है। पर्यावरणविदों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन के चलते मौसम में जबरदस्‍त बदलाव देखने को मिला है। उनका कहना है कि यदि प्रवासी पक्षियों के दीर्घकालिक कारणों पर बात करें तो जलवायु परिवर्तन इसका एक प्रमुख कारण हो सकता है।

इनका कहना है कि ठंडे देशों से आने वाले इन प्रवासी पक्षियों को हिमालय से पहले ही अपनी मनचाही जलवायु मिल जा रही है, इसलिए वे यहां कम आ रहे हैं। आइए जानते हैं कि जलवायु परिवर्तन के चलते प्रवासी पक्षियों पर क्‍या असर पड़ रहा है। पर्यावरणविदों का कहना है प्रवासी प्रजातियों में वे जानवर व पक्षी समूह शामिल हैं, जो भोजन, धूप, तापमान, जलवायु आदि जैसे विभिन्न कारकों के कारण वर्ष के अलग-अलग समय के दौरान एक आवास से दूसरे आवास में चले जाते हैं। आवासों के बीच आंदोलन कभी-कभी हजारों मील/किलोमीटर से अधिक हो सकता है। इस दौरान प्रवासी पक्षी सूर्य और सितारों से आकाशीय संकेतों, पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र और मानसिक मानचित्रों का उपयोग करके नेविगेट करते हैं।

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2- उन्‍होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन का प्रमुख कारक मानव है। मानव प्राकृतिक पर्यावरण को खतरे में डालने वाले संशोधनों और प्रवासी पक्षियों की इन प्रजातियों के आवासों को नष्ट कर देता है। प्रजनन के लिए उपयुक्त स्थानों को खोजने के लिए प्रवासी पक्षियों को यात्रा करने की जरूरत होती है। दुनिया भर में पक्षियों की 11,000 प्रजातियां हैं। इनमें से 1.800 ऐसी हैं, जिन्हें यात्रा करने की आवश्यकता है और इसलिए वे प्रवासी हैं।

3- ग्रीनमैन का कहना है कि जलवायु परिवर्तन बढ़ते तापमान और मौसम के आगे बढ़ने का कारण बनता है। यही कारण है कि इसने पक्षियों की कई प्रजातियों को अपने प्रवासी फेनोलाजी को बदलने के लिए मजबूर किया है। इसने उन्हें अपने प्रजनन क्षेत्रों, अन्य प्रजातियों को अपने सर्दियों के समय को बदलने के लिए और दूसरों को अपने प्रवास की अवधि को कम करने व बदलने के लिए मजबूर किया है। अंततः इस परिवर्तन से कई प्रवासी प्रजातियों का अस्तित्व खतरे में है। हालांकि, प्रवासी पक्षियों के व्यवहार में परिवर्तन के नकारात्मक प्रभाव पूरी तरह से स्पष्ट नहीं हैं, लेकिन इसके परिणाम स्पष्ट हैं। उन्‍होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन पक्षियों की पूरी जैविक श्रृंखला को प्रभावित करता है, क्योंकि शिकार करने वाले पक्षियों को अपने शिकार के पैटर्न को बदलने के लिए भी मजबूर किया जाता है।

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4- उन्‍होंने कहा कि विविध प्रकार के वातावरण में भिन्न-भिन्न प्रकार के जीव पाए जाते हैं। सभी जीव, अपने चारों ओर के वातावरण से प्रभावित होते हैं। ये जीव अपने वातावरण के साथ एक विशिष्ट तंत्र का निर्माण करते हैं। इसे पारिस्थितिकी तंत्र कहते हैं। जीवों और वातावरण के इस संबंध को ही पारिस्थितिकी कहा जाता है। पारिस्थितिकी तंत्र की चुंबकीय शक्ति प्रवासी पक्षियों को अपनी ओर खींचती है। उन्‍होंने कहा कि इसे समझने के लिए हम कल्पना करें एक तालाब में जहां मछलियां, मेंढ़क, शैवाल, जलीय पुष्प और अन्य कई जलीय जीव रहते हैं। ये सभी न केवल एक-दूसरे पर आश्रित हैं, अपितु जल, वायु, भूमि जैसे अजैविक घटकों के साथ भी पारस्परिक रूप से जुड़े हुए हैं। समुदाय का यह पूर्ण तंत्र, जिसमें अजैविक घटकों तथा जैविक घटकों का पारस्परिक संबंध ही पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करता है।

5- पर्यावरणविद बेघल ने कहा कि भारत में प्रवास करने वाले महत्वपूर्ण पक्षियों में अमूर फाल्कन्स, बार हेडेड घी, काली गर्दन वाली क्रेन, समुद्री कछुए, डुगोंग, हंपबैक व्हेल आदि शामिल हैं। भारतीय उप-महाद्वीप प्रमुख पक्षी फ्लाईवे नेटवर्क, यानी मध्य एशियाई फ्लाइवे (सीएएफ) का भी हिस्सा है। यह आर्कटिक और हिंद महासागरों के बीच के क्षेत्रों को कवर करता है, और 182 प्रवासी जल पक्षी प्रजातियों की कम से कम 279 आबादी को कवर करता है, जिसमें 29 विश्व स्तर पर संकटग्रस्त प्रजातियां शामिल हैं।

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यह भी जानें

1- बर्ड लाइफ इंटरनेशनल के एक अध्ययन ने निष्कर्ष निकाला कि दुनिया भर के पक्षी संकट में हैं। पक्षियों की लगभग 11,000 प्रजातियां हैं। इस अध्ययन में पाया गया कि उनमें से प्रत्येक 10 में से चार प्रजातियों की संख्या घट रही है। यह सभी प्रकार के आवासों में रहने वाले सभी प्रकार के पक्षियों के लिए सच है।

2- कुछ पक्षी, जैसे लाल-मुर्गा कठफोड़वा और कैलिफोर्निया को कोंडोर गंभीर रूप से संकटग्रस्त हैं। इन प्रजातियों के कुछ ही सदस्य जंगल में रहते हैं। आर्द्रभूमि में रहने वाली प्रजातियों की संख्‍या में वृद्धि हो रही है। हालांकि, अन्‍य आवासों में पक्षी संघर्ष कर रहे हैं। नद‍ियों के तटों, जंगलों से लेकर टूंड्रा तक पक्षियों की आबादी घट रही है। सबसे बड़ा परिवर्तन घास के मैदानों की प्रजातियों में होता है। खासकर इस सूची में गौरैया, ब्‍लैकबर्ड्स और लार्क्‍स शामिल हैं। इसकी बड़ी वजह यह है कि उनके आवास का 90 फीसद हिस्‍सा कृषि कार्य में उपयोग किया जा रहा है।

3- प्रवासी जीवों के नवीनतम आंकड़ों में पक्षियों की हिस्सेदारी 83 फीसद है। COP-13 से पहले, प्रवासी पक्षी प्रजातियों की संख्या 378 थी और अब यह 380 तक पहुंच गई है। पक्षी वर्ग में मूसिकैपिडे से संबंधित प्रवासी प्रजातियों की संख्या सर्वाधिक है। प्रवासी पक्षियों की सर्वाधिक संख्या वाला दूसरा समूह राप्टर्स या एक्सीपीट्रिडे (Accipitridae) वर्ग के उल्लू, गिद्ध और चील जैसे शिकारी पक्षियों का है। बड़ी संख्या में प्रवास करने वाले पक्षियों का एक अन्य समूह वेडर (wader) या जलपक्षियों का है। भारत में इन प्रवासी पक्षी प्रजातियों की संख्या 41 है, इसके बाद ऐनाटीडे वर्ग से संबंधित बत्तखों का स्थान आता है जिनकी संख्या 38 हैं।

 
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