
इस रण में न सिर्फ सियासत को अलग-अलग मोड़ देने वाले चेहरे सामने होंगे, बल्कि उनकी नीति, रणनीति और निर्णय भी जनता की अदालत में कसौटी पर कसे जाएंगे।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के क्षेत्र वाराणसी, सोनिया गांधी व राहुल गांधी के रायबरेली व अमेठी की जमीन की पहचान होगी तो कल्याण सिंह, राजनाथ सिंह, मुलायम सिंह यादव, अखिलेश यादव व आजम खां जैसे बड़े चेहरों में किसी की जन्मभूमि तो किसी की जन्म और कर्म दोनों भूमि की हवा का रुख भी पता चलेगा।
यह भी पता चलेगा कि इन पार्टियों की पहचान बने मुद्दों में अब कितनी सियासी तपिश या राजनीति की धारा बदलने की ताकत बची है। अगले चरणों में जिन सीटों पर चुनाव होना है, उनमें कई क्षेत्र इन नेताओं के साथ न सिर्फ भावनात्मक रूप जुड़ा रहा है, बल्कि संबंधित इलाके के लोगों के लिए इनमें से कई चेहरे इलाकाई स्वाभिमान व सम्मान का प्रतीक बने हुए हैं।
इन इलाकों के सामाजिक समीकरणों व क्षेत्र के लोगों से जुड़ाव के चलते कई नेताओं को फर्श से अर्श तक पहुंचाया। इसमें जातीय गणित भी नेताओं को कसौटी पर रखते रहे हैं। जाहिर है कि अगले चरणों के मतदान के नतीजों से यह सच भी अब सामने आने वाला है कि गणित के गुणाभाग पर अब ये चेहरे कितना मजबूत हैं।
अगले चरणों में चुनाव वाले इलाकों में भाजपा को फर्श से अर्श तक पहुंचाने वाली अयोध्या है तो काशी भी। दोनों ही मुद्दे भगवा टोली के एजेंडे का प्रमुख हिस्सा रहे हैं।अयोध्या ने ही भगवा टोली के खिलाफ मुखर होने वाले मुलायम सिंह यादव को यादव और मुसलमानों के वोट की गोलबंदी कर जनाधार मजबूत करने वाले समीकरण मुहैया कराए।
कल्याण सिंह, विनय कटियार और उमा भारती जैसे पिछड़े वर्ग के चेहरों को हिंदुत्व की धारा का प्रतिनिधि बनाकर तो खड़ा ही किया तो साथ ही इन्हें पिछड़े वर्गों के बीच भी स्वाभिमान व सम्मान की पहचान का प्रतीक बना दिया।
आजम खां जैसे चेहरे मुस्लिम हितों के पैरोकार बनकर उभरे तो सूबे के सियासी समीकरणों को बदलने में भी इस मुद्दे ने अहम भूमिका निभाई। जाहिर है कि आगे की लड़ाई में ये सब कसौटी पर कसे जाने हैं।
रुहेलखंड, बुंदेलखंड, अवध और पूर्वांचल की सीमा तक अलग-अलग हिस्सों में अलग तरह के जातीय समीकरण है। बुंदेलखंड में लोध, निषाद, कुशवाहा, कुर्मी, पाल, क्षत्रिय और ब्राह्मण के साथ दलितों की अलग-अलग जातियों की गोलबंदी कभी भाजपा तो कभी सपा और कभी भाजपा को मजबूत बनाती है।रुहेलखंड, अवध और पूर्वांचल के जिलों में बसने वाले यादव, मुस्लिम, कुर्मी, कुशवाहा, मौर्य, सैनी, लोहार, तमोली, राजभर, निषाद, कश्यप जैसी जातियां कहीं ब्राह्मण तो कहीं क्षत्रियों के साथ गोलबंदी करके पार्टियों और प्रत्याशियों का भाग्य निर्धारण करती रही हैं।
पीएम मोदी वाराणसी से सांसद हैं, जहां अंतिम चरण में चुनाव होना है। भले ही यूपी मोदी की जन्मभूमि न रही, लेकिन कर्मभूमि जरूर है। भाजपा संगठन में विभिन्न पदों पर रहते हुए वे अवध और पूर्वांचल में काफी सक्रिय रहे हैं।मोदी के मंत्रिमंडल में दूसरे नंबर पर आने वाले केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह की जन्मभूमि चंदौली है तो वाराणसी और मिर्जापुर उनकी कर्मभूमि रही। इस समय वे लखनऊ से सांसद हैं। वे बाराबंकी के हैदरगढ़ से विधायक रह चुके हैं।
मुलायम की जन्मभूमि इटावा है तो उनके परिवार के ज्यादातर सदस्यों की कर्मभूमि और सियासी इलाके मैनपुरी, कन्नौज, बदायूं, आजमगढ़ व संभल में हैं। इटावा के जसवंतनगर से मुलायम के छोटे भाई शिवपाल यादव खुद चुनाव लड़ रहे हैं। कन्नौज से मुख्यमंत्री अखिलेश यादव तो सांसद रह ही चुके हैं। इस बार उनकी पत्नी डिंपल यादव सांसद हैं।
यह वही जमीन है जिस पर कल्याण ने भाजपा से अलग होने पर अपनी ताकत दिखाते हुए 72 सीटों पर कमल का गणित गड़बड़ा दिया था। कल्याण की पार्टी को जितने वोट मिले और भाजपा को जितने मिले, दोनों का जोड़ कई सीटों पर जीत की स्थिति में हो सकता था।
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इसी तरह उमाभारती भले ही मध्यप्रदेश में जन्मी हों, लेकिन वह यूपी और खासतौर से बुंदेलखंड में काफी सक्रिय रही हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में चरखारी से विधायक चुनी गईं तो इस बार झांसी से सांसद हैं।
उनका भी चेहरा भगवा के साथ पिछड़ों का प्रतिनिधित्व करने वाला माना जाता है। अब तो वे यूपी से ही मतदाता हैं। जाहिर है कि इन सभी दिग्गजों की पकड़ व पहुंच की असली परीक्षा आगे ही होनी है।
एक-दूसरे पर तीखे शब्दबाण चला रहे सपा के मो. आजम खां और भगवा तेवर वाले गोरक्ष पीठ के महंत आदित्यनाथ की जमीन पर भी आगे के चरणों में ही चुनाव होना है। आजम का चेहरा मुस्लिमवादी तो आदित्यनाथ का चेहरा हिंदूवादी माना जाता है।आजम का रामपुर और आसपास के इलाके में प्रभाव है तो आदित्यनाथ की गोरखपुर सहित पूर्वांचल के कई जिलों में पकड़ व पहुंच कई बार सामने आ चुकी है।
कुर्मी वोटों का प्रतिनिधित्व करने के दावे के साथ अस्तित्व में आए अपना दल की अनुप्रिया पटेल मोदी की कैबिनेट में मंत्री हैं और उन्होंने भाजपा से गठबंधन करके सूबे में विधानसभा की 12 सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए हैं। कलराज मिश्र केंद्र में मंत्री और देवरिया से सांसद हैं। वे प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं।
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गाजीपुर के रहने वाले कलराज ने भी सूबे के अलग-अलग हिस्सों में संगठन में अलग-अलग दायित्व के नाते काफी भ्रमण किया है। इन सभी की जमीन पर अब लड़ाई होनी है। स्वाभाविक रूप से लड़ाई का नतीजा इन सबके प्रभाव की कसौटी भी बनेगा।
प्रदेश में भले ही कांग्रेस जमीन पर दिखाई दे रही हो लेकिन रायबरेली और अमेठी में मोदी लहर भी अगर सोनिया और राहुल को संसद पहुंचने से रोक नहीं पाई तो इसकी वजह इस इलाके के लोगों का नेहरू व इंदिरा परिवार से भावात्मक लगाव ही माना जाता है।हालांकि, विधानसभा के पिछले चुनाव में सपा लहर ने कांग्रेस को अपने इस गढ़ में दस से समेटकर दो पर पहुंचा दिया था। इस बार सपा से गठबंधन करके चुनाव मैदान में उतरी कांग्रेस के इन नेताओं के लिए भी आगे का रण काफी मायने रखता है। देखना होगा कि गठबंधन को कितना फायदा मिलता है।
वरुण गांधी और मेनका गांधी की लोकप्रियता और मतदाताओं में पकड़ की कसौटी भी आगे की लड़ाई में प्रमाण बनेंगे। वरुण इस समय सुल्तानपुर से सांसद हैं तो उनकी मां मेनका केंद्रीय कैबिनेट में होने के साथ पीलीभीत से सांसद हैं।
केंद्र सरकार में मंत्री स्मृति ईरानी भले ही यूपी की रहने वाली न हो लेकिन भाजपा ने उन्हें जिस तरह अमेठी में सक्रिय किया है उसके नाते उनकी भी आगे की लड़ाई में परीक्षा होगी।
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