केंद्र सरकार बासवन समिति की उस रिपोर्ट पर विचार कर रही है, जिसमें संघ लोक सेवा आयोग की ओर से संचालित सिविल सेवा परीक्षा के सेलेबस में बदलाव और अधिकतम आयु सीमा में कटौती का प्रस्ताव है। यह खबर सामने आने के बाद हिंदी भाषी क्षेत्रों में रहने वाले प्रतियोगी छात्रों की चिंता बढ़ गई है। #बड़ी खुशखबरी: IIFT में अफसर बनने का सुनेहरा मौका, सैलरी 50 हजार
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प्रतियोगियों का दावा है कि अधिकतम आयु सीमा में कटौती हुई तो इससे यूपी, बिहार, राजस्थान और मध्य प्रदेश बोर्ड से पढ़े छात्रों को तगड़ा झटका लगेगा। सिविल सेवा परीक्षा में शामिल होने की अधिकतम आयु सीमा 32 वर्ष है।
प्रतियोगी छात्र नवीन पंकज का कहना है कि आयु सीमा में कटौती हुई तो इससे ग्रामीण पृष्ठभूमि से आने वाले छात्रों को झटका लगेगा। इसके पीछे उनका तर्क है कि आईएएस का सेलेबस कॉन्वेंट के पाठ्यक्रम को ध्यान में रखकर तैयार किया जाता है। ऐसे में हिंदी माध्यम से पढ़ने वाले विद्यार्थियों को इंटर पास करने के बाद सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी करने के लिए अधिक वक्त की जरूरत पड़ती है।
नवीन पहले प्रयास में आईएएस की मुख्य परीक्षा में शामिल हो चुके हैं और उन्हें पूरी उम्मीद है कि दूसरे प्रयास में लक्ष्य प्राप्त कर लेंगे। प्रतियोगी छात्र पंकज तिवारी भी आयु सीमा कटौती के प्रस्ताव का विरोध करते हैं। उनके मुताबिक इस बार सिविल सेवा परीक्षा में अंतिम रूप से सफल घोषित प्रतियोगियों में हिंदी भाषी प्रतियोगियों की संख्या महज दस फीसदी है।
इनमें से 90 फीसदी चयनित प्रतियोगी ऐसे हैं, जिनकी आयु 30 वर्ष या उससे अधिक है। यूपी, बिहार, मध्यप्रदेश और राजस्थान की आबादी देश की कुल आबादी की तकरीबन 60 फीसदी है। प्रशासनिक सेवा में हिंदी भाषी प्रतियोगियों की भागीदारी में असंतुलन ठीक नहीं है। अगर आयु सीमा में कटौती हुई तो यह भागीदारी और भी कम हो जाएगी।
प्रतियोगी छात्र अशोक यादव मानते हैं कि इस बदलाव से प्रभावित वही होगा, जिसकी नींव कमजोर होगी। नींव हिंदी भाषी प्रतियोगियों की कमजोर होती है। समिति ने किस आधार पर आयु सीमा में कटौती की सिफारिश की है, यह समिति के सदस्य ही बता सकते हैं लेकिन यह स्पष्ट है कि प्रशासनिक सेवा में हिंदी भाषी प्रतियोगियों की भागीदारी कम हुई तो यह प्रशासनिक विफलता का कारण भी बनेगी।
बदलाव के पीछे तर्क पर उठे सवाल
अधिकतम आयु सीमा में पहले भी बदलाव के पीछे तर्क दिए गए कि 30 वर्ष से कम आयु वर्ग के लोगों में 30 वर्ष से अधिक आयु वर्ग के लोगों के मुकाबले सीखने की क्षमता अधिक होती है लेकिन प्रतियोगी छात्र इस तर्क पर सवाल उठाते हैं।
उनका दावा है कि ऐसा कोई शोध नहीं हुआ है। बल्कि वैज्ञानिक शोध में यह बात सामने आई है कि 25 से 38 आयु वर्ग के लोगों में सीखने की क्षमता अन्य आयु वर्ग के लोगों के मुकाबले अधिक होती है।
पीएम को ज्ञापन भेजने का निर्णय
प्रतियोगी छात्र संघर्ष समिति ने बासवन समिति की ओर से की गई सिफारिश के विरोध में प्रधानमंत्री को ज्ञापन भेजने का निर्णय लिया है। समिति के पदाधिकारियों का कहना है कि आयु सीमा में कटौती के बजाय सिविल सेवा परीक्षा के पैटर्न में इस तरह बदलाव करना चाहिए कि प्रशासनिक सेवा में हिंदी भाषी प्रतियोगियों की भागीदारी बढ़े।
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