केंद्रीय वित्त मंत्रालय की ओर से बुधवार को यहां जारी एक बयान के मुताबिक, बीते एक और दो सितंबर को आयोजित राजस्व ज्ञान संगम के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि आयकर कानून, 1961 को तैयार हुए 50 वर्ष से अधिक हो चुके हैं और इसका मसौदा दोबारा तैयार करने की जरूरत है।
कार्यदल का गठन
कानून की समीक्षा करने और देश की आर्थिक जरूरतों के अनुरूप नए प्रत्यक्ष कर कानून का मसौदा तैयार करने के लिए सरकार ने एक कार्य दल के गठन को मंजूरी दी है।
कार्य दल के संयोजक केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) के सदस्य अरबिंद मोदी होंगे, जबकि चार्टर्ड अकाउंटेंट गिरीश आहूजा, ईएंडवाई के भारतीय प्रमुख राजीव मेमानी, अहमदाबाद के कर अधिवक्ता मुकेश पटेल, इक्रीयर में सलाहकार मानसी केडिया और भारतीय राजस्व सेवा के पूर्व अधिकारी जीसी श्रीवास्तव कार्य दल के सदस्य होंगे।
मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमणियन कार्य दल के स्थायी आमंत्रित सदस्य होंगे। कार्यदल को छह महीने के भीतर अपनी रिपोर्ट देनी है। बयान के मुताबिक, कार्य दल को चार मुद्दों पर विचार करना है। ये मुद्दे हैं – विभिन्न देशों में प्रचलित प्रत्यक्ष कर व्यवस्था, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रमुख प्रचलित व्यवस्था, देश की आर्थिक जरूरतें और अन्य संबंधित मुद्दे।
उस समय कोशिश थी कि अगर विधेयक कानून बन गया, तो पहली अप्रैल 2012 से इसे लागू किया जाएगा। उसमें वैसे तो कर की दरें आम लोगों के लिए 10, 20 और 30 फीसदी तक रखे जाने की बात कही गई थी, लेकिन कई तरह की कर रियायतों को खत्म करने का भी प्रस्ताव था। उसमें कर व्यवस्था को सरल बनाने का भी प्रावधान था।
उस मसौदे को वित्त मंत्रालय की स्थायी समिति के पास भेजा गया, जिसने अपनी रिपोर्ट 2012 में दे दी। लेकिन मनमोहन सिंह सरकार इसे लोकसभा में पास कराने में सफल नहीं रहे।
इसके बाद वर्ष 2014 में 15वीं लोकसभा के कार्यकाल खत्म होने के साथ ही इस विधेयक की वैधता खत्म हो गई। नरेंद्र मोदी सरकार ने सत्ता में आने के बाद अप्रत्यक्ष कर में बदलाव के लिए तो पिछली सरकार के प्रयास को आगे बढ़ाया, लेकिन प्रत्यक्ष कर के मोर्चे पर ऐसा नहीं किया गया। लेकिन अब इस दिशा में आगे कदम बढ़ाए जा रहे हैं।
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