नई दिल्ली। विश्व धरोहरों को जलवायु परिवर्तन के कारण नुकसान पहुंचने का खतरा पहले ही जताया जा चुका है। लेकिन अब खतरे की इस सूची में प्राकृतिक विश्व धरोहरें भी शामिल हो गई हैं। शोधकर्ताओं के अंतरराष्ट्रीय दल ने अपने ताजा शोध में बढ़ते इंसानी कदमों और विकास से सौ से भी अधिक प्राकृतिक विश्व धरोहरों को सर्वाधिक नुकसान पहुंचने का खतरा जताया है। यह ताजा शोध बायोलॉजिकल कंजर्वेशन जर्नल में प्रकाशित हुआ है।

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1,052 : यूनेस्को द्वारा घोषित कुल विश्व धरोहरें
203 : विश्व धरोहरों में शामिल प्राकृतिक विश्व धरोहरों की संख्या
शोध : इस शोध को ऑस्ट्रेलिया की यूनिवर्सिटी ऑफ क्वींसलैंड, वाइल्डलाइफ कंजर्वेशन सोसायटी (डब्ल्यूसीएस), यूनिवर्सिटी ऑफ नर्दर्न ब्रिटिश कोलंबिया और द इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) के शोधकर्ताओं ने संयुक्त रूप से किया है। इसके लिए उन्होंने सड़क निर्माण, कृषि, शहरीकरण, औद्योगिक विकास और जंगलों को नुकसान जैसे कारकों का अध्ययन किया।
63 फीसद में बढ़ा इंसानी प्रभाव
कुल प्राकृतिक विश्व धरोहरों में से 63 फीसद में 1993 के बाद से इंसानी प्रभाव सर्वाधिक बढ़ा है। यहां विकास के कारण इनको नुकसान पहुंचा।
91 फीसद सिमटे जंगल
अधिकांश प्राकृतिक विश्व धरोहरों में जंगल क्षेत्र भी शामिल हैं। इनमें से कुछ के जंगल क्षेत्रों में वर्ष 2000 बाद से 91 फीसद की कमी दर्ज हुई है।
एशिया में अधिक नुकसान
एशिया-प्रशांत क्षेत्र में 62 प्राकृतिक विश्व धरोहरें हैं। जिन्हें अधिक नुकसान पहुंचा है, उनमें से सर्वाधिक एशिया में मौजूद हैं। इनमें नेपाल का चितवन नेशनल पार्क, इथियोपिया का सीमीन नेशनल पार्क और इंडोनेशिया का कोमोडो नेशनल पार्क प्रमुख हैं।
खास-खास
– वर्ष 2000 में सभी प्राकृतिक विश्व धरोहरों का जंगल क्षेत्र 4,33,173 वर्ग किमी था। 2012 में इसमें 7,271 वर्ग किमी की कमी दर्ज की गई।
– अमेरिका में मौजूद प्राकृतिक विश्व धरोहरों के जंगल क्षेत्र में सर्वाधिक 57 फीसद की कमी दर्ज की गई।
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भारत में सर्वाधिक बढ़ा इंसानी प्रभाव
भारत में 35 विश्व धरोहर हैं। इनमें सात प्राकृतिक विश्व धरोहर हैं। विश्व की अन्य प्राकृतिक विश्व धरोहरों में असम के मानस वाइल्डलाइफ नेशनल पार्क में इंसानी प्रभाव में सर्वाधिक बढ़ोतरी दर्ज की गई है। यहां हुए विकास के कारण वन संपदा को सर्वाधिक नुकसान हुआ। यहां हाथी, बाघ और गैंडे जैसी विलुप्तप्राय प्रजातियां रहती हैं।
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