प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के जन्मदिन के मौके पर देश को स्वच्छ बनाने के लिए ‘स्वच्छ भारत अभियान’ की शुरुआत की. 2 अक्टूबर 2014 को शुरू हुए इस अभियान को आज पूरे 3 साल हो गए हैं. इन दौरान करोड़ों शौचालय बनें, लोगों ने सफाई के महत्व को समझा और खुले में शौच से एक बड़े इलाके को मुक्ति भी मिली लेकिन इस दौरान ऐसी खबरें भी आईं जब लोगों के भले के लिए शुरू किया गया ये अभियान उनके लिए ही मुसीबत बन गया.
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घरों में गड्ढे खोदकर भूले अफसर
स्वच्छता अभियान के तहत हर घर में शौचालय निर्माण की कवायद शुरू हुई लेकिन कई जगह ये कवायद लोगों के लिए मुसीबत बन गई. दरभा घाटी के लेंद्र गांव में करीब 500 घरों में शौचालय निर्माण के लिए गड्ढे खोदे गए और गड्ढे खोदकर अफसर भूल गए. गांव के एक किसान गंगा राम के घर में भी शौचालय के लिए गड्ढा खोदा गया था. जिसमें गिरकर उसकी भैंस तक मर गई. लोग इन गड्ढों को दोबारा भर भी नहीं सकते क्योंकि ये सरकार ने खुदवाए हैं और इनपर शौचालय भी नहीं बनवा सकते क्योंकि इसका पैसा सरकार के पास है.
सरकारी दफ्तरों के चक्कर काट रहे लोग
बस्तर के लोगों के लिए भी प्रधानमंत्री का स्वच्छता अभियान मुसीबत बन गया. अफसरों द्वार घरों में शौचालय बनाने के लिए गड्ढे तो खुदवा दिए गए, लेकिन शौचालय नहीं बने. एक साल से गांव के लोग सरकारी दफ्तरों का चक्कर काट-काट कर परेशान हो गए, लेकिन उनकी मुसीबतें जस की तस हैं.
शौचालय को लेकर चलाया अजीब अभियान
पीएम की स्वच्छता मुहिम को बिहार के सीतामढ़ी जिले के जिलाधिकारी द्वारा जिस तरह से लागू किया गया, उस पर भी सवाल उठे. जिलाधिकारी राजीव रोशन के नेतृत्व में जिले के अफसर सुबह-सुबह गांव-देहात और खेत-खलिहान की तरफ निकल पड़ते. इस दौरान खुले में शौच करते पाए जाने वाले महिला-पुरुष को गिरफ्तार कर उन्हें नजदीकी थाने ले जाया जाता है. जहां उनसे बांड भरवाकर, जुर्माना वसूलकर ही उन्हें छोड़ा जाता. वहीं छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में खुले में शौच करने वाले लोगों को अनूठी सजा दी गई. लोगों को जानवरों के पिंजरे में बंद कर शहर से दूर जंगल में छोड़ दिया, जहां से वो पैदल आए.
ओडीएफ बना परेशानी की वजह
राजस्थान में भी लोगों के लिए खुले से शौच मुक्त (ओडीएफ) अभियान परेशानी की वजह बन गया है. लोगों के लिए शौचालय बनवाना भारी पड़ रहा है. एक शौचालय बनवाने में करीब बीस हजार रुपये खर्च आता है. सरकार बस बारह हजार रुपये ही देती है. शेष राशि का इंतजाम करना मुश्किल होता है या फिर ग्रामीणों को ऊंची ब्याज दर पर उधार लेकर शौचालय का निर्माण करवाना पड़ता है.
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