
ऐसे में जानना जरूरी है कि गुजरात चुनाव में क्या खास बातें रही जिनसे भाजपा सत्ता तक पहुंची लेकिन कांग्रेस बांउड्री लाइन से पहले ही दम तोड़ गई। आइए डालते हैं उन दस बातों पर एक निगाह।
पाटीदारों की नाराजगी के बाद ओबीसी पर मजबूत पकड़ः गुजरात में भाजपा के लिए सबसे ज्यादा चिंता की बात थी पाटीदारों यानि पटेलों की नाराजगी। हार्दिक के आंदोलन के बाद जो उससे नाराज चल रहे थे। ऐसे में इसकी काट के लिए भाजपा और प्रधानमंत्री मोदी ने ओबीसी को मजबूती से अपने पक्ष में किया। मतदान के दौरान ओबीसी ने ही भाजपा के लिए पटेलों की भरपाई की।
मोदी का अपने नाम के साथ गुजराती अस्मिता को जोड़नाः अपना गृह राज्य होने का प्रधानमंत्री मोदी को चुनाव के दौरान पूरा फायदा मिला। पीएम मोदी ने इसे निजी प्रतिष्ठा का मामला बताकर गुजराती वोटरों को अपने पाले में खड़ा किया। इसके लिए उन्होंने गुजराती अस्मिता का भी हवाला दिया, नतीजतन नाराजगी के बावजूद भी गुजरात के वोटरों ने पीएम के नाम पर भाजपा को वोट दिया।
नीच और बाबरी वाले बयान को प्रमुखता से भुनानाः चुनाव के दौरान एक बड़ा अंतर मणिशंकर अय्यर के नीच वाले बयान ने भी पैदा किया। अय्यर के बयान देते ही आधे घंटे बाद प्रधानमंत्री मोदी ने सूरत में हुई अपनी रैली में इसे जमकर भुनाया। उन्होंने इसे अपनी जाति और गुजरात की अस्मिता से जोड़ते हुए मतदाताओं से इसका बदला लेने की अपील की।
किसानों की नाराजगी के बावजूद शहरी वोटरों को खुद से जोड़े रखनाः भाजपा के लिए गुजरात में बड़ी दिक्कत ग्रामीण और किसान मतदाताओं की नाराजगी भी थी। लंबे समय से बदहाली झेल रहा ये वर्ग सत्तारूढ़ भाजपा से खासा नाराज था। ऐसे में भाजपा ने इसकी भरपाई के लिए शहरी वोटरों पर फोकस किया और उन्हें मजबूती से अपने पाले में बनाए रखा।
विकास के मुद्दे पर प्रधानमंत्री को न घेर पाने में विफलताः गुजरात में कांग्रेस के पास प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ सबसे बड़ा हथियार था विकास के मुद्दे पर उन्हें घेरना। इसके लिए कांग्रेस ने ‘विकास पागल हो गया’ जैसे नारों को भी उछाला। लेकिन शुरूआती सफलता के बाद भाजपा इस मुद्दे पर ठंडी पड़ गई। नतीजा ये रहा कि कांग्रेस के हाथ से एक ऐसा मुद्दा निकल गया जिसे वह अच्छी तरह भुना सकती थी।
प्रदेश कांग्रेस में किसी बड़े चेहरे की कमीः कांग्रेस के लिए गुजरात में एक बड़ी समस्या किसी बड़े चेहरे की कमी भी थी, जो भाजपा के कद्दावर नेताओं के मुकाबले ठहर सके। कांग्रेस के पास न सीएम उम्मीदवार के रूप में कोई चेहरा था न कोई ऐसा बड़ा नाम जिसे पार्टी इस रूप में प्रोजक्ट कर सके। वहीं भाजपा के पास सीएम विजय रुपाणी से लेकर डिप्टी सीएम नितिन पटेल सहित कई बड़े नाम थे।
सत्ता विरोधी लहर का को ढंग से न भुना पानाः 22 साल के शासन के दौरान भाजपा के खिलाफ जो सबसे बड़ा फैक्टर था वो था सत्ता विरोधी लहर का। जिसे खुद भाजपा नेता भी महसूस कर रहे थे लेकिन कांग्रेस इसे ही भुनाने में असफल रही। नतीजतन पार्टी के हाथ आया सबसे बड़ा मुद्दा खाली जाया हो गया।
कांग्रेस की आपसी खींचतान ने डुबाई लुटियाः गुजरात में कांग्रेस के लिए उसकी आपसी खींचतान भी भारी पड़ गई। पहले कद्दावर नेता शंकर सिंह वाघेला का बाहर जाना फिर सीएम पद के लिए कई नेताओं के बीच आपसी खींचतान। पार्टी की इसी गुटबाजी ने कांग्रेस की नैया डुबाने का काम किया।
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