
लखनऊ:
“आशुतोष तुम अवढर दानी!
ग्रामीण परिवार के व्यक्ति को जो आईएएस की नौकरी संघर्ष करके पाया, भारत सरकार के सचिव पद से निवृत्ति से दो साल पहले विश्व की सबसे बड़ी पार्टी में ससम्मान लाना! ये नरेंद्र मोदी और भाजपा ही कर सकते है I नतमस्तक हूँ,” यह ट्वीट सेवानिवृत्त आईएएस एके शर्मा ने आज लखनऊ में बीजेपी की सदस्यता लेने के बाद किया।
शर्मा जो कि 1988 बैच के गुजरात कैडर के प्रशासनिक अधिकारी रहे हैं और लंबे समय से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निकट माने जाते रहे हैं, ने आज बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह, उपमुख्यमंत्री डॉ दिनेश शर्मा, वन मंत्री दारा सिंह चौहान व अन्य नेताओं की मौजूदगी में मीडिया के सामने बीजेपी की सदस्यता ली।
असल में राजनैतिक चर्चाओं का बाजार सोमवार से ही गर्म होने लगा था, जब शर्मा की वीआरएस की प्रार्थना केंद्र सरकार ने स्वीकृत कर ली थी। चूंकि शर्मा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की निकट माने जाते हैं और उनकी सेवनिवृत्ति में अभी भी दो वर्ष का समय था, तो चर्चा शुरू हो गई कि शर्मा को राज्य का तीसरा उपमुख्यमंत्री बनाकर यूपी भेजा जाएगा। सदस्यता लेने के पहले एके शर्मा मोदी सरकार के विशेष लगाव वाले एमएसएमई विभाग के सचिव पद पर तैनात थे।
इन अटकलों के पीछे शर्मा का मूल रूप से मऊ जिले से होना और प्रदेश चुनाव में एक साल से कम का समय होना माना जा रहा था। चर्चा थी कि प्रधानमंत्री अपने एक ऐसे निकट व्यक्ति को उत्तर प्रदेश भेज रहे हैं जो कि अपने प्रशासनिक कार्यकाल में आदेशों को जमीन पर उतारने के लिए प्रसिद्ध रहा है।
यूं तो राजनीति में कुछ भी असंभव नहीं है पर ऐसा फिलहाल होता नहीं दिखता।
इसके पीछे सबसे बड़ी वजह है की ऐसा कुछ भी करने का मतलब यह संकेत देना कि केंद्र, यूपी सरकार से खुश नहीं है। जानकारों का मानना है कि ऐसा लगता नहीं है क्यूंकी राज्य सरकार ने पिछले साढ़े तीन सालों में काम के नाम पर ज्यादातर केंद्र की योजनाओं को ही अमलीजामा पहनाने का कार्य किया है, ऐसे में नाराजगी का प्रश्न नहीं उठता।
फिर एक साल से कम समय में चुनाव होने की स्थिति में केंद्र ऐसा कोई भी जोखिम लेने को तैयार नहीं होगा। बीजेपी का पैतृक संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी फिलहाल मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ मजबूती से खड़ा दिखाई दे रहा है।
चर्चाएँ इस पर भी होती हुई सुनाई पड़ी की उपमुख्यमंत्री डॉ दिनेश शर्मा की जगह एके शर्मा को उपमुख्यमंत्री बनाया जाएगा। यह बात भी राजनैतिक रूप से सही नहीं लगती है। चूंकि राज्य में जातिगत राजनीति ही मूल आधार है उस नाते यह सामाजिक समीकरण की दृष्टि से भी सही कदम नहीं होगा। एके शर्मा भूमिहार जाति से आते हैं वहीं डॉ दिनेश शर्मा ब्राह्मण हैं। ऐसे में ब्राह्मण को हटाकर एक भूमिहार को उपमुख्यमंत्री बनाना कहीं से भी सामाजिक समीकरण के दायरे में सटीक नहीं बैठता है।
बीजेपी में सूत्रों की माने तो एके शर्मा को हाल ही में होने वाले एमएलसी चुनाव में पार्टी प्रत्याशी तो बना सकती है पर इसके आगे की भूमिका पर अभी चर्चा होना बाकी है। फिलहाल एमएलसी होने के बाद किसी विशेष अभियान की जिम्मेदारी एके शर्मा जी के हाथों में रहेगी ऐसा भी लगभग तय है।
पर मूल प्रश्न का हल अभी भी चर्चा का विषय है कि ऐसी कौन सी जिम्मेदारी शर्मा को दी जाएगी जिसके चलते सेवनिवृत्ति के दो साल पहले ही वीआरएस के आवेदन की संस्तुति केंद्र सरकार से मिल गई और उसके दो दिन बाद ही एके शर्मा ने बीजेपी की सदस्यता ग्रहण कर ली वो भी भारत की राजनीति की धुरि – उत्तर प्रदेश में।
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