करवा चौथ का व्रत हर साल पूर्ण भक्ति के साथ मनाया जाता है। यह पति-पत्नी के प्रेम और विश्वास का प्रतीक है। इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और सुख-समृद्धि के लिए सूर्योदय से चंद्रोदय तक निर्जला व्रत रखती हैं। व्रत का सबसे महत्वपूर्ण और अंतिम चरण चंद्रमा को अर्घ्य देना और उनका दर्शन करना होता है, जिसके बाद ही व्रत का पारण किया जाता है, तो आइए इस आर्टिकल में इससे जुड़ी प्रमुख बातों को जानते हैं।
चंद्रोदय और पारण समय
करवा चौथ का चांद रात में 08 बजकर 13 मिनट पर निकलेगा। इस समय व्रती चंद्रमा को अर्घ्य देकर अपना व्रत खोल सकती हैं।
चंद्रमा को अर्घ्य देने की सही विधि
पूजा की थाली में जल से भरा एक लोटा या करवा, छलनी, रोली, अक्षत, मिठाई और एक दीपक तैयार रखें।
चंद्रमा को अर्घ्य देने के लिए लोटे के जल में कच्चा दूध, अक्षत, सफेद चंदन और कुछ फूल डाल लें।
सबसे पहले हाथ जोड़कर चंद्रमा को प्रणाम करें।
अब, छलनी में जलता हुआ दीपक रखकर, उसी छलनी से चंद्र देव का दर्शन करें।
चंद्रमा को देखते हुए धीरे-धीरे जल की धार बनाएं और अर्घ्य दें।
इस दौरान पति की लंबी आयु और वैवाहिक सुख की कामना करें।
अर्घ्य देते समय चंद्र देव के मंत्रों जैसे ‘ॐ सों सोमाय नमः’ या ‘दधि-शंख-तुषाराभं क्षीरोदार्णव-सम्भवम्। नमामि शशिनं सोमं शंभोर्मुकुट-भूषणम्।’ का जाप करें।
चंद्रमा को अर्घ्य देने के तुरंत बाद, उसी छलनी से अपने पति का चेहरा देखें।
अंत में, पति के हाथों से जल पीकर अपना निर्जला व्रत खोलें।
फिर घर के बड़ों का आशीर्वाद लें।
ध्यान रखें कि चंद्रमा को अर्घ्य देने से पहले और पति का चेहरा देखने से पहले, खुद जल या अन्न ग्रहण न करें। यह रस्म पूरी होने के बाद ही व्रत का पारण किया जाता है।
करवा चौथ पूजा मंत्र
- ऊँ ऐं क्लीं सोमाय नम:।
- ऊँ श्रां श्रीं श्रौं चन्द्रमसे नम:।
- ऊँ श्रीं श्रीं चन्द्रमसे नम:।
- ॐ दधिशंखतुषाराभं क्षीरोदार्णवसंभवम।
नमामि शशिनं सोमं शंभोर्मुकुटभूषणम्।। - ॐ भूर्भुवः स्वः अमृतांगाय विदमहे कलारूपाय धीमहि तन्नो सोम प्रचोदयात।।
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