प्रेम सम्बन्ध में प्रेमी- प्रेमिका एक दूसरे को प्रेम पत्र लिखते है, लेकिन कभी आपने सोचा है दुनिया में सबसे पहले प्रेम पत्र किसने लिखा। नहीं ना, आज हम आपको बताएंगे दुनिया का पहला प्रेम पत्र किसने लिखा और किसको। आपको बता दे की पुराणों की कथाओं के अनुसार विदर्भ के राजा भीसमाका की पुत्री राजकुमारी रुक्मिणी अपनी बुद्धिमती, सौंदर्य और न्यायप्रिय व्यवहार के लिए प्रसिद्ध थी।
राजकुमारी रुक्मिणी का पूरा बचपन श्रीकृष्ण की साहस और वीरता की कहानियां सुनते हुए बीता था। आपको बता दे की राजकुमारी रुक्मिणी ने प्रथम प्रेम पत्र लिखा था।
श्रीमद् भागवत गीता के 52वे पाठ में श्रीकृष्ण और रुक्मिणी जी की दिलचस्प प्रेम कहानी का वर्णन मिलता है। जिसके अनुसार राजकुमारी रुक्मिणी के पिता और संबंधी भी यही सोचते थे कि उनका विवाह श्रीकृष्ण से ही होगा लेकिन रुक्मिणी का भाई रुक्मी श्रीकृष्ण को अपना शत्रु मानता था और उसने रुक्मिणी का विवाह श्रीकृष्ण चचेरे भाई शिशुपाल से तय कर दिया था। शिशुपाल से विवाह तय होने पर रुक्मिणी जी का दिल टूट गया था।
उसके बाद रुक्मिणी जी ने विवाह से एक रात पूर्व श्रीकृष्ण के लिए एक खत लिखा था जिसमें उन्होंने अपना प्रेम व्यक्त किया था। जिसे एक ब्राह्मण कन्या सुनन्दा के हाथ श्रीकृष्ण को ये प्रेम पत्र भिजवाया था। इस पत्र में रुक्मिणी जी ने श्रीकृष्ण से उनके विवाह से पूर्व आकर उन्हें ले जाने का भी आग्रह किया था। वहीं दूसरी ओर श्रीकृष्ण ने भी रुक्मिणी जी के सौंदर्य के बारे में खूब चर्चाएं सुनीं थीं। श्रीकृष्ण भी रुक्मिणी जी को अपनी पत्नी बनाना चाहते थे लेकिन कंस और जरासंध से रुक्मिणी जी के परिवार के मैत्री संबंध थे जिस कारण वे कभी भी श्रीकृष्ण को नहीं अपनाते। बस इसी बात से कृष्ण जी ने रुक्मिणी जी के घर विवाह का प्रस्ताव नहीं भेजा था। तब कृष्ण जी ने रुक्मिणी को उनके घर से भगाया था।
जिसके बाद रुक्मी और श्रीकृष्ण के मध्य युद्ध हुआ था जिसमें कृष्ण जी को विजय प्राप्त हुई थी। इस काम में उनके भाई बलराम ने उनकी सहायता की थी। बलराम ने अपनी सेना के साथ रुक्मी से युद्ध किया था। रुक्मिणी जी ने श्रीकृष्ण से आग्रह किया था कि वे उनके परिवार को जीवन दान दें। भगवान कृष्ण ने ये बात स्वीकार करते हुए रुक्मी का वध नहीं किया था लेकिन उन्होंनें उस पर दो बाण जरूर चलाए थे जिससे उसके आधे बाल और आधी मूंछ कट गई थी। रुक्मि को ये अपमान सहन नहीं हुआ था। युद्ध के पश्चात् श्रीकृष्ण ने रुक्मिणी जी से विवाह कर द्वारका की ओर प्रस्थान किया था। शास्त्रों में श्रीकृष्ण और रुक्मिणी जी के इस विवाह को राक्षस विवाह का स्थान दिया गया है।