– हर गुर्दे में स्थित 10 लाख इन शुद्धिकरण इकाइयों को ‘नेफ्रोन’ कहते हैं। इसमें ग्लोमेरूलर (रक्त वाहिनियों का गुच्छा) फिल्टर का काम करता है और सर्पाकार ट्यूब्यूल्स आरओ का काम करती हैं, जो घुले हुए अनावश्यक लवणों को हटा देती हैं।
– नेफ्रोन शरीर में पानी की मात्रा सम और स्थायी बनाए रखने को आवश्यकता अनुरूप कम या ज्यादा पानी छानता है। साथ ही जलअल्पता (डिहाइड्रेशन) पानी के बहाव पर नियंत्रण करता है।
– गुर्दे अपने सिर पर स्थित तिकोनी टोपी-जैसी एड्रीनल ग्रंथि से रेनिन द्वारा सतत संपर्क साधकर रक्त में लवण की मात्रा को नियंत्रित करते हैं। ये स्वमं भी लवण क्षय से रोकते हैं और अधिक मात्रा में होने पर उसे बाहर कर देते हैं। ये रक्त में सोडियम और पोटैशियम की मात्रा को सम रखते हैं।
– ये लाल रक्त कणों को नियंत्रित करने का विलक्षण कार्य भी करते हैं। ऑक्सीजन की कमी होने पर गुर्दे एरिथ्रोपोइटीन नामक हार्मोन स्रावित करते हैं, जो बोन मैरो में लाल रक्त कण निर्मित करने वाली इकाइयों (स्टेम सेल) को लाल रक्त कण बनाने के लिए प्रेरित और प्रोत्साहित करता है।
– डायलिसिस मशीन नेफ्रोन के समकक्ष कृत्रिम उपकरण होता है, आर्टिफीशियल किडनी। किडनी फेलियर रोगी का रक्त इस मशीन में भेजकर साफ और शुद्ध किया जाता है। इसको ही डायलिसिस कहते हैं। किडनी फेलियर के रोगी नियमित डायलिसिस के सहारे वर्षों तक सामान्य जीवन जी सकते हैं।