
दुनिया के 7 अजूबों में शुमार ‘द ग्रेट वॉल ऑफ चाइना’ की तारीफ तो आपने कई बार सुनी होगी। ये एक ऐसी आकृति है जिसे अंतरिक्ष से भी देखा जा सकता है। चीन की वो दीवार विश्व धरोहर है, लेकिन आपको ये भी हम बता दें कि चीन की दीवार से पुरानी एक ऐसी ही अनोखी दीवार बिहार में भी स्थित है। ये दीवार है राजगीर, बिहार में स्थित जिसे UNESCO वर्ल्ड हेरिटेज साइट का दर्जा प्राप्त है।
इस दीवार को कहा जाता है साइक्लोपियन वॉल (Cyclopean Wall of Rajgir)। अब आप सोच रहे होंगे कि इसमें ऐसा क्या खास है जो इसे चीन की दीवार से भी ऊंचा दर्जा दिया जा रहा है तो मैं आपको बता दूं कि फैक्ट्स बताते हैं कि ये दीवार चीन की दीवार से भी काफी ज्यादा पुरानी है और साथ ही साथ इसे इंजीनियरिंग का एक बेजोड़ नमूना भी कहा जाता है।
बिहार की नालंदा पहाड़ियों पर स्थित इस दीवार को ‘मौर्य साम्राज्य’ ने अपनी सुरक्षा के लिए बनवाया था। 322 ई.पू. में जिस साम्राज्य का बोलबाला था उसी ने अपनी रक्षा के लिए इसे बनवाया था और ऐसे देखा जाए तो ये दीवार 18 शताब्दी पुरानी है।
1987 में इसे विश्व धरोहर माना गया और हर साल इसे देखने हज़ारों लोग आते हैं।

क्या है साइक्लोपियन वॉल का इतिहास?
ये दीवार मौर्य साम्राज्य की विरासत है जिसे उस वंश के शासकों ने बाहरी आक्रमणकारियों से राजधानी की रक्षा के लिए बनाया था। मगध का उस दौर में एक अलग ही वर्चस्व था जिस समय राजगीर (तब राजगृह) बहुत ही समृद्ध हुआ करता था और यहां आक्रमण का खतरा बना रहता था। उस समय राजगीर में राजा बिमबिसारा और उनके पुत्र आजातशत्रु के राज में इस दीवार को बनाया गया था।
इस दीवार में जो पत्थर लगाए गए हैं वो चूना पत्थर हैं जो उस वक्त की इंजीनियरिंग की दास्तां बताते हैं। हालांकि, अब इस दीवार के अवशेष ही रह गए हैं, लेकिन इसे अब भी एक बेजोड़ आकृति माना जाता है।
आपको बता दें कि ‘पाली ग्रंथों’ में भी राजगृह की चौबंद सुरक्षा के लिए इस दीवार के होने का जिक्र है जिसमें चीन की दीवार की तरह हर 5 गज में सैनिक मौजूद होते थे।
शहर के किले बंद होने के बाद अलग-अलग दरवाज़ों से ही इसके भीतर प्रवेश किया जा सकता था।
क्यों है इंजीनियरिंग का अनूठा नमूना?
ये दीवार उस दौर की है जब मौजूदा समय की तरह सीमेंट आदि नहीं होता था और चूना पत्थर का उपयोग प्रमुख था। उस वक्त दीवार बनाने में इस वक्त के मुकाबले और भी ज्यादा समय लगता था। फिर भी इस दीवार को 4 मीटर ऊंची और 40 किलोमीटर लंबी बनाया गया।

इस दीवार में बड़े पत्थरों से बाहरी हिस्सा बनाया गया है और छोटे पत्थर बीच में डाले गए हैं ताकि इसमें मजबूती भी रहे और ये आक्रमण झेल भी जाए। दुनिया भर में मिसीनियन आर्किटेक्चर के कुछ बचे-कुचे हिस्सों में से एक ये दीवार है। यही कारण है कि इसका ढांचा ग्रीक दीवारों की तरह दिखता है।
कैसे जाएं इस दीवार तक?
ये दीवार राजगीर रेलवे स्टेशन से 7 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। अगर आप वहां जा रहे हैं तो आपको इस दीवार तक के लिए आसानी से ऑटो या टैक्सी मिल जाएगी जो लगभग 30 मिनट में ही आपको यहां पहुंचा देगी।
अगर आप उन लोगों में से हैं जिन्हें ऐतिहासिक कलाकृतियां देखने में आनंद आता है तो यहां जरूर अच्छा लगेगा। सुबह 6 बजे से शाम के 6 बजे तक इस दीवार को देखने जा सकते हैं। इसके अलावा, यहां जाने के लिए कोई एंट्री फीस नहीं है।
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