यूपी में योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री पद संभाले सात महीने ही बीते हैं लेकिन उनके कदम दूसरे राज्यों में भी भाजपा का ग्राफ बढ़ाने के लिए शुभ माने जाने लगे हैं। पूर्वांचल के कुछ जिलों में हिंदुत्ववादी तेवर और हिंदुओं के सरोकारों के संरक्षक के नाते पहचाने जाने वाले योगी की डिमांड अब दूसरे राज्यों से भी होने लगी है। वह एक बार गुजरात हो आए हैं। आगे के लिए भी कार्यक्रम तय हो रहे हैं। आज गुजरात दौरे पर राहुल गांधी, रैली के बाद हार्दिक पटेल से करेंगे मुलाकात
आज गुजरात दौरे पर राहुल गांधी, रैली के बाद हार्दिक पटेल से करेंगे मुलाकात
हिमाचल प्रदेश भाजपा ने भी उन्हें अपने स्टार प्रचारकों की सूची में शामिल किया है। ऐसा लगता है कि संघ परिवार को उनमें हिंदुत्व के एजेंडे पर लामबंदी करने वाले प्रभावी शख्स का अक्श दिखने लगा है। इसी महीने केरल में वामपंथी संगठनों की तरफ से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ताओं की हत्याओं के विरोध में निकली यात्रा के लिए योगी को वहां बुलाना भी यही साबित करता है।
लगता है, संघ परिवार ने समझ लिया है कि योगी के सहारे मुस्लिम तुष्टीकरण और जातीय गणित से सत्ता हासिल करने में जुटे दलों व नेताओं को चुनावी रण में पटकनी दी जा सकती है। यह भरोसा अकारण नहीं है। इसके पीछे भगवा टोली के रणनीतिकारों का परीक्षण से निकला निष्कर्ष है।
उप्र विधानसभा चुनाव में पश्चिमी इलाके से योगी को पहले ही चरण के प्रचार में उतारने का प्रयोग सफल रहा। बिना राम मंदिर और अयोध्या का जिक्र किए पूरा चुनाव हिंदुत्व बनाम अन्य में विभाजित हो गया। भाजपा को अच्छी संख्या में सीटें मिलीं। इससे रणनीतिकारों की योगी से उम्मीदें बढ़ी हैं। वे अब उसी प्रयोग को हिमाचल और गुजरात में दोहराना चाहते हैं।
अयोध्या जाने का विरोध करने वालों पर ‘हम अपनी आस्था का सम्मान करने को स्वतंत्र हैं जिन्हें आपत्ति हो तो होती रहे’ जैसे बयानों से पलटवार किया और छोटी दिवाली को अयोध्या में बड़ा समारोह किया, उससे योगी यह संदेश देने में सफल रहे कि वह उनमें नहीं है जो किसी को खुश करने के लिए हिंदुत्व के सरोकारों पर रक्षात्मक रवैया अपनाएं अथवा उन सरोकारों के प्रति समर्पण दिखाने से बचें। जाहिर है, वह अब वोट दिलाऊ नेता की छवि बना चुके हैं।
उत्तराखंड के पहाड़ से जुड़ रहा हिमाचल
हिमाचल में योगी को बुलाने के पीछे हिंदुत्व के समीकरणों के साथ अन्य कारण भी हैं। उनका कर्मक्षेत्र भले ही गोरखपुर हो लेकिन वह हिमालय पुत्र भी हैं। उत्तराखंड में जन्मे और पढ़े योगी के हिमाचल जाने से स्वाभाविक रूप से भाजपा को वहां हिंदुत्व के साथ योगी के रूप में ‘अपने बीच का आदमी’ होने की छवि का भी लाभ मिलेगा।
हिमाचल और उत्तराखंड की पहाड़ियां एक-दूसरे से जुड़ी हैं। भाजपा के रणनीतिकारों ने योगी को हिमाचल चुनाव के स्टार प्रचारकों की सूची में डालकर इस जुड़ाव को और मजबूत बनाने की तैयारी की है।
यूं तो पूरे गुजरात में लेकिन विशेष तौर से पाकिस्तान सीमा से सटे जिलों में हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण के समीकरण उप्र और खासतौर से पश्चिमी उप्र से बहुत भिन्न नहीं है। चूंकि नरेन्द्र मोदी वहां खुद सीएम थे, इसलिए शायद भगवा टोली को वहां किसी दूसरे की जरूरत नहीं लगती थी। पर, अब मोदी प्रधानमंत्री हैं। 2014 का लोकसभा चुनाव ही नहीं अब तक हुए कई राज्यों के चुनाव में भी मोदी का ही चेहरा आगे किया जाता रहा है। इस बार भी मोदी लगभग एक महीने से लगातार गुजरात पर फोकस किए हुए हैं।
मोदी के नेतृत्व में ही 2019 का लोकसभा चुनाव भी लड़ा जाना है। ऐसे में संघ की कोशिश है कि गुजरात चुनाव में योगी को भेज कर मोदी का एक मजबूत सहयोगी तैयार कर उन पर भार कुछ कम किया जाए। साथ ही वहां हिंदुओं को जातीय खांचों में बांटने की कोशिश कर रहे नेताओं को हिंदुत्व के और तीखे औजार से निष्प्रभावी किया जाए ताकि मोदी की साख सीधे दांव पर न लगे और लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा के पास मोदी जैसा एक और धारदार चेहरा तैयार हो जाए।
पर, पाठक भी इससे इन्कार नहीं कर पाते कि योगी के जाने से ध्रुवीकरण नहीं होगा। वह कहते हैं, तुष्टीकरण की नीति का विरोध और अपनी आस्था का पूरे गर्व के साथ अनुसरण सांप्रदायिकता नहीं है। भाजपा सबका सम्मान करती है लेकिन सपा, बसपा और कांग्रेस की तरह तुष्टीकरण नहीं करती। जिसे जो निष्कर्ष निकालना है वह निकाले।
जाहिर है, भगवा टोली के रणनीतिकार हिमाचल व गुजरात में योगी को उतारकर व चुनावी लड़ाई को 80 बनाम 20 बनाकर लोकसभा चुनाव में अपनाए जाने वाले इस फॉर्मूले का परीक्षण कर लेना चाहते हैं। सफल रहे तो उनके पास आगे के लिए एक मजबूत चेहरा हो जाएगा।
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