25 अप्रैल 17…इस बार की आश्रम पत्रिका 30 तारीख को आपके हाथों में होगी। श्रीगुरुजी का आदेश था कि जैसे पिछले अंकों में द्रौपदी के जीवन के अनछुए पहलुओं से पाठकों को परिचित कराया गया, वैसे ही इस बार सीता जी के बारे में कुछ नई जानकारी सबको दी जाए।उनकी आज्ञा शिरोधार्य….
जब सीता जी से संबंधित पुस्तकें पढ़ रही थी, तो श्रीगुरुजी की कुछ बातें याद आईं…आपको भी बताती हूँ….। ये एक बार बोले,” यह जो serials में दिखाते हैं न कि हमारे देवी- देवता अपनी 8-10 भुजाओं में शस्त्र, कमल इत्यादि धारण करे रहते हैं, इसे केवल प्रतीक रूप में समझना चाहिए। इसका अर्थ यह है कि देवी-देवताओं के पास असीम शक्ति है, जिससे वे असाधारण कार्य कर सकते हैं…उनकी personality multidimensional होती है और उनको अमुक-अमुक शस्त्र, पुष्प इत्यादि पसंद हैं… इसका अर्थ यह बिल्कुल नहीं होता कि वे आपस में बात भी करते हैं तो एक हाथ में तलवार उठाये रहते हैं और दूसरे हाथ की उंगली में चक्र घूमता ही रहता है…ये तो चित्रकार की विवशता है कि उसके पास सारी शक्ति व शस्त्र इत्यादि दिखाने का कोई और माध्यम नहीं है या उसकी कल्पना कह लो जिसमें वह अपने भाव उकेर देता है…अब यह तो हमारी ग़लती है न कि हमने ऐसे ही देखना- समझना शुरू कर दिया…., ऐसे ही एक चीज़ और serials में दिखाते हैं कि देवता भारी-भरकम आभूषण, मुकुट और style में दुप्पटे लपेट कर युद्ध कर रहे हैं…और यदि किसी का negative character दिखाना होगा तो वह *हा हा हा हा* करके ही ,हंसेगा और वह भी बेमतलब में….हम भी इसी को सच मानकर सारे देवी देवताओं को वैसे ही imagine करने लगते हैं ….but history is not fiction….और हमारा धर्म इतिहास है, कल्पना या मिथक नहीं…”।