28 मार्च 17….आज संध्या पूजा में हिसाली वाली मैया के पास प्रार्थना करने गयी । सब लोग स्तुति गा रहे थे… मेरा न आँख खोलने का मन था , न गाने का…. आस – पास के वातावरण की भी जैसे कोई सुध नहीं थी…सोचने की कोशिश भी की, कि क्या चल रहा है मन में पर कुछ समझ न आया। जब आँख खुली तो माँ की फूलों के श्रृंगार वाली चितवन दिखी पर वो मुझे देख रही हैं या नहीं, तय नहीं कर पाई । माँ से बस इतना ही कह पायी कि मुझे शक्ति दो कि मैं अपने कर्मों के लिए प्रायश्चित पूरा कर सकूँ और आप मेरा प्रायश्चित स्वीकार भी कर लें…
आप सब को भी अपने अभीष्ट फल की प्राप्ति , इस नव् संवत्सर में हो, मेरी यही शुभकामना है।