नई दिल्ली : देश के प्रधानमंत्री स्व. लालबहादुर शास्त्री का नाम उन राजनेताओं में शुमार हैं जिनकी साफ-सुथरी छवि के कारण हर पार्टी के नेता उनका सम्मान करते थे। शास्त्री जी ने अपने दौर में कई बार देश को संकट से उबारा। आज उनकी पुण्यतिथि के अवसर पर उन्हीं से जुड

देश के दूसरे प्रधानमंत्री शास्त्री भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई में 9 साल तक कारावास में रहे। शास्त्री जी 17 साल की उम्र में असहयोग आंदोलन के लिए पहली बार जेल गए, मगर बालिग न होने की वजह से उनको छोड़ दिया गया। इसके बाद वह सविनय अवज्ञा आंदोलन के लिए साल 1930 में ढाई साल के लिए जेल गए। इसके बाद साल 1940 और फिर 1941 से लेकर 1946 के बीच भी वह जेल में रहे। इस लिहाज से कुल नौ साल वह जेल में थे।
शास्त्री जी शुरू से ही जात-पात के सख्त खिलाफ थे। यही कारण था कि उन्होंने कभी भी अपने नाम के पीछे सरनेम नहीं लगाया। शास्त्री की उपाधि उनको काशी विद्यापीठ से पढ़ाई के बाद मिली थी। जानकारी के मुताबिक शास्त्री जी ने अपनी शादी में दहेज लेने से इनकार कर दिया था। जब कोई नहीं माना तो उन्होंने कुछ मीटर खादी का दहेज लिया।
साल 1964 में शास्त्री जी जब प्रधानमंत्री बने तब देश खाने की चीजें आयात करता था। उस वक्त देश नॉर्थ अमेरिका पर अनाज के लिए निर्भर था। साल 1965 में पाकिस्तान से युद्ध के दौरान देश में सूखा पड़ा तो हालात देखते हुए शास्त्री जी ने देशवासियों से एक दिन का उपवास रखने की अपील की। यही वो दौर था जब ‘जय जवान जय किसान’ का नारा सामने आया।
शास्त्री जी पाकिस्तान के साथ साल 1965 के युद्ध को खत्म करने के लिए समझौता पत्र पर हस्ताक्षर करने के लिए ताशकंद गए। ठीक एक दिन बाद 11 जनवरी 1966 को खबर आई कि हार्ट अटैक से उनकी मौत हो गई है। हालांकि अभी भी संदेह बरकरार है। उनके परिवार ने भी उनकी मौत से जुड़ी फाइलें सार्वजनिक करने की मांग सरकार से की थी।
 TOS News Latest Hindi Breaking News and Features
TOS News Latest Hindi Breaking News and Features
				 
		
		 
						
					 
						
					