भारत की सीमा से सटा नेपाल समय के साथ अलग देश के रूप में स्थापित हो चुका है. लेकिन नेपाल में आज भी कदम-कदम पर हिन्दू संस्कृति की झलक देखने को मिलती है. यहां कई ऐसे स्थान भी हैं, जिनका वर्णन हिंदू धर्म ग्रंथों में किया गया है. नेपाल की गंडकी नदी भी उन्हीं में से एक है. गंडकी नदी को ‘नारायणी’ के नाम से भी जाना जाता है.

यह मध्य नेपाल और उत्तरी भारत में प्रवाहित होने वाली नदी है. यह सोनपुर और हाजीपुर के बीच में गंगा नदी में जाकर मिल जाती है. यह काली नदी और त्रिशूली नदियों के संगम से बनी है. इन नदियों के संगम स्थल को नारायणी के नाम से भी जाना जाता है. यह नेपाल की सबसे बड़ी नदियों में से एक है. महाभारत में भी गंडकी नदी का उल्लेख मिलता है.
गंडकी नदी में एक विशेष प्रकार के काले पत्थर मिलते हैं, जिन पर चक्र, गदा आदि के निशान होते हैं. धर्म ग्रंथों के अनुसार, यही पत्थर भगवान विष्णु का स्वरूप हैं. इन्हें शालिग्राम शिला कहा जाता है. शिवपुराण के अनुसार, भगवान विष्णु ने खुद ही गंडकी नदी में अपना वास बताया था और कहा था कि गंडकी नदी के तट पर मेरा वास होगा. नदी में रहने वाले कीड़े अपने तीखे दांतों से काट-काटकर उस पाषाण में मेरे चक्र का चिह्न बनाएंगे और इसी कारण इस पत्थर को मेरा रूप मान कर उसकी पूजा की जाएगी.
ये है मान्यता-
शिवपुराण के अनुसार, दैत्यों के राजा शंखचूड़ की पत्नी का नाम तुलसी था. तुलसी के पतिव्रत के कारण देवता भी उसे हरने में असमर्थ थे. तब भगवान विष्णु ने छल से तुलसी की पतिव्रत को भंग कर दिया. जब यह बात तुलसी को पता चली तो उसने भगवान विष्णु को पत्थर बन जाने का श्राप दिया. भगवान विष्णु ने तुलसी का श्राप स्वीकार कर लिया और कहा कि तुम धरती पर गंडकी नदी तथा तुलसी के पौधे के रूप में सदा मौजूद रहोगी.
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