आजाद ने इस बैठक में विपक्ष के सभी दलों को बुलाने के बजाय कुछ प्रमुख दल के नेताओं को बुलाया है। बताया जा रहा है कि विपक्ष की एकजुटता बरकरार रखने और सरकार के खिलाफ हमले की रणनीति बनाने के लिए विपक्ष के 6 दलों के नेताओं का एक कोर समूह बनाया गया है। यह बैठक उसी कोर समूह की है। कांग्रेस के अलावा इस समूह में ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस, शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस, जदयू, वाम और द्रमुक के प्रतिनिधि शामिल हैं।
8 नवंबर को है नोटबंदी की वर्षगांठ
दरअसल, पिछले वर्ष 2016 में 8 नवंबर को पीएम मोदी ने सबको चौंकाते हुए 500 और 1000 के पुराने नोटों का चलन बंद करते हुए उन्हें अवैध करार दे दिया था। अर्थव्यवस्था के लिहाज से यह कदम बहुत बड़ा था। सरकार ने इस कदम को भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान का हिस्सा करार दिया था। लेकिन नोटबंदी के आंकड़े सार्वजनिक होने और अर्थव्यवस्था पर इसके पड़े नकारात्मक प्रभावों के बाद से पीएम मोदी के इस साहसी कदम पर सवाल उठने शुरू हो गए हैं। हालांकि सरकार की ओर से अब भी इस कदम का बचाव किया जा रहा है।
जबकि देश-दुनिया के तमाम अर्थशास्त्री पीएम मोदी के नोटबंदी पर सवाल उठा चुके हैं। यही नहीं नोटबंदी के बाद सरकार ने कर सुधार के नाम पर जीएसटी को लागू किया है। जिसके वजह से व्यापारी वर्ग को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। अब चुनाव की बेला में सरकार पर दबाव बनाने का विपक्ष कोई मौका नहीं गंवाना चाहती है। इसलिए नोटबंदी के साथ जीएसटी के मुद्दे को लेकर वह सरकार के खिलाफ बड़ अभियान चलाने की रणनीति बनाने में जुट गई है।
ऐसे में संसद में विपक्ष के सवालों का जवाब देना सरकार के लिए मुश्किल बढ़ाने वाला कदम साबित हो रहा है। विपक्ष के प्रचार से जनता के बीच गलत छवि न बन जाए सरकार के रणनीतिकारों को इसका भी भय सता रहा है। खैर आने वाले दिनों में नोटबंदी और जीएसटी की सफलता और असफलता गिनाने की जंग सरकार और विपक्ष के बीच तेज जरूर होगी। विपक्षी दलों की बैठक बुलाकर कांग्रेस ने सरकार की किलेबंदी के संकेत तो दे ही दिए हैं।