लखनऊ: कुछ सालों में राजनीति ने धर्म, जाति और का ऐसा चलन बढ़ कि कई लोग इन चीजों का प्रयोग कर बढ़ नेता बन गये, वहीं जो लोग धर्म, जाति व धन की राजनीति नहीं कर सके वह राजनीति से बाहर हो गये। हम बात कर रहे हैं कि हमीरपुर के मौदहा कस्बे के रहने वाले बश्ीरूद्दीन की। कभी बशीरूद्दीन यूपी में मंत्री हुआ करते थे पर राजनीति के बदलते हुए परिवेश ने उनको पीछे छोड़ दिया। आज वह राजनीति छोड़कर एक आम इंसान की तरह जिंदगी गुजार रहें हैं। 
हमीरपुर जिले के मौदहा कस्बे के रहने वाले बशीरुद्दीन कभी ईमानदार नेता के रूप में जाने जाते थे। 1980 के दशक में राजनीति में आए बशीरुद्दीन पहली बार साल 1991 में मौदहा सीट पर बसपा के टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़े। उस वक्त बीजेपी के प्रत्याशी बादशाह सिंह ने उनको हरा दिया था।
1993 में बसपा ने उन्हें मौदहा सीट से दोबारा से टिकट दिया। इस बार उन्होंने बादशाह सिंह से हिसाब को हराते हुए जीत हासिल की। साल 1995 में बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनने पर मायावती ने विधायक बशीरुद्दीन को मंत्री बनाया दिया। इसके साथ ही वह अल्पसंख्यक कल्याण, वक्फ और हज विभाग के साथ 3 अन्य विभागों के चेयरमैन भी रहे। बशीरुद्दीन को 1996 के विधानसभा चुनाव में बसपा से टिकट की उम्मीद थी, लेकिन पार्टी ने टिकट नहीं दिया। बसपा से टिकट ने मिलने की बात उनको इतनी नागवार गुजरी की उन्होंने हमेशा के लिए राजनीति से संन्यास लेने की ठान ली। उसके बाद से आजतक किसी भी राजनीतिक गतिविधि में हिस्सा नहीं लिया।
हमीरपुर के रहने वाले लोग बताते हैं. बशीरुद्दीन कभी अपनी विधायकी और मंत्री वाली शान शौकत के लिए जाने जाते थे। उन पर इलाके के लोगों को गर्व था। अब हालात ये है कि बशीरुद्दीन एकदम आम इंसान हो गए। सब्जी खरीदनी हो या कोई और काम हो तो अकेले ही स्टिक लेकर पैदल सड़क पर निकल पड़ते हैं। कहीं अखबार मिल जाए तो सड़क किनारे बैठ पढ़ लेते हैं। इलाके में वह ईमानदारी और सादगी के लिए मशहूर हैं। बशीरूद्दीन के दो बेटे हैं। एक बेटा सउदी अरब में नौकरी करता है। उसी की पगार से घर का खर्च चलता है। एक और बेटा है, जो प्राइवेट कम्पनी में नौकरी करता है।
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