उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव के पहले दौर में पश्चिमी हिस्सों के 15 ज़िलों की 73 सीटों पर शनिवार को वोट डाले जाएंगे.
गुरुवार शाम इन सभी सीटों पर प्रचार का शोर थम गया. पहले चरण का चुनाव केंद्र में सरकार चला रही भारतीय जनता पार्टी, प्रदेश की सत्ताधारी समाजवादी पार्टी (जिसने कांग्रेस के साथ गठबंधन कर लिया है) और बहुजन समाज पार्टी के लिए बेहद अहम है.
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लोकसभा चुनाव में खाता खोलने में नाकाम रहा राष्ट्रीय लोकदल भी इस चरण में बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद लगाए है.
अब तक पश्चिम उत्तर प्रदेश में कैसी तस्वीर उभर कर सामने आ रही है. वरिष्ठ पत्रकार शरद गुप्ता का आकलन –
तस्वीर साफ़ नहीं है, कोई लहर नहीं है, कोई एक मुद्दा नहीं है.
मुद्दे बहुत हैं, और हर पार्टी अपने मुद्दे को अलग तरीके से पेश कर रही है.
मुस्लिम वोट किसे?
इस क्षेत्र के कई हिस्सों में मुसलमानों की आबादी 30 से 40 फ़ीसद तक है.
कांग्रेस और सपा (समाजवादी पार्टी) के बीच जो गठबंधन हुआ है, उससे मुसलमानों के वोटों के बंटने का अनुमान है.
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वोटों का बंटवारा बीएसपी और सपा-कांग्रेस गठबंधन के बीच हो सकता है और ये एक निर्णायक पहलू हो सकता है.
हालांकि 2014 में धुव्रीकरण हुआ था. मुज़फ़्फ़रनगर के दंगों के बाद चुनाव के पूरे समीकरण बदल गए थे.
तब लोग सपा और बीजेपी के बीच में बंट गए थे.
उसकी वजह से लगभग सारी जातियों ने एक तरफ़ होकर बीजेपी को जिताया था. लेकिन इस बार वो स्थिति नहीं है.
खासतौर पर जाट जिन्होंने 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी की बहुत मदद की थी, इस बार वो राष्ट्रीय लोकदल की ओर मुड़ गए हैं.
मुस्लिम सपा और बसपा के बीच बंटे हैं. कहीं-कहीं राष्ट्रीय लोकदल का भी समर्थन कर रहे हैं.
बीजेपी को किसका साथ?
ऐसी स्थिति में बीजेपी को फायदा मिलना चाहिए था लेकिन दलित वोट बीजेपी के साथ नहीं है. जाट वोट साथ नहीं है.
दूसरी कुछ पिछड़ी जातियां बीजेपी के साथ नहीं हैं. नोटबंदी की वजह से कुछ हद तक व्यापारी वर्ग बीजेपी से नाराज़ है.
बीजेपी हर सीट पर मुकाबले में है लेकिन उसकी लहर नहीं है.
भ्रमित हैं मतदाता
साल 2014 में पश्चिमी उत्तर प्रदेश की वजह से पूरे प्रदेश में माहौल बना था.
लेकिन इस बार पश्चिमी उत्तर प्रदेश भ्रम में है.
मैंने जितना देखा मुस्लिम सपा-कांग्रेस की तरफ झुक रहे हैं लेकिन सपा के पास कोई दूसरा बेस वोट नहीं है.
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जहां मुसलमान ज़्यादा संख्या में हैं, वहां चुनाव के पहले के अंतिम 72 घंटे अहम होते हैं.
वो आख़िर में तय करते हैं कि बीजेपी को हराने की स्थिति में कौन सी पार्टी है, वो उसके पक्ष में वोट करते हैं.
फ़िलहाल मुक़ाबला काँटे का नज़र आता है जहाँ जीत-हार का फ़ैसला अधिकतर जगह एक हज़ार या दो हज़ार वोटों से ही होगा.