ऐसा अक्सर देखने को मिलता है कि जब देश के लिए कोई जवान शहीद होता है तो उसे अंतिम विदाई देने हजारों की संख्या में लोग मौजूद होते हैं। उसके परिवार से हमदर्दी भी व्यक्त करते हैं।
ऐसी ही कुछ कहानी देश के लिए उग्रवादियों से लड़ते हुए अपने प्राणों की आहुति देने वाले असम रायफल के वीर जवान शहीद अखिलेश की है। शहीद की अंतिम यात्रा में राजनेता, मंत्री, अधिकारी सहित न जाने कितने लोग पहुंच कर कई घोषणाएं की थी पर आज शहीद का परिवार गर्दिश में जी रहा है। शहीद के परिजनों की सुध लेने वाला कोई नहीं है।
भोजपुर जिले के शाहपुर प्रखंड के कनईली गांव निवासी गणेश पाण्डेय व उनकी पत्नी ने अपने बेटे अखिलेश पाण्डेय को पढ़ा-लिखा कर बड़े अरमानों के साथ देश की रक्षा के लिए सैनिक बनाया था। उनका सपना था कि उनका बेटा देश की रक्षा व बूढ़े मां-बाप का सहारा बन सकेगा।
29 असम राइफल में कार्यरत अखिलेश के परिवार को शायद ये पता नहीं था की उनकी आखों का तारा अखिलेश एक दिन सबको छोड़ इस दुनिया से बहुत दूर चला जायेगा। अखिलेश तो देश की रक्षा करते शहीद हो गए पर आज उनका परिवार राज्य सरकार द्वारा घोषित मुआवजे के लिए दर-दर भटक रहा है।
बहरहाल, अखिलेश के शहादत को पूरा देश सलाम करता है। शहीद अखिलेश पाण्डेय 29 असम राइफल मणिपुर में पोस्टेड था इसी दौरान 22 मई, 2016 को उग्रवादियों के मुठभेड़ में शहीद हो गए।
शहीद अखिलेश का पार्थिव शरीर उनके पैतृक गांव पहुंचा इस दौरान वहां कई राजनेता सहित जिले के अधिकारियों ने पहुंचकर उनकी शहादत को सलाम किया। राज्य सरकार के द्वारा पांच लाख रुपये के मुआवजे की घोषणा की गई, लेकिन मुआवजा तो दूर शहीद जवान के अंत्येष्टि के लिए जिला प्रशासन के तरफ से कोई राशि भी मुहैया नहीं कराई गई।
शहीद अखिलेश के पिता मुआवजे की राशि के लिए कई नेताओं, जिला प्रशासन के कई अधिकारियों से मुलाकात की लेकिन आज तक मुआवजे की राशि नहीं मिला। अब हालात यह हो गए है कि शहीद अखिलेश के परिवार वालों के बीच आर्थिक संकट खड़ा हो गया है।
यहां तक कि अखिलेश के मासूम बच्चे को पैसे के अभाव में फीस नहीं जमा करने पर स्कूल से निकाल दिया गया था। शहीद की बूढ़ी मां के पास अब सिर्फ आंसू ही आंसू रह गये हैं। शहिद का परिवार अब गर्दिश में जीवन जी रहा है।