राष्ट्रविरोधी और असामजिक गतिविधियों में संलिप्तता के आरोप में जन सुरक्षा अधिनियम (पीएसए) के तहत बंदी बनाए जाने वाले स्थानीय नागरिकों को अब जम्मू कश्मीर के बाहर देश की अन्य जेलों में भी रखा जा सकता है।
राज्य प्रशासनिक परिषद (एसएसी) ने जम्मू कश्मीर जन सुरक्षा अधिनियम के प्रावधान 10 के उस हिस्से को हटा दिया है, जो इस बात को यकीनी बनाता था कि पीएसए के तहत बंदी बनाए गए जम्मू कश्मीर के किसी भी नागरिक को राज्य के बाहर कैद नहीं किया जा सकता।
राज्य गृह विभाग ने हालांकि इस तथ्य की पुष्टि नहीं की है और न राज्य सरकार की तरफ से इस संदर्भ में किसी सूचना को सार्वजनिक किया गया है, लेकिन सूत्रों ने बताया कि एसएसी की गत 11 जुलाई को राज्यपाल एनएन वोहरा की अध्यक्षता में हुई तीसरी बैठक में इस प्रावधान को हटाने का फैसला लिया गया था।
एसएसी के अनुमोदन के बाद 13 जुलाई को राजभवन ने भी इस प्रस्ताव का अनुमोदन कर दिया और यह प्रभावी हो गया। इस संदर्भ में मंगलवार सुबह जब राज्य के प्रधान गृह सचिव आरके गोयल से संपर्क किया गया तो उन्होंने व्यस्तता का हवाला देकर बात करने से इन्कार कर दिया। इसके बाद उन्हें एसएमएस भी प्रेषित किया गया, लेकिन उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया।
जेलों में सुधार का हवाला :सूत्रों के अनुसार एसएसी ने 11 जुलाई को पीएसए के तहत जिस बिल को अनुमोदित किया है, उसका नाम जम्मू कश्मीर जन सुरक्षा अधिनियम संशोधन विधेयक 2018 है। इसमें कहा गया है कि जम्मू कश्मीर की जेलों में कैदियों, विचाराधीन कैदियों और अन्य बंदियों के रहने के लिए बेहतर सुविधाएं जुटाने के लिए बड़े पैमाने पर अवसंरचनात्मक सुधार के तहत यह प्रावधान जरूरी है।
इस संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय में जेलों में आवश्यक सुधार के संदर्भ में दायर एक जनहित याचिका का भी जिक्त्र किया गया है। इसमें कहा गया है कि सर्वोच्च न्यायालय ने कई बार जेलों में आवश्यक सुधार के लिए केंद्र व राज्य सरकार को लिखा है। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पारित निर्देशों के अनुरूप ही एसएसी जम्मू, श्रीनगर, अनंतनाग, कुपवाड़ा की जेलों में आवश्यक सुधार पर जोर देती है।इन जेलों में कैदियों की भीड़ घटाई जाए और आवश्यक सुविधाओं में सुधार लाया जाए।
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