20वीं सदी में 60 के दशक तक होने वाली शादी का नजारा अगर 21वीं सदी में दिखाई दे जाए तो चौंकना लाजमी है। हाथों में मोबाइल थाम चुकी पीढ़ी भी शायद ऐसी शादी देखकर दांतों तले अंगुलियां जरूर दबा लेगी और सन् 1957 की जुबली-डुबली फिल्म मदर इंडिया देख चुके लोगों को नरगिस और राजकुमार की शादी का सीन जरूर याद आ गया होगा।
जी हां, मदर इंडिया फिल्म में पत्तों की हरियाली के बीच राजकुमार और नरगिस के फेरे और फिर बैलगाड़ी से विदाई के समय-पिय के घर आज प्यारी दुल्हनिया चली…रोए माता-पिता उनकी जुनिया चली, छोड़ बाबुल का अंगना आज दुल्हनिया चली… गीत जैसा ही दृश्य बांदा के नरैनी में हकीकत के पर्दे पर उतरा दिखाई दिया। यह अनूठी शादी अब जनपद ही नहीं आसपास के क्षेत्र में भी चर्चा का विषय बन गई है। कोई मदर इंडिया फिल्म की बात कर रहा है तो कोई दुल्हन के शिक्षक पिता के प्रकृति प्रेम और शादी का अनूठा संगम बता रहा है।
पर्यावरण प्रेमी शिक्षक ने कराया विवाह : बांदा के नरैनी तहसील क्षेत्र के ग्राम खलारी के शिक्षक यशवंत पटेल का प्रकृति प्रेम जग जाहिर है, पेड़ों की रखवाली और पौधे लगाना उनकी जिंदगी का हिस्सा बन चुका है। जीव-जंतुओं के प्रति भी वह खासा लगाव रखते हैं, लोगों की मानें तो वह उनसे बातें भी किया करते हैं। उनकी पत्नी समुनलता अभी हाल में हुए पंचायत चुनाव में जिला पंचायत सदस्य निर्वाचित हुई हैं। गोरेपुरवा गांव में रहने वाली वंदना के माता पिता की मौत हो गई थी, जिसपर यशवंत ने उसकी शादी की जिम्मेदारी ली थी। उसका विवाह मध्यप्रदेश के छतरपुर सरबई थानांतर्गत मालपुर गांव निवासी कमलेश से तय हुआ था और 16 जून को शादी हुई।
बैलगाड़ी पर आई बरात, पत्ते-पत्तियों का सजा मंडप
16 जून को बरात दरवाजे आई तो बराती और जनाती शादी की सजावट और इंतजाम देखकर चौंक गए। जनाती इसलिए चौंक रहे थे कि दूल्हा बरात लेकर बैलगाड़ी पर आया था और जनाती इसलिए हैरान थे शादी का पूरा पंडाल पत्तों और पत्तियों से सजाया गया था। इतना ही नहीं मंडप भी पेड़ों के बीच पत्तियों से सजा था। दरअसल, इस अनूठी शादी की रूप रेखा यशवंत ने तैयार की थी और उनके कहने के मुताबिक दूल्हा बैलगाड़ी पर बरात लेकर आया था। मंडप की सजावट भी उन्होंने प्रकृति प्रेम का संदेश देने के लिहाज से करवाई थी।
दूल्हे के सिर पर खजूर का मौर, बैलगाड़ी से विदा हुई दुल्हन
बरात अगवानी के लिए पहुंची तो दूल्हे के सिर पर खजूर का मौर रखा था और बैंडबाजा की जगह ढोलक की थाप पर महिलाएं मंगलगीत गा रही थीं। इतना ही नहीं खानपान के लिए भी प्लेट या थाली नहीं थी बल्कि पत्तों पर नाश्ता और भोजन दिया जा रहा था। मिट्टी के कुल्हड़ में पानी व चाय दी जा रही थी। पेड़-पौधों के बीच सजे मंडप में जयमाल के बाद दूल्हा दुल्हन ने सात फेरे लिये, इसके बाद पीपल का पौधा रोपकर पर्यावरण संरक्षण का संदेश दिया गया। बरातियों को उपहार भेंट स्वरूप पौधे दिए गए। इसके बाद दुल्हन की विदाई भी बैलगाड़ी पर ही की गई। यह अनूठी शादी चर्चा का विषय बन गई है।
ऐसा है यशवंत का प्रकृति प्रेम
यशवंत इसके पहले भी इस तरह की शादियां करा चुके हैं। प्रकृति संरक्षण को बढ़ावा देने के साथ जीव-जंतुओं, पक्षियों की शादी भी कराकर समाज को अनूठा संदेश दे चुके हैं। करीब 14 गरीब असहाय बेटियों की शादी अपने खर्चे पर कर चुके हैं। इसमें वह और पत्नी सुमनलता खुद पैरपूजन करके कन्यादान भी लेते हैं। यशवंत बताते हैं कि सबसे पहले प्रकृति संरक्षण को बरकरार रखने के लिए मेढक और मेढकी की शादी ग्राम आनंदपुर में कराई थी। गौरैया दिवस पर ग्राम मोहन पुरवा में पक्षियों का ब्याह रचाया था। जीव-जंतुओं की शादी का कार्ड छपवाकर सभी को आमंत्रित करके प्रीतिभोज भी कराया था।
कैसे आया यह विचार
यशवंत बताते हैं कि गरीबी को बहुत करीब से देखा है, जब मेरी नौकरी लगी तो मैंने संकल्प लिया था कि वेतन का कुछ अंश दान करुंगा। नौकरी मिलने के बाद नहरी गांव के ग्राम दिवली पुरवा में एक बेटी की शादी में पहली बार पांच सौ रुपये देकर पैर छुए थे। तबसे मन में जुनून सवार था कि प्रकृति संरक्षण और गरीब असहाय बेटियों की शादियां कराकर अपना परलोक सुधारुंगा।
अबतक इनकी करा चुके शादी
2015 में मां की मृत्यु और पिता के गंभीर बीमारी का मरीज होने पर रानीपुर निवासी फूल प्रजापति की शादी भी यशवंत ने इसी तरह से संपन्न कराई थी। ग्राम गढ़ा गंगापुरवा में असहाय बेटी मैकी, ग्राम बरसड़ा मानपुर निवासी परिवार की बेटी के हाथ पीले कराए। मोहनपुरवा निवासी राजा की पुत्री वंदना, करतल निवासी कल्लू रैकवार की पुत्री शिवकली, कालिंजर में बाबू समुद्रे की बेटी रेखा का विवाह करा चुके हैं। सभी में दूल्हा और बरात बैलगाड़ी से आई और पुराने रीति-रीवाजों के अनुसार स्वागत किया गया।