बिहार को हर साल बाढ़ और सूखे का प्रकोप झेलना पड़ता है. बढ़ती आबादी और प्रदूषण की वजह से लोगों का जनजीवन प्रभावित हो रहा है. बिहार में जनसंख्या का घनत्व देश के औसत से तीन गुणा ज्यादा है. ऐसे में पर्यावरण को संतुलित करने का एक मात्र उपाय वृक्षारोपण है.बिहार सरकार ने पिछले कुछ वर्षों से इस पर ध्यान देना शुरू किया है. इसका नतीजा भी अच्छा देखने को मिल रहा है. इसी कड़ी में बिहार सरकार के वन एवं पर्यावरण विभाग ने अगले पांच वर्षों में 15.10 करोड़ पौधारोपण का लक्ष्य निर्धारित किया है. इतने पौधारोपण से बिहार में 2 प्रतिशत वनावरण में वृद्धि होगी. इसके तहत वन क्षेत्रों के बाहर सरकारी भूमि पर पथों, नहरों, तटबंधों इत्यादि पर भी वृक्षारोपण की योजना है.
बिहार में सबसे बड़ी समस्या है बढ़ती जनसंख्या. 2011 के जनगणना के अनुसार देश की जनसंख्या का घनत्व जहां 382 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर है, वहीं बिहार में जनसंख्या का घनत्व तीन गुणा ज्यादा 1102 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर है. यही वजह है कि बिहार के तीसरे कृषि रोड मैप 2017-2022 में पर्यावरण एवं वन विभाग द्वारा वन क्षेत्रों के बाहर वनावरण में 2 प्रतिशत वृद्धि करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है. अभी बिहार में 15 प्रतिशत वनावरण है.
गौरतलब है कि पर्यावरण एवं वन विभाग 2017 तक राज्य के 15 प्रतिशत भू-भाग पर वनाच्छादन करने के लक्ष्य को हासिल करने के लिए 23.95 करोड़ पौधों द्वारा वृक्षारोपण करने का लक्ष्य निर्धारित किया. विभाग द्वारा विभागीय भूमि, सरकारी भूमि तथा कृषि वानिकी के रूप में किसानों की रैयती भूमि पर 18.47 करोड़ वृक्षारोपण किया गया. 2012-17 की अवधि में 1,58,814 हेक्टेयर वनभूमि पर मृदा एवं नमी संरक्षण कार्य के साथ 621 लाख वृक्षारोपण किया गया.
प्राकृतिक वनों में परंपरा से अलग केवल वृक्षों को केंद्रित कर बनाई गई योजना के विपरीत पूरे इको-सिस्टम को आधार मान कर कार्य योजनाएं तैयार की गई हैं. प्राकृतिक वनों में जलछाजन विकास का कार्य किया जाएगा, जो मृदा के क्षरण को रोकने के साथ-साथ जल संरक्षण का भी कार्य करेगा.
पर्यावरण एवं वन विभाग, बिहार में वृहद् स्तर पर वृक्षारोपण कर बाढ़/सूखा को कम करने करने के लिए सचेत है. कृषि वानिकी के रूप में किसानों की रैयती भूमि पर भी वृक्षारोपण कार्य कर बाढ़ के प्रभावों को कम करने की दिशा में विभाग निरंतर कार्यरत है.