जहां उनके डिप्टी लालकृष्ण आडवाणी पूरी पार्टी के साथ मंदिर आंदोलन का शंखनाद कर रहे थे, वहीं भाजपा के पितृ पुरुष अटल बिहारी वाजपेयी ने इस आंदोलन से निश्चित दूरी बनाए रखी। ऐसा नहीं है कि अयोध्या उनके लिए अपरिचित थी या वह रामलला के अनुरागी नहीं थे। वह 1957 में बलरामपुर से चुनावी संपर्क के साथ ही अयोध्या के संपर्क में आए।
दिल्ली अथवा लखनऊ से बलरामपुर आते-जाते प्राय: अयोध्या से गुजरते और कुछ बार रुकते थे पर 1984 से मंदिर आंदोलन शुरू होने तक उनकी राह बदल चुकी थी। इसके बाद अटल जी का अव्वल तो अयोध्या आने का नियमित क्रम बंद हो गया। इसके बाद वह जब अयोध्या आए, तब भी राम मंदिर मकसद नहीं था। 1989 के विस चुनाव में वह पार्टी प्रत्याशी लल्लू सिंह के समर्थन में चुनावी सभा को खिताब करने आए। हालांकि तब तक मंदिर आंदोलन उभार की ओर था।इसके बावजूद अटल ने मंदिर-मस्जिद के विषय से दूरी बनाए रखी।
स्थानीय गुलाबबाड़ी के मैदान में आधा घंटा से अधिक का उनका भाषण सधा, काव्यात्मक एवं राजनीतिक मूल्यों के इर्द-गिर्द था। 89 में शिलान्यास और 90 की कारसेवा से छह दिसंबर 92 तक मंदिर मुद्दा उभार पर था पर अटल जी इसके स्पर्श से बचे रहे। 90 में वे नवनिर्मित रामकी पैड़ी की पुलिया टूट जाने के मामले की समीक्षा करने आयी पार्टी की उच्च स्तरीय समिति का नेतृत्व किया।
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