दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि अगर राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में हरियाली और वन भूमि गैरकानूनी निर्माण और अतिक्रमण का शिकार होती है तो दिल्ली रेगिस्तान में बदल सकती है. कोर्ट ने कहा कि पर्यावरण का मुद्दा चिंता का विषय है और ग्लोबल वार्मिंग के प्रतिकूल प्रभावों को ध्यान में रखते हुए इससे युद्ध स्तर पर निपटने की जरूरत है. 
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दक्षिणी दिल्ली के नेब सराय में वन भूमि में कथित अतिक्रमण के विरोध में डाली गई याचिका की सुनवाई करते हुए कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश जस्टिस गीता मित्तल और जस्टिस सी हरिशंकर की एक पीठ ने कहा, शहर रेगिरस्तान बनने के खतरे की कगार पर है. हरियाली खत्म होने से शहर सबसे ज्यादा इस खतरे को झेल रहा है.
याचिका जंगल से गुजरने वाली एक सड़क को बंद करने के लिए डाली गई थी. इस सड़क का निर्माण आपातकालीन गाड़ियों को इंदिरा एंक्लेव तक पहुंचने के लिए किया गया था. यह एक अनाधिकृत कॉलोनी है. जंगल से गुजरने वाली इस सड़क को अदालत ने मंजूरी नहीं दी थी. यह सड़क शहर के रिज क्षेत्र में आता है.
अदालत ने कहा, आप अनाधिकृत कॉलोनी बनाने के बाद सभी तरह के लाभों की मांग नहीं कर सकते हैं. अदालत ने कहा, वन भूमि मार्ग में नहीं बदली जा सकती, क्योंकि यह मास्टर प्लान के नियोजित विकास से साफ तौर पर ऊपर है. वहीं दिल्ली सरकार का पक्ष रख रहे गौतम नारायण ने कहा कि वन के उपसंरक्षक के कार्यालय ने सड़क को बंद करने और अतिक्रमण से बचाने के लिए सीमारेखा वनक्षेत्र में एक दीवार निर्माण का भी आदेश दिया है. पीठ ने निर्देश दिया है कि संबंधित जगह वनभूमि के तौर पर ही रहेगी.
हाईकोर्ट ने कहा है कि सड़क निर्माण से जुड़े किसी भी तरह के अतिक्रमण और निर्माण की इजाजत नहीं है. कोर्ट ने दीवार का निर्माण दो महीने के भीतर कराने का निर्देश दिया है और इससे संबंधित रिपोर्ट को 31 जुलाई को होने वाली अगली सुनवाई से पहले दायर करने को कहा है.
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