उत्तर प्रदेश में एक बार फिर सांप्रदायिक तनाव के कारण जिलों से पलायन का मुद्दा उठा है। इस मामले में यूपी सरकार ने डीजीपी और डिविजनल कमिश्नर्स को खत लिखकर इस बारे में जानकारी मांगी। रिपोर्ट देने के लिए एक हफ्ते का समय दिया गया है। बता दें कि यह मुद्दा साल 2016 में भी उठाया जा चुका है।
सरकार के पत्र में गृह सचिव भगवान स्वरूप के खत हैं और यह 29 मार्च का है। इसमें 28 फरवरी 2017 तक किए गए पलायनों के बारे में जानकारी और डेटा गृह मंत्रालय को देने के लिए कहा गया है।
सख्त हुई सरकार 
सरकार ने सख्ती दिखाते हुए सीनियर अधिकारियों को इस बारे में 20 जून, 2017 को भी निर्देश दिए जाने के बावजूद गंभीरता से नहीं लेने के लिए फटकार लगाई है। पत्र में लिखा है- ‘जो जानकारी इस मामले में दी गई थी, वह मीडिया रिपोर्ट्स या इलाके के लोगों की भावनाओं से मेल नहीं खाती, खासकर पश्चिम यूपी में जहां से पलायन की खबरें आई थीं।’ 
डिविजनल कमिश्नर (मेरठ) प्रभात कुमार ने बताया, ‘हमें पत्र मिल गया है लेकिन इस तरह की जानकारी मांगा जाना रूटीन है और हमने इसे डीएम और अन्य संबंधित विभागों को भेज दिया है।’ वहीं, मेरठ के एसएसपी मंजिल सैनी ने बताया कि यह पुराना मामला है और क्योंकि तब जानकारी नहीं दी गई थी, इसलिए नया पत्र भेजा गया है। उन्होंने बताया कि सरकार को रिपोर्ट दे दी गई है। उन्होनें मेरठ में ऐसा कोई पलायन नहीं देखा है।
2016 में उठा था मुद्दा 
इससे पहले यह मुद्दा कैराना के दिवंगत सांसद हुकुम सिंह ने जून 2016 में उठाया था। उन्होंने 250 हिंदू परिवारों की लिस्ट पेश करते हुए दावा किया था कि उन्हें इलाके में ‘विशेष समुदाय’ के लोगों से डर के कारण कैराना छोड़ना पड़ा था। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की एक रिपोर्ट ने उनकी बात को सही माना था। 
उस वक्त इस मामले ने काफी तूल पकड़ा था। उत्तर प्रदेश में चुनाव होने वाले थे और बीजेपी ने समाजवादी पार्टी (एसपी) पर तुष्टीकरण का आरोप लगाया था। यही नहीं, बीजेपी ने इस मुद्दे को अपने घोषणापत्र में जगह तक दे दी। पार्टी अध्यक्ष अमित शाह और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इसे उठाते रहे हैं।
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