सीबीआई टीम में आए चार सदस्यों ने शनिवार दोपहर करीब 12 बजे सीपीटीएम दफ्तर में छापा मारा। दफ्तर बंद होने के बाद हुई कार्रवाई से हड़कंप मच गया। छापेमारी के दौरान सीपीटीएम भी मौजूद नहीं थे। इसलिए दफ्तर का ताला खुलवाया गया। सीबीआई ने सबसे पहले कंप्यूटर में रिकॉर्ड खंगाले, फिर उसके हार्डडिक्स को कब्जे में ले लिया। आलमारी खुलवाकर उसमें रखीं फाइलों की भी पड़ताल की। कई फाइलों को टीम ने कब्जे में लिया है। इसके बाद टीम रेलवे के जिस रेस्ट हाउस में सीपीटीएम रहते हैं, वहां भी गई। उनकी गैर मौजूदगी में टीम ने पड़ताल के बाद कुछ दस्तावेज जब्त कर लिए। रात में टीम वापस हो गई।
सूत्रों की माने तो टीम के हाथ कुछ अहम दस्तावेज लगे हैं, जिसके चलते सीपीटीएम की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। माना जा रहा है कि दो साल पहले (2015) रेलवे के खजाने में कई दिनों तक करीब 30 लाख रुपये जमा नहीं कराए गए थे। इस मामले में सीपीटीएम पर आरोप भी लगाए गए थे। सीबीआई ने एमके सिंह पर रुपये के हेरफेर और तथ्य छुपाने जैसी आरोपों पर गंभीर धाराओं में केस दर्ज किया है। इसके साथ ही आरोपों की जांच कर रहे विजिलेंस इंस्पेक्टर पर भी सीबीआई ने केस दर्ज कर लिया है। आरोप साबित हुए तो सीपीटीएम की गिरफ्तारी हो सकती है।
शेयर मार्केट में रुपये लगाने के आरोप
सीपीटीएम पर आरोप है कि लखनऊ मंडल में सीनियर डीसीएम रहते हुए विभिन्न स्टेशनों से आए नकद कैश को करेंसी चेस्ट में नहीं जमा कराया। कैश अपने पास रखा, फिर उसे शेयर मार्केट में लगा दिया। नियमों के मुताबिक कलेक्शन के दिन ही धनराशि खजाने में जमा हो जाती है। एक शिकायत के बाद ही सीपीटीएम पर ये आरोप लगे थे।
फंसने के बाद दिया गया था प्रमोशन
लखनऊ में सीनियर डीसीएम रहते हुए जब मनोज सिंह इस मामले में फंसे थे तो तत्कालीन महाप्रबंधक मधुरेश कुमार ने उन्हें निलंबित कर दिया था। करीब एक महीने निलंबित रहने के बाद अपनी पहुंच का फायदा उठाकर मनोज सिंह ने प्रमोशन भी ले लिया। प्रमोशन की खातिर ही उन पर लगे आरोपों के मामले में चार्ज शीट दाखिल करने में विलंब किया गया। कुछ ही दिनों बाद उन्हें सीपीटीएम पद पर बैठाकर महत्वपूर्ण दायित्व दे दिया गया। मनोज सिंह पूर्वोत्तर रेलवे के सीपीआरओ भी रह चुके हैं। सरकारी धनराशि के दुरुपयोग या फिर बंदरबांट के आरोप साबित हुए तो विभागीय के साथ ही कानूनी कार्रवाई संभव है।