घोर राजनीतिक मतभेदों के बीच सभी दलों के नेताओं से व्यक्तिगत एवं आत्मीय रिश्ते कायम करने में अटल बिहारी वाजपेयी को हमेशा याद किया जाएगा। यही वजह है कि सभी दलों के नेताओं ने उन्हें बराबर सम्मान दिया। अटल जी ने उसे सार्वजनिक रूप से स्वीकार करने में कभी कोताही नहीं बरती।
‘द अनटोल्ड वाजपेयीः पॉलिटिशियन एंड पैराडॉक्स’ पुस्तक में ऐसे ही एक वाकये का जिक्र है। इसमें अटल जी ने बताया है कि कैसे तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने बीमारी में उनकी मदद की थी। विपरीत राजनीतिक ध्रुवों पर खड़े इन दोनों नेताओं के बीच मधुर संबंध आज के राजनेताओं के लिए मिसाल है, जो एक-दूसरे को फूटी आंख नहीं सुहाते।
इस पुस्तक में अटल जी के हवाले से लिखा गया है, ‘जब राजीव गांधी को पता चला कि मुझे किडनी की बीमारी है और उसके इलाज के लिए मुझे विदेश जाना होगा, तो उन्होंने मुझे अपने दफ्तर में बुलाया। जब मैं वहां पहुंचा तो राजीव ने बताया कि उन्होंने मुझे संयुक्त राष्ट्र के प्रतिनिधिमंडल में शामिल कर लिया है। राजीव ने उम्मीद जताई कि इस विदेश दौरे में मुझे अपनी बीमारी का इलाज कराने का मौका मिल जाएगा। मैं न्यूयार्क गया और आज मैं जिंदा हूं तो इसकी बड़ी वजह राजीव गांधी हैं।’
1984 से 1989 तक प्रधानमंत्री रहे राजीव गांधी ने अपने अधिकारियों को स्पष्ट निर्देश दिया था कि जब तक अटल जी का इलाज पूरा न हो जाए, उन्हें वहीं रहने दिया जाए। अटल जी तब विपक्ष के नेता थे।
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