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संतान प्राप्ति की कामना में शुक्रवार को निसंतान दंपत्तियों की काशी में भीड़ उमड़ी

संतान प्राप्ति की कामना में शुक्रवार को निसंतान दंपत्तियों की काशी में भीड़ उमड़ी हुई है। लोलार्क कुंड में आज लोलार्क षष्ठी के मौके पर इन दंपत्तियों ने जोड़ा स्नान किया। देश के तमाम हिस्सों से जुटे लाखों लोगों की भीड़ 24 घंटे पहले से ही स्नान के लिए पहुंच गई थी। इसके कारण कई किलोमीटर तक कतार दिखाई दी। मध्य रात्रि के ठीक बाद जैसे ही स्नान आरंभ हुआ समूचा लोलार्क कुंड परीक्षेत्र  हरहर महादेव के घोष से गूंज उठा। भदैनी स्थित लोलार्क कुंड में स्नान के लिए तीन तरफ से कतारें लगी थीं। एक कतार लंका से अस्सी होते हुए भदैनी पहुंच रही थीं तो दूसरी रविंद्रपुरी से शिवाला होते हैं वहीं तीसरी कथा सोनारपुरा होते हुए बोर में गोदौलिया तक पहुंच गई थी। स्पीड में बहुत से ऐसे लोग भी थे जो भगवान सूर्य के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने आए थे। कोरोना के कारण विगत दो वर्षों में स्नान बाधित रहने के कारण इस वर्ष कहीं अधिक भीड़ रही। लोलार्क षष्ठी की पूर्व संध्या पर गुरुवार देर रात तक लोलार्क स्नानार्थियों की कतार मदनपुरा तक लग गई थी। मध्यरात्रि से कुंड में स्नान शुरू होगा जो शुक्रवार की मध्यरात्रि तक चलेगा। क्या है मान्यता मान्यता है कि यहां स्नान और लोलार्केश्वर महादेव के दर्शन मात्र से निसंतान दंपतियों को संतान प्राप्ति होती है। जानकार बताते हैं कि इस दिन सूर्य की रोशनी में एक अलग प्रकार का कंपन होता है। इसे लोलन कहते हैं। और यही लोलार्क कुंड या लोलार्केश्वर महादेव की महिमा है। पं. शिवप्रसाद पांडेय बताते हैं कि सदियों पहले यहां एक बड़ा उल्कापिंड गिरा था, जिससे इस कुंड का निर्माण हुआ। कालांतर में महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने कुंड का सुंदरीकरण कराया। गड़वाल ताम्रपत्रों में उल्लेख बीएचयू के पुरातत्वविद डॉ. अशोक कुमार सिंह के अनुसार यहां स्थित मंदिर का उल्लेख गड़वाल ताम्रपत्रों में है। बावड़ी का मुंह दोहरा है, एक में पानी इकट्ठा होकर दो कुओं में जाता है। कुण्ड के एक ताखे पर भगवान सूर्य का प्रतीक चक्र बना है।
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