अब यह साफ होता जा रहा है कि सरकार के पास पेट्रोलियम उत्पादों से राजस्व बढ़ाने के अलावा और कोई चारा नहीं रह गया है। अगर ऐसा नहीं होता तो, घरेलू बाजार में पेट्रोल की खुदरा कीमत में 59 पैसे और डीजल में 58 पैसे प्रति लीटर की वृद्धि नहीं की जाती। यह वृद्धि तेल कंपनियों ने शनिवार को की है। इसे मिलाकर सात दिनों में पेट्रोल में 3.90 रुपये प्रति लीटर और डीजल में 4 रुपये प्रति लीटर का इजाफा किया जा चुका है। यह स्थिति तब है जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड की कीमत अभी 37-38 डॉलर प्रति डॉलर है। इस तरह से देखा जाए तो चार महीने पहले जब क्रूड 60-65 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर था तब भी आम जनता को पेट्रोल व डीजल इतना महंगा नहीं खरीदना पड़ता।
इस वृद्धि का मतलब यही हुआ कि जब क्रूड की कीमत कुछ ही दिनों में 60 डॉलर से घटकर 30 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गई थी, तब उसका फायदा आम जनता को नहीं मिला। लेकिन अब इसमें महज सात-आठ डॉलर प्रति बैरल की वृद्धि हो गई तो उसका बोझ उन्हें उठाना पड़ रहा है। पेट्रोलियम व प्राकृतिक गैस मंत्रलय के आंकड़ों के मुताबिक, भारत ने मार्च, 2020 में औसतन 33.60 डॉलर प्रति बैरल की दर से क्रूड खरीदा था। चालू वित्त वर्ष के पहले महीने (अप्रैल-2020) में यह घटकर 19.90 डॉलर प्रति बैरल हो गया। मई में यह फिर बढ़कर 30.60 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर है।
अब दूसरी तरफ देखा जाए तो पूरे अप्रैल और मई में दिल्ली में पेट्रोल 69.59 रुपये प्रति लीटर और डीजल 62.29 रुपये प्रति लीटर रही है। शनिवार को इनकी कीमत क्रमश: 75.16 रुपये प्रति लीटर और 73.39 रुपये प्रति लीटर रही है। सिर्फ इन्हीं महीनों की बात करें तो क्रूड की कीमत में 10 डॉलर की गिरावट होने पर ग्राहकों को कोई फायदा नहीं हुआ। लेकिन जैसे ही कीमत में सात डॉलर की वृद्धि हुई तो कीमत 3.90 से 4 रुपये तक का इजाफा हो गया।
इस समीकरण के पीछे मुख्य वजह यह है कि कोविड-19 की वजह से जिस तरह से केंद्र व राज्यों का राजस्व संग्रह पूरी तरह से सूख गया है, उससे उनके लिए पेट्रोल व डीजल ही राजस्व जुटाने का एकमात्र प्रमुख स्नोत बन गया है। मई में केंद्र सरकार ने पेट्रोल व डीजल पर तीन रुपये प्रति लीटर की दर से अतिरिक्त टैक्स लगा दिया था। साथ ही कर्नाटक, ओडिशा, तमिलनाडु, महाराष्ट्र जैसे कई राज्यों ने इन उत्पादों पर लगाये जाने वाले स्थानीय शुल्क की दरों को भी बढ़ा दिया है। बहरहाल, महंगे पेट्रोल व डीजल की वजह से देश का ट्रांसपोर्टर बहुत परेशान हैं, क्योंकि इससे माल ढुलाई की लागत में खासी बढ़ोतरी हो रही है।