New Delhi: सुदामा और श्रीकृष्ण एक घनिष्ठ मित्र हैं। लेकिन दोनों में बहुत फर्क है। क्या आप जानते हैं सुदामा ने बचपन में ऐसी कौन सी गलती की जिसकी वजह से उन्हें कंगाली झेलनी पड़ी। चलिए बताते हैं।
आखिर एक ब्राह्मण होने के बावजूद सुदामा को इतनी कंगाली में जीवन क्यों व्यतीत करना पड़ा। आइए जानते हैं विस्तार से कि सुदामा को भगवान की मित्रता के बावजूद गरीबी क्यों मिली। पौराणिक कथाओं के मुताबिक, एक ब्राह्मणी थी जो बहुत गरीब निर्धन थी। भीख मांगकर अपना जीवन यापन करती थी।
एक समय ऐसा आया कि जब 5 लगातार पांच दिन तक उसे कुछ नहीं मिला। छठवें दिन उसे एक घर से दो मुट्ठी चने मिले। लेकिन ब्राह्मणी ने सोचा कि अब इसे अगले दिन ही खाऊंगी। इस तरह वासुदेव को याद करते-करते वह सो गई। पश्चात जब वह सो गई तो कुछ चोर चोरी करने के लिए उसकी कुटिया मे आ गए। चोरों के हाथ चने की पोटली लगी। उन्हें लगा कि इसमें सोने के सिक्के हैं।
इतने मे ब्राह्मणी जाग गई और शोर मचाने लगी। इतने में सारा गांव इकट्ठा हो गया। इसके बाद चोर भागकर पास के संदीपन मुनि के आश्रम में छिप गए। इसी आश्रम में भगवान श्री कृष्ण और सुदामा शिक्षा ग्रहण कर रहे थे। गुरुमाता को लगा की कोई आश्रम के अन्दर आया है गुरुमाता देखने के लिए आगे बढीं चोर समझ गये कोई आ रहा है चोर डर के मारे चने की पोटली वहीं छोड़ कर भाग गए। भूख से व्याकुल ब्राह्मणी को जब पता चला कि जो कुछ खाने के लिए था वह भी चला गया तो भूख से व्याकुल होकर उसने श्राप दिया कि ‘जो भी मेरे चने चुराकर खाएगा वह दरिद्र हो जाएगा।’
इसके बाद जब सुबह हुई तो आश्रम में गुरुमाता को को वह पोटली मिली। उधर सुदामा जी और कृष्ण भगवान रोज की तरह जंगल से लकड़ी लाने की तैयारी में थे। भूख से व्याकुल ब्राह्मणी को जब पता चला कि जो कुछ खाने के लिए था वह भी चला गया तो भूख से व्याकुल होकर उसने श्राप दिया कि ‘जो भी मेरे चने चुराकर खाएगा वह दरिद्र हो जाएगा।’ इसके बाद जब सुबह हुई तो आश्रम में गुरुमाता को को वह पोटली मिली। उधर सुदामा जी और कृष्ण भगवान रोज की तरह जंगल से लकड़ी लाने की तैयारी में थे।
सुदामा जी ने सोचा, गुरु माता ने कहा है यह चने दोनो लोग बराबर बाँट के खाना। लेकिन ये चने अगर मैंने ये चने श्री कृष्ण को खिला दिये तो सारी सृष्टि दरिद्र हो जाएगी। नहीं-नहीं मैं ऐसा नही करुंगा मेरे रहते मेरे प्रभु दरिद्र हो जायें मै ऐसा बिल्कुल नहीं करुंगा। मैं ये चने स्वयं खा जाऊंगा लेकिन कृष्ण को नही दूंगा। इसके बाद फिर सुदामा जी ने सारे चने खुद ही खा लिए। और दरिद्रता का श्राप सुदामा जी ने स्वयं ले लिया। चने खाकर । लेकिन अपने मित्र श्री कृष्ण को एक भी दाना चना नही दिया। जिसके कारण उन्हें आधे से ज्यादा उम्र गरीबी झेलनी पड़ी।