दिल्ली में अधिकारों को लेकर मुख्यमंत्री और उपराज्यपाल के बीच छिड़ी जंग के मुद्दे पर सुप्रीम की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने अपना अहम फैसला तो सुना दिया, लेकिन हालात जस के तस हैं।सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद आम आदमी पार्टी अब पूरी तरह से आक्रामक रुख में है तो वहीं दूसरी ओर सर्विसेज विभाग के अधिकारियों ने सरकार की बात मानने से तब तक इन्कार कर दिया है, जब तक कि कोई नया नोटिफिकेशन जारी नहीं होता। बढ़ते विवाद के मद्देनजर पहले तो मंत्री मनीष सिसोदिया ने अधिकारियों को निशाने पर लेते हुए घेरा तो अरविंद केजरीवाल ने बढ़ते विवाद पर उपराज्पाल अनिल बैजल से मिलने के लिए वक्त मांगा है।
जानकारी के मुताबिक, मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने गुरुवार को अपने सभी विधायकों की बैठक बुलाई है। हालांकि, फैसला आने के बाद मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली सचिवालय पर कैबिनेट की बैठक बुलाई थी, जिसमें सभी मंत्रियों के विभागों में लंबित पड़े कामकाज से जुड़ी फाइलों को तलब किया गया था।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद बुधवार को दिल्ली सरकार ने कैबिनेट की बैठक बुलाकर फैसला लिया कि आइएएस और दानिक्स अफसरों के तबादले मुख्यमंत्री करेंगे। जबकि दूसरे कैडर के अफसरों के तबादले उपमुख्यमंत्री व अन्य मंत्री करेंगे। सर्विसेज विभाग के मंत्री मनीष सिसोदिया ने इस बारे में आदेश जारी भी किया था।नाम न छापने की शर्त पर कुछ अफसरों ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट के बुधवार के फैसले में हाई कोर्ट द्वारा चार अगस्त 2016 को दिए गए फैसले को निरस्त किए जाने के बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं है। सर्विसेज विभाग को मई 2015 में केंद्र सरकार ने अधिसूचना जारी कर उपराज्यपाल के अधीन कर दिया था। सरकार के अधिकारियों का कहना है कि उन्हें इस तरह का कोई आदेश नहीं मिला है। इस कारण पहले की तरह व्यवस्थाएं जारी रहेंगी।
यहां पर बता दें कि बुधवार को अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि उपराज्यपाल दिल्ली में फैसला लेने के लिए स्वतंत्र नहीं हैं, एलजी को कैबिनेट की सलाह के अनुसार ही काम करना होगा। इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया है कि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा मिलना मुमकिन नहीं है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले से साफ है कि दिल्ली की चुनी हुई सरकार ही राज्य को चलाने के लिए जिम्मेदार है।
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