कुछ 60 पार कर गए हैं तो कई 60 के करीब। इसके बाद भी लगभग 22 सौ आकस्मिक श्रमिकों का उत्साह ठंडा नहीं पड़ा है। आज भी रेलवे में नौकरी पाने की आस नहीं छोड़ी है। रेलवे में हाजिरी लगवाने के लिए वे पिछले 30 साल से रेलवे पहुंच रहे हैं। प्रत्येक सोमवार और शुक्रवार को नियमित बड़ी संख्या में कार्मिक कार्यालय पहुंचकर अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं। हाजिरी तो नहीं लगती लेकिन उनके मन को तसल्ली जरूर मिल जाती है। आपस में कोर्ट के मामलों और रेलवे की हलचल पर चर्चा करते हैं। फिर घर की हालचाल होती है और मन में एक टीस लिए हुए थके कदमों से वापस लौट जाते हैं।
वर्ष 1980 से 1985 के बीच बाराबंकी से गोरखपुर होते हुए छपरा तक लगभग 425 किमी मुख्य रेल मार्ग का आमान परिवर्तन हुआ। बड़ी लाइन बिछाने में पूर्वाचल के सैकड़ों युवाओं ने अपना पसीना बहाया। रेलवे प्रशासन ने कार्य करने वाले सभी युवाओं को नियमित नौकरी देने का आश्वासन दिया था, लेकिन बाद में मुकर गया। 1990 में चला था 100 दिन का धरना
रेलवे प्रशासन के मुकरने के बाद श्रमिकों ने महाप्रबंधक कार्यालय के सामने 100 दिन तक धरना दिया था। रेलवे प्रशासन को झुकना पड़ा, लेकिन लगभग 300 जूनियर श्रमिकों की नियुक्ति कर हाथ खड़ा कर लिया। शेष करीब ढाई हजार सीनियर श्रमिक हाथ मलते रह गए। कोर्ट व रेलवे के चक्कर में गुजर गई उम्र
रेलवे ने सुनवाई नहीं की तो श्रमिक कोर्ट की शरण में चले गए। कोर्ट की फटकार के बाद रेलवे ने 1997-2000 के बीच लगभग 2200 श्रमिकों की दक्षता परीक्षा कराई, लेकिन बाद में उम्र का हवाला देते हुए उन्हें भी अयोग्य करार दे दिया। श्रमिक कैट चले गए। कैट ने जुलाई 2001 में रेलवे प्रशासन को श्रमिकों को नौकरी देने के लिए आदेशित किया, लेकिन रेलवे फिर से हाईकोर्ट में रिट याचिका दायर कर दिया। मामला फिर हाईकोर्ट पहुंचा और लंबी सुनवाई के बाद कोर्ट ने 19 जनवरी 2018 को रिट याचिका निरस्त करते हुए कैट में लंबित अवमानना वाद को चलाने का आदेश किया। फिर भी बात नहीं बनी।