अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में अब तक के रुझानों के मुताबिक हिलेरी क्लिंटन के जीतने की संभावना 78 प्रतिशत है और यह रुझान भारत के हित में है। वहीं, रिपब्लिकन उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप भरोसे लायक नहीं हैं और भारत के लिए उनकी जीत जुआ साबित हो सकती है। पूर्व कैबिनेट सचिव और अमेरिका में भारत के राजदूत रहे नरेश चंद्रा ने अमर उजाला संवाददात गुंजन कुमार से बातचीत करते हुए बताया कि यह हैरानी की बात है कि अमेरिकी एजेंसी एफबीआई ने डेमोक्रेट प्रत्याशी हिलेरी क्लिंटन के ई-मेल और निजी सर्वर की जांच का मामला इस नाजुक वक्त में उठाया है। लेकिन ई-मेल में क्या है, इस बारे में कोई नहीं बोल रहा है। जाहिर है कि यह किसी योजना के तहत है जो रिपब्लिकन प्रत्याशी डोनाल्ड ट्रंप के हितों को ध्यान में रखकर किया जा रहा है। लेकिन मुझे नहीं लगता कि इसका फायदा ट्रंप उठा पाएंगे। अमेरिका में ही एफबीआई के इस कदम पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं।इतनी बहकी बातें करने के बावजूद ट्रंप को अमेरिका की तीन बड़ी लॉबी मदद कर रही है। वह है गन, चर्च से जुड़ा अमेरिका का कट्टर एलीट वर्ग और दवा और स्वास्थ्य सेवा से जुड़ी फार्मा लॉबी। यह लॉबी डेमोक्रेट की सरकार नहीं चाह रही। अमेरिकी नागरिकों के बंदूक रखने के अधिकार की वकालत करने वाली अति प्रभावी संस्था नेशनल रायफल एसोसिएशन के खिलाफ जाकर हिलेरी ने हथियारों की खुलेआम बिक्री पर अंकुश लगाने की वकालत की है। इससे गन लॉबी परेशान है। ओबामा के नए स्वास्थ्य बीमा की वजह से फार्मा लॉबी की मनमानी पर अंकुश लगा है। अमेरिकी एलीट वर्ग का बड़ा हिस्सा इन लॉबियों के कर्ताधर्ता हैं। संकेत इस बात के भीमिल रहे हैं कि एफबीआई की ई-मेल के हथकंडे के पीछे कहीं न कहीं यही लॉबी काम कर रही है। लेकिन इस सबके बावजूद मेरा मानना है कि हिलेरी क्लिंटन का पलड़ा भारी है।
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