ज़िन्दगी का फलसफा भी कितना अजीब है,
शामें कटती नहीं, और साल गुज़रते चले जा रहे है… ”
ज़रूरी तो नहीं के शायरी वो ही करे जो इश्क में हो,
ज़िन्दगी भी कुछ ज़ख्म बेमिसाल दिया करती है।
अकेले ही गुज़रती है ज़िन्दगी…
लोग तसल्लियां तो देते हैं , पर साथ नहीं…!!
जीवन की सुबह में कभी सांझ न हो
जो मिल न सके रब से वो मांग न हो
खूब चमकें सितारे खुशियों के
ज़िन्दगी कभी अमावस का चाँद न हो
सही वक़्त पर पिए गए “कड़वे घूंट”
अक़्सर ज़िन्दगी “मीठी” कर दिया करते है”
रास्ता तू ही और मंज़िल तू ही, चाहे जितने भी चलूँ मैं कदम,
तुझसे ही तो मुस्कुराहटें मेरी, तुझ बिन ज़िन्दगी भी है सूनी..!!
तकदीरें बदल जाती हैं, जब ज़िन्दगी का कोई मकसद हो;
वर्ना ज़िन्दगी कट ही जाती है ‘तकदीर’ को इल्ज़ाम देते देते….
ये ज़िन्दगी जो मुझे कर्ज़दार करती रही,
कभी अकेले में मिले तो हिसाब करूँ
धीरे धीरे उम्र कट जाती है, जीवन यादों की पुस्तक बन जाती है,
कभी किसी की याद बहुत तड़पाती है और कभी यादों के सहारे ज़िन्दगी कट जाती है..
दो रोज़ तुम मेरे पास रहो.. दो रोज़ मैं तुम्हारे पास रहुं..
चार दिन की ज़िन्दगी है.. ना तुम उदास रहो.. ना मैं उदास रहुं….
“दहशत” सी होने लगी है इस सफ़र से अब तो…
ए-ज़िन्दगी___ कहीं तो पहुँचा दे„„„ख़त्म होने से पहले…
फटी जेब सी ज़िन्दगी, सिक्को से दिन…
लो आज फिर ..इक गिर कर गुम हो गया..!!