बॉलीवुड के मसखरे कॉमेडियन जॉनी वॉकर ने अपने अंदाज से करोड़ों सिनेप्रेमियों को गुदगुदाया, लेकिन आज अगर जॉनी वॉकर जिंदा होते तो कपिल और कृष्णा के डबल मीनिंग जोक्स पर उन्हें जमकर डांट लगाते. क्योंकि वॉकर को साफ-सुथरी कॉमेडी ही अच्छी लगती थी.
आज जॉनी वॉकर की पुण्यतिथि पर हमारे साथ जानें उनकी जिंदगी के कुछ अनछुए पहलू. 1925 को इंदौर में जन्मे वॉकर का असली नाम बदरुद्दीन जमालुद्दीन काजी था. फिल्म जगत में आने से पहले वह एक बस कंडक्टर थे. उनके पिता श्रीनगर में एक कपड़ा मिल में मजदूर थे. कपड़ा मिल बंद हुई तो पूरा परिवार मुंबई आ गया.
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27 की उम्र में वह दादर बस डिपो में मुख्य रूप से तैनात रहे. बदरुद्दीन बस में यात्रियों का टिकट काटने के अलावा अजीबोगरीब किस्से-कहानियां सुनाकर यात्रियों का मन बहलाते रहते. गुरुदत्त की फिल्म ‘बाजी’ के लिए पटकथा लिखने वाले अभिनेता बलराज साहनी की नजर एक बस सफर के दौरान बदरुद्दीन पर पड़ी. साहनी ने बदरुद्दीन को गुरु दत्त के साथ अपनी किस्मत आजमाने का सुझाव दिया.
बताया जाता है कि सेट पर दत्त से मिलने पहुंचे बदरुद्दीन से एक शराबी की एक्टिंग करने के लिए कहा गया, जिसे देख गुरुदत्त इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने बदरुद्दीन को तुरंत ‘बाजी’ (1951) में साइन कर लिया. 1951 में बाजी ‘फिल्म’ में काम करने के बाद बदरुद्दीन ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. कहा जाता है कि उन्हें ‘जॉनी वॉकर’ नाम देने वाले भी गुरु दत्त ही थे. उन्होंने वॉकर को यह नाम एक लोकप्रिय व्हिस्की ब्रांड के नाम पर दिया था.
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वॉकर को पहला फिल्मफेयर अवॉर्ड कॉमेडी के लिए नहीं बल्कि साल 1959 में आई ‘मधुमती’ में सहायक अभिनेता के रोल के लिए मिला. इसके बाद फिल्म ‘शिकार’ के लिए उन्हें बेस्ट कॉमिक एक्टर के फिल्मफेयर अवॉर्ड से सम्मानित किया गया. उनकी आखिरी फिल्म 14 साल के लंबे अंतराल के बाद आई और यह फिल्म थी ‘चाची 420’ इसमें कमल हासन और तब्बू ने लीड रोल अदा किया था. 29 जुलाई, 2003 को बॉलीवुड के इस बेस्ट कॉमेडियन ने दुनिया को अलविदा कह दिया.