नई दिल्ली: बच्चे के जन्म लेने के बाद ही माता-पिता की सबसे पहली जिम्मेदारी होती है उसका नाम रखना, जिसे हिन्दू धर्म में ‘नामकरण’ संस्कार भी कहा जाता है। बच्चे का नाम रखना कोई आसान कार्य नहीं है।
हिन्दू धर्म में नामकरण
परंपरानुसार हिन्दू धर्म में पुरोहित अपनी विद्या के आधार पर नाम का पहला अक्षर निकालते हैं। नाम का पहला अक्षर निकालने की यह प्रक्रिया काफी अलग और कठिन मानी जाती है। इसके लिए पूरे विधि-विधान से कार्य करना पड़ता है।
नाम का पहला अक्षर
नाम का पहला अक्षर निकालने के लिए प्राचीन समय में जो रिवाज़ था उसकी तुलना में आजकल रिवाज़ कुछ बदल सा गया है। आज के दौर में पुरोहितों द्वारा ज्योतिषशास्त्र एवं अंकशास्त्र के आधार पर गणना करके सर्वश्रेष्ठ अक्षर निकाला जाता है, जिसका उपयोग करके नाम रखा जाता है।
सिख धर्म में नाम रखने का रिवाज़
सिख धर्म में नाम का पहला अक्षर ‘गुरु ग्रंथ साहिब जी’ के उस विशेष दिन के श्लोक से लिया जाता है। इस अक्षर का उपयोग करके परिवार वाले अपनी पसंद का कोई भी नाम रख लेते हैं। इसके अलावा इस्लाम में नाम रखने की प्रक्रिया काफी सारे उसूलों से बंधी हुई है।
इस्लाम धर्म में क्या है रिवाज़
इस्लाम धर्म अपने लोगों को किसी भी प्रकार का गलत नाम रखने की इजाजत नहीं देता। यहां सबकी राय से एक सही और सर्वश्रेष्ठ नाम रखा जाता है। एक ऐसा नाम जिसका अर्थ नकारात्मक ना हो।
स्वभाव पर गहरा प्रभाव
इसी तरह से अन्य धर्मों में भी अपने-अपने रीति-रिवाज हैं। लेकिन पहले अक्षर के बाद हम नाम रखते हुए अंग्रेजी शब्द में कितने अक्षरों का इस्तेमाल कर रहे हैं, इसका उस बच्चे के आने वाले जीवन और स्वभाव पर गहरा प्रभाव पड़ता है।
नाम में दोहराने वाले अक्षर
इतना ही नहीं, उस विशेष नाम में कितने अक्षरों को कितनी बार दोहराया गया है, यह भी एक अहम बिंदु है। इसका भी हमारे जीवन से खास संबंध होता है। उदाहरण के लिए मेरा नाम प्रदीप है। इस नाम में अंग्रेजी का अक्षर दो बार दोहराया गया है।
सकारात्मक-नकारात्मक प्रभाव
माना जाता है कि नाम में अक्षर को दोहराने से व्यक्ति के स्वभाव पर सकारात्मक या फिर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। मेरे नाम में दोहराए गए’ अक्षर का भी अवश्य ही मेरे स्वभाव पर कोई असर होगा, लेकिन आपका नाम और उसमें दोहराए जाने वाले अक्षर आपके स्वभाव पर कैसे प्रभावी हैं