अगर देवी लक्ष्मी और सीता गोरी की बजाए काली दिखें तो...

अगर देवी लक्ष्मी और सीता गोरी की बजाए काली दिखें तो…

भारत जैसे देश में जहां गोले रंग को लेकर खासा रुझान देखा जाता है, वहां हिंदू देवी और देवताओं की सांवले रंग वाली छवि गढ़ने की एक मुहिम शुरू की गई है। गोरे रंग की चाहत इस देश में कोई नई बात नहीं है सदियों से गोरे रंग वालों को बढ़िया और बेहतर समझा जाता रहा है। देश में सबसे ज़्यादा बिकने वाले कॉस्मेटिक्स गोरेपन को बढ़ाने वाली क्रीम्स हैं। यहां तक कि बॉलीवुड के तमामे बड़े अभिनेता और अभिनेत्रियां गोरेपन को बढ़ावा देने वाले उत्पादों के विज्ञापनों में अक्सर देखे जाते रहे हैं। मॉडल सुरुथी पेरियासामी उस वक्त रोमांचित हो गईं जब उन्हें धन की देवी लक्ष्मी के रूप में दिखाने के लिए चुना गया।अगर देवी लक्ष्मी और सीता गोरी की बजाए काली दिखें तो...हाल के सालों में भारतीय बाज़ार में एसे उत्पाद (क्रीम्स और जेल वगैरह) भी उतारे गए हैं जो कांख के बालों यहां तक कि महिलाओं के गुप्तांगों को चमकाने का दावा करते हैं।अच्छी नौकरी या प्यार हासिल कर ज़िंदगी बेहतर बनाने में गोरापन मददगार होता है, ग्राहकों को ये भरोसा दिलाने वाले विज्ञापन भी दिखाए जाते रहे हैं। पिछले कुछ सालों में Dark is Beautiful (सांवला सुंदर है) और #unfairandlovely जैसे कैंपेन भी चले हैं जिनमें लोगों से सांवले रंग का जश्न मनाने की अपील की गई। लेकिन इन सब के बावजूद गोरे रंग के लिए स्वास्थ्य से समझौता करने की हद तक दीवानगी जारी है। विज्ञापन फिल्में बनाने वाले भारद्वाज सुंदर कहते हैं, ये केवल सांसारिक चीज़ों पर ही लागू नहीं होता है बल्कि देवी-देवता भी इसके दायरे में आ रहे हैं।

यहां तक कि अब तक श्याम रंग वाले कहे गए कृष्ण भी अक्सर गौर वर्ण के दिखाए जाते हैं। भारद्वाज सुंदर कहते हैं, “अपने घरों में, मंदिरों में या कैलेंडरों पर या स्टिकर या पोस्टरों पर लोकप्रिय देवी और देवताओं की जो तस्वीरें हम इर्द-गिर्द देखते हैं, उन सभी में उन्हें गोरा दिखाया जाता है” ऐसी संस्कृति में जहां गोरेपन को लेकर ग़ज़ब की दीवानगी रही है, वहां भारद्वाज सुंदर इशारा करते हैं कि अब तक श्याम रंग वाले कहे गए कृष्ण भी अक्सर गौर वर्ण के दिखाए जाते हैं। हाथी के सिर वाले गणेश को गौर वर्ण का दिखाया जाता है जबकि भारत में सफ़ेद हाथी नहीं पाए जाते हैं” वे कहते हैं, “यहां हर कोई गोरा रंग पसंद करता है, लेकिन मैं एक सांवली त्वचा वाला व्यक्ति हूं और मेरे ज़्यादातर दोस्त भी मुझ जैसे ही है  इसलिए गोरे रंग के देवी-देवताओं मैं अपने आप को कैसे जोड़ूं?” इस विरोधाभास से लड़ने के लिए चेन्नई के भारद्वाज सुंदर ने फ़ोटोग्राफ़र नरेश नील के साथ ‘डार्क इज़ डिवाइन’ प्रोजेक्ट पर काम शुरू किया। इस प्रोजेक्ट में हिंदू देवी-देवताओं को सांवले रंग का दिखलाया गया है। 

‘डार्क इज़ डिवाइन’ प्रोजेक्ट के लिए भारद्वाज सुंदर और नरेश नील ने सांवले रंग वाले पुरुष और महिला मॉडलों को चुना। उन्हें देवी-देवताओं की तरह कपड़े पहनाए गए और दिसंबर में दो दिनों तक इसकी शूटिंग की गई और इसके नतीजे चौंकाने वाले रहे। मॉडल सुरुथी पेरियासामी ने बीबीसी को बताया कि अतीत में उन्हें कई बार सिर्फ इसलिए खारिज किया गया क्योंकि सांवले रंग की मॉडल किसी को भी नहीं चाहिए थी।सुरुथी पेरियासामी उस वक्त रोमांचित हो गईं जब उन्हें धन की देवी लक्ष्मी के रूप में दिखाने के लिए चुना गया।

सुरुथी पेरियासामी कहती हैं, “लक्ष्मी भारत में सबसे लोकप्रिय देवियों में से एक हैं। हर कोई उनके जैसी बहू चाहता है क्योंकि वे समृद्धि लाती हैं. उनके जैसी दिखकर मैं खुद को धन्य समझती हूं.” “हर कोई सांवले रंग की मॉडल के साथ काम करने की बात करता है, लेकिन हक़ीक़त में कोई उन्हें उत्साहित नहीं करता है। मुझे उम्मीद है कि इस कैंपेन से लोगों की सोच बदलेगी और हमें भी ज़िंदगी में कुछ कर दिखाने का मौका मिलेगा” दिसंबर में शुरू हुए इस कैंपेन पर भारद्वाज सुंदर बताते हैं कि उन्हें काफी सारी प्रतिक्रियाएं मिली हैं जो ज़्यादातर सकारात्मक हैं। हालांकि कुछ लोगों ने उन पर पक्षपातपूर्ण अवधारणा के साथ काम करने का आरोप भी लगाया। लोगों ने भारद्वाज सुंदर को ये ध्यान दिलाया कि देवी काली को हमेशा ही काले रंग में दिखलाया गया है।

भारद्वाज सुंदर कहते हैं कि वे एक धर्मपरायण हिंदू हैं और उनके ‘डार्क इज़ डिवाइन’ प्रोजेक्ट का मक़सद किसी को आहत करना नहीं है। वे कहते हैं, अगर हम अपने आस-पास देखें तो हम पाते हैं कि 99.99 फीसदी मौकों पर देवी-देवता की तस्वीर गोरे रंग वाली ही होती है. हम किसी के बारे में कैसी राय बनाते हैं हैं, ख़ासकर महिलाओं के बारे में, इसमें उसके रूप-रंग की बड़ी भूमिका रहती है. मुझे लगा कि इस पहलू की तरफ़ ध्यान दिलाने की ज़रूरत है।

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