शास्त्रों में कहा गया है कि स्वयं भोजन करने से पहले भगवान को भोग लगाना चाहिए। इसका सिर्फ धार्मिक ही नहीं वैज्ञानिक आधार भी है। अगर आप क्रोध या खीझ अथवा उतावलेपन से भोजन करते हैं तो उसका प्रभाव नकारात्मक होता है।
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व्यक्ति कितना ही पौष्टिक और विटामिनों से युक्त भोजन कर ले, उससे पर्याप्त पोषण नहीं मिलता। शरीर में पाचन संस्थान के जो अवयव आहार का रस और सार सोखते हैं वह मनःस्थिति से प्रभावित होते हैं और अपना काम भूल जाते हैं। समस्या ये है कि दैनिक जीवन की समस्याओं और उलझनों का निराकारण किए बिना स्वस्थ चित्त से भोजन कैसे किया जाए। उसके लिए निर्धारित आधा पौन घंटे में मन की स्थिति प्रत्यंचा उतार कर रख दिए धनुष की तरह शिथिल होनी चाहिए।
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