धनतेरस के दिन से दीपावली का अहसास होने लगता है। दो दिन पहले मनाया जाने वाला धनतेरस का सीधा संबंध लक्ष्मी जी से है। इसके अगले दिन छोटी दीपावली और फिर दीपावली का पर्व मनाया जाता है। पौराणिक कथाओं में मां लक्ष्मी को धन और संपदा की देवी कहा गया है। कहते हैं कि उनकी कृपा जिन पर हो जाती है, उन्हें इस संसार की सभी खुशियां मिलती हैं। तभी तो भक्त धूमधाम से मां की पूजा-अर्चना करते हैं। कहा जाता है कि धनतेस के दिन आप जो कुछ खरीदते हैं, वह आपके जीवन में शुभ बनकर आता है। लेकिन आपने कभी यह सोचा है कि धनतेरस का दिन क्यों इतना शुभ माना जाता है। पूरे देश में लोग इसे मानते हैं।राशिफलः 17 अक्टूबर 2017 दिन मंगलवार, आज धनतेरस पर इन राशि वालों को मिलेंगा धनवान बनने का मौके
त्योहार कोई भी हो, उसका व्यवहारिक और धार्मिक महत्व होता है। दोनों को ही निभाना होता है, क्योंकि ऐसा करते समय नई पीढ़ी को भी संस्कार दे रहे होते हैं। धनतेरस दो शब्दों से मिलकर बना है। धन और तेरस। इसमें तेरस संस्कृति भाषा के त्रयोदस का हिंदी वर्जन है। कार्तिक कृष्ण पक्ष के त्रयोदशी तारीख के दिन इस त्योहार को मनाया जाता है। इस दिन भक्त धनवंतरी और कुबेर देवता की भी पूजा करते हैं। भगवान कुबेर को भी धन का स्वामी माना जाता है। धनतेरस को मनाने के लिए कई पौराणिक कथाएं हैं, जो धनतेरस के मानए जाने के महत्व के बारे में बताती हैं।
कहते हैं कि एक बार भगवान विष्णु मृत्यु लोक की ओर आ रहे थे। ऐसे में मां लक्ष्मी जी भी उनके साथ चलने को तैयार हो गईं। ऐसे में भगवान ने कहा, कि आप मेरा कहना मानेंगी, तो आप मेरे साथ चल सकती हैं। इसे मानने के बाद भगवान के साथ वह भी पृथ्वी लोक आ गईं। वहां पहुंचकर भगवान विष्णु ने दक्षिण दिशा में जाने की इच्छा जताई और लक्ष्मी जी को स्थान विशेष पर रूकने को कहा। इसके बाद वे दक्षिण दिशा में चल दिए। मां लक्ष्मी के मन में उस दिशा में जाने की जिज्ञासा हुई और वह चुपके से प्रभु के पीछे चल दीं। वहां पर उन्होंने एक किसान के खेत से सरसो का फूल लेकर श्रृंगार किया और गन्ने का रस पीया। ऐसा करते समय भगवान विष्णु ने उन्हें देखकर क्रोध में उने शाप दिया कि किसान की 12 वर्ष तक वह सेवा करें।
लक्ष्मी जी के रहने से उसके घर में धन हो गया। 12 साल बाद जब प्रभु उन्हें लेने आए, तो किसान ने उन्हें जाने देने से मना कर दिया। तब माता लक्ष्मी ने उस किसान से कहा कि तेरस के दिन घर को अच्छे से साफ करके रात में घी का दीपक जलाओ। एक तांबे के कलश में रुपए और पैसे भरकर शाम को मेरी पूजा करो। ऐसा करने पर मैं साल भर तक तुम्हारे साथ रहूंगी। ऐसा करने पर किसान के घर मां के आशीर्वाद से धन रहा। ऐसी मान्यता है कि तब से आमजनों ने तेरस के दिन धन की इस देवी की पूजा करना शुरू कर दिया और आज भी मां की कृपा हासिल करने के लिए धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है और उनकी आराधना की जाती है।
एक दूसरी कथा के अनुसार कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन धनवन्तरि का जन्म हुआ था। वे अमृत मंथन से उत्पन्न हुए हैं। कहते हैं कि जन्म के समय उनके हाथ में अमृत से भरा हुआ कलश था। यही कारण है कि धनतेरस के दिन भगवान को प्रसन्न करने के लिए बर्तन खरीदा जाता है। देश के सभी छोटे-बड़े बाजारों में बर्तनों की दुकानें सजी होती है। लोग अपनी क्षमता के अनुसार बर्तन खरीदते हैं। मान्यता तो यह भी है कि इस खास मौके पर आप जिस चीज को भी खरीदते हैं, उसमें तेरह गुणा बढ़ोतरी होती है।
आम तौर पर एक बात मन में उठती है कि लोग इस साख दिन पर चांदी का बर्तन या चांदी से जुड़े हुए सामान की ही खरीदारी क्यों करते हैं। कथाओं में इस बात का भी जिक्र है कि चांदी को चंद्रमा के समान माना जाता है। चंद्रमा को शांत माना जाता है। इससे जीवन सुख समृद्धि के साथ ही मन शांति आती है। भगवान धनवन्तरि को चिकित्सा का भी देवता माना जाता है। उनकी विधिवत पूजा करने से शरीर निरोग रहता है। एक पौराणिक कथाओं के अनुसार धनतेरस पर विधि पूर्वक पूजा करने और दीप दान करने से अकाल मृत्यु से छुटकारा भी मिल जाता है।
धनतेरस की पूजा करते समय शुभ मूहुर्त का ख्याल जरूर रखें। पौराणिक कथाओं के अनुसार धनतेरस की पूजा करने का जो भी महत्व बताया गया है। वह अपनी जगह है। बावजूद इसके एक सच यह भी है कि सच्चे और पवित्र मन से ही देवी-देवताओं का पूजन करने से जीवन में सफलता आती है। आप अपनी क्षमता के अनुसार कुछ नया खरीदें और मां से प्रार्थना करके कहें कि अगले साल आपको इस योग्य बनाएं कि आप अपनी इच्छा के अनुसार सामान खरीद सकें। इसके लिए ईमानदारी से की हुई कोशिश से देवी आपके ऊपर प्रसन्न होंगी और आपके ऊपर भी धनवर्षा जरूर होगी।