NEW DELHI :‘एक और मुंबई हमला होता है तो पाकिस्तान को बलूचिस्तान से हाथ धोना पड़ सकता है।’यह बात देश के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) अजित डोभाल ने करीब दो साल पहले ही एक कार्यक्रम में सार्वजनिक रूप से कही थी।
तब शायद किसी ने अंदाजा भी नहीं लगाया था कि डोभाल असल में भारत सरकार द्वारा आने वाले दिनों में अपनाई जाने वाली रणनीति का संकेत दे रहे हैं। यह पाकिस्तान-प्रायोजित आतंकवाद से निपटने की परंपरागत भारतीय नीति में बदलाव की शुरुआत थी।
इस साल 15 अगस्त को लाल किले से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने और इसके बाद संयुक्त राष्ट्र महासभा में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने जब अपने भाषणों में पाक द्वारा बलूचिस्तान में किए जा रहे मानवाधिकारों के उल्लंघन का जिक्र किया, तो लगा कि सरकार ‘डोभाल नीति’ को आगे बढ़ाने का मन बना चुकी है। इसके बाद जब पिछले सप्ताह सेना ने एलओसी पार करके सात आतंकी कैंपों पर सर्जिकल अटैक किया तो पावर कॉरिडोर में यही कहा गया कि इसके सूत्रधार कहीं न कहीं डोभाल ही थे।
भारत जिस ‘डिफेंसिव ऑफेन्स’ की रणनीति पर अमल कर रहा है, इसका जिक्र डोभाल ने साल 2014 में दिए गए एक भाषण में किया था। उस भाषण को सुनकर लगता है कि क्या भारत ने उसी समय आतंकवाद से लड़ने की अपनी नीति में बदलाव लाने पर विचार करना शुरू कर दिया था? अपने भाषण में डोभाल ने कहा था, ‘बहुत लंबे समय तक पाकिस्तानी आतंकवाद को लेकर भारत की प्रतिक्रिया रक्षात्मक रही है। चौकीदार की तरह हम केवल खुद को बचाने की कोशिश करते हैं।’ उनकी बात से साफ था कि भारत अपने ऊपर हो रहे आतंकवादी हमलों को लेकर अब सिर्फ चौकीदार की भूमिका निभाने को तैयार नहीं है।
भारत ने छोड़ी चौकीदार की पारंपरिक भूमिका?
अपने दुश्मन का सामना करने में भारत की भूमिका अब चौकीदार जैसी नहीं दिख रही है, जो कि केवल खुद को बचाने की कोशिशों में लगा हो। इसके साथ ही, भारत का रुख हमलावर भी नहीं है। असल में ‘डिफेंसिव ऑफेन्स’ ऐसी रणनीति हैं जब आप उस जगह और उन लोगों को निशाना बनाते हैं, जो कि आपको नुकसान पहुंचा रहे हैं।
29 सितंबर को भारत ने नियंत्रण रेखा के पार सर्जिकल स्ट्राइक की जो कार्रवाई की, वह इसी रणनीति का हिस्सा है। 2014 में दिए गए डोभाल के भाषण पर गौर कीजिए, ‘डिफेंसिव ऑफेन्स में परमाणु युद्ध का विकल्प नहीं होता। इसमें सेना तैनात नहीं की जाती है। दुश्मन को चालाकियां आती हैं, लेकिन हमें वे चालाकियां बेहतर पता होती हैं।’
भारत समझता है पाकिस्तान की सारी चालाकियां
इस साल 15 अगस्त में लाल किले से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने और इसके बाद संयुक्त राष्ट्र महासभा में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने जब अपने भाषणों में बलूचिस्तान में मानवाधिकारों के उल्लंघन का जिक्र किया, तो लगा कि सरकार ‘डोभाल नीति’ को आगे बढ़ाने का मन बना चुकी है।हालिया घटनाक्रम साबित करते हैं कि भारत चालाकियों से वाकिफ है। सितंबर 28-29 को आधी रात के ठीक बाद हुए सर्जिकल स्ट्राइक में भारत ने अपने कमांडोज को हवाई रास्ते से नियंत्रण रेखा पर उतारा। वहां से सभी कमांडो पाकिस्तानी क्षेत्र में करीब 3 किलोमीटर अंदर तक गए और उन्होंने आतंकियों के 7 लॉन्च पैड तबाह कर लगभग 38 आतंकवादियों को मार गिराया। करीब 4 घंटे के वक्त में यह पूरा ऑपरेशन पूरा कर लिया गया था।
पाकिस्तान के जोखिम हमसे ज्यादा हैं
भारत के इस सर्जिकल स्ट्राइक की झलक भी आपको डोभाल के इस भाषण में मिल जाएगी। उन्होंने कहा था, ‘डिफेंसिव ऑफेन्स ऐसी नीति है जब आप उस जगह पर जाकर हमला करते हैं, जहां से आपकी परेशानियां आ रही हैं।’ हम जानते हैं कि पाकिस्तान भारतीय क्षेत्र में आतंकियों की सप्लाइ करता है और अपनी जमीन का इस्तेमाल भारत-विरोधी आतंकी गतिविधियों को बढ़ावा देने में करता है।
डोभाल ने अपने भाषण में पाकिस्तान की कमजोरियों का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा, ‘भारत की तुलना में पाकिस्तान की कमजोरियां कई गुना ज्यादा हैं। एक बार जब पाकिस्तान यह जान लेगा कि भारत ने अपनी रणनीति बदल ली है और अब वह डिफेंसिव ऑफेन्स के रास्ते पर चलेगा, तब पाकिस्तान इसकी कीमत नहीं चुका सकेगा। आप मुंबई हमले जैसी एक और वारदात कर सकते हैं और फिर आप बलूचिस्तान से हाथ धो बैठेंगे।’
मोदी की बलूचिस्तान कूटनीति
प्रधानमंत्री मोदी ने जब इस साल 15 अगस्त के अपने भाषण में बलूचिस्तान का जिक्र किया, तब इसे लेकर काफी चर्चा हुई। मालूम हो कि पाकिस्तान पिछले कई महीनों से लगातार कश्मीर के हालात खराब करता जा रहा था। इसी क्रम में आया मोदी का यह भाषण काफी अहम माना गया। उन्होंने कहा, ‘वक्त आ गया है कि पाकिस्तान बलूचिस्तान और पाक-अधिकृत कश्मीर के लोगों पर किए जाने वाले अपने अत्याचारों के लिए दुनिया को जवाब दे।’ उन्होंने यह भी कहा कि जब 2014 में पेशावर के एक स्कूल में हुए आतंकी हमले में मासूम बच्चे मारे गए थे, तब भारत के लोग रोए थे।
पाकिस्तान हमारा शुभचिंतक नहीं
डोभाल के मुताबिक, भारत की नीति में यह अहम बदलाव काफी पहले आ जाना चाहिए था। उन्होंने कहा कि अगर भारत ने डिफेंसिव ऑफेन्स की रणनीति पर जरा सा भी अमल किया होता, तो उसे हुआ नुकसान काफी हद तक कम हो सकता था। डोभाल ने पाकिस्तान पर सख्त रवैया अपनाते हुए आगाह किया था, ‘पाकिस्तान की इस बात का भरोसा मत कीजिए कि वे हमारा भला चाहते हैं। पाकिस्तान हमारा शुभचिंतक नहीं है। वे हजारों वार करके हमारा खून बहाते रहेंगे।’ यहां भी डोभाल का अनुमान सही साबित हुआ। पिछले साल क्रिसमस के समय मोदी द्वारा नवाज शरीफ के पास अचानक पाकिस्तान पहुंचने के महज एक हफ्ते बाद ही पठानकोट एयरबेस पर आतंकी हमला हुआ।